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बीते हफ्ते की कुछ रोचक स्टोरीज़, जिन्हें आप कतई मिस नहीं करना चाहेंगे

इस हफ्ते प्रकाशित हुई कई कहानियाँ रोचक होने के साथ प्रेरणा से भरी हुई भी थीं। यहाँ हम आपको उनमे से कुछ कहानियाँ संक्षेप में बता रहे हैं।

कुछ प्रेरणादाई कहानियाँ

कुछ प्रेरणादाई कहानियाँ



कुछ कहानियाँ रोचक होने के साथ ही प्रेरणादाई भी होती हैं, जिनसे हमें लगातार आगे बढ़ते रहने का हौसला मिलता है। फिर वो चाहें तमिलनाडु के टेनिथ हों, जिन्होने केले के फाइबर का उपयोग करते हुए डिस्पोजल प्लास्टिक का विकल्प ढूंढ निकाला या फिर मेरठ की इरा, जिन्हे एक कर्फ़्यू ने आईएएस बनने की प्रेरणा दी।


इन कहानियों को हम इधर संक्षेप में बता रहे हैं, लेकिन कहानी के साथ दिये गए लिंक पर क्लिक कर आप पूरी कहानी विस्तार से पढ़ सकते हैं।

केला बना प्लास्टिक का विकल्प

टेनिथ आदित्य

टेनिथ आदित्य



पूरा विश्व आज जहां पर्यावरण प्रदूषण के मुख्य कारक प्लास्टिक के विकल्प को लेकर चर्चा कर रहा है, वहीं तमिलनाडु के इस युवा खोजकर्ता ने केले को प्लास्टिक के विकल्प के रूप में पेश करने का काम किया है। तमिलनाडु के युवा वैज्ञानिक टेनिथ केले के फाइबर की मदद लेते हुए डिस्पोजल प्लास्टिक उत्पादों का निर्माण कर रहे हैं। इन उत्पादों में प्लेट, स्ट्रा और बॉक्स जैसे उत्पाद शामिल हैं।


टेनिथ इसके लिए विज्ञान और तकनीक का भरपूर इस्तेमाल करते हैं, जिसके चलते केले के फाइबर से बने उत्पाद भी प्लास्टिक डिस्पोजल जितने ही टिकाऊ होते हैं। इन उत्पादों की खास बात यह है कि इन्हे इस्तेमाल करने के बाद खाद या चारे कि तरह भी इस्तेमाल किया जा सकता है। टेनिथ आपण इस सहारनीय खोज के लिए राष्ट्रिय स्तर के पुरस्कार से भी सम्मानित किए जा चुके हैं। टेनिथ की यह सरहनीय स्टोरी आप इधर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।


टेनिथ कहते हैं,

“हमें प्लास्टिक की प्लेट्स, स्ट्रॉ, कप, पॉलिथीन और पैकेजिंग का उपयोग करने की आदत है। कागज के विकल्प केवल एक बार उपयोग किए जाते हैं और बहुत सारे कचरे का निर्माण करते हैं, इसलिए मुझे केले के पत्तों के साथ इसे बदलने का विचार आया।"

नहीं मानी हार

LR

ToeSmith के सह-संस्थापक आशीष प्रकाश और आयुष जिंदल (L-R)



आईआईटी दिल्ली से बीटेक की पढ़ाई करने वाले आयुष जिंदल और आशीष प्रकाश का पहला स्टार्टअप जरूर असफल रहा लेकिन इससे उनके हौसले कमजोर नहीं हुए। दोनों ने एक बार फिर से साथ आते हुए ToeSmith की शुरुआत की। दोनों ने इसी के साथ दिसंबर 2015 में दो आईआईएम कलकत्ता के स्नातकों के साथ एक ऑनलाइन फार्मेसी के रूप में Aermed को लॉन्च किया था। इसको लॉन्च करने का मकसद 1mg और नेटमेड्स जैसों के कंपीट करना था।

इनकी कहानी आप इधर क्लिक कर पढ़ सकते हैं। ToeSmith के बारे में बात करते हुए आयुष कहते हैं,

“अफॉर्डेबल कस्टमाइजेशन शूज की एक मजबूत आवश्यकता थी। इसलिए, हमने सोचा कि हम उपभोक्ता को अपने खुद के जूते को कस्टमाइज करने और ऑर्डर करने का विकल्प दे सकते हैं और ऐसे हमने ToeSmith शुरू किया।”

आखिरी मौके पर पाई सफलता

आशीष कुमार, आईएएस

आशीष कुमार, आईएएस



कई नौकरियाँ और तमाम असफलताओं के बाद आशीष कुमार ने अपने आखिरी प्रयास में सिविल सेवा परीक्षा पास कर ही ली। उत्तर प्रदेश के उन्नाव से आने वाले आशीष इस सफलता से पहले पहले 5 बार मुख्य परीक्षा और दो बार इंटरव्यू भी दे चुके थे।

अपनी सफलता के बारे में बात अकरते हुए आशीष कहते हैं,

“2017 में अंतिम बार सिविल में बैठना था। पिछले अनुभव से कमजोरियों को दूर करते हुए, अपना सर्वोत्तम देने का प्रयास किया। अंततः मुझे अपना नाम चयनित सूची में देखने को मिला। रैंक अपेक्षा के अनुरूप न मिली पर मैं बहुत खुश हूँ। मुझे हमेशा से चीजों के सुखद पक्ष को देखने की आदत है।”


खास बात यह है कि सिविल सेवा परीक्षा पास करने के लिए आशीष ने कोई कोचिंग नहीं की, एक ओर दिल्ली के मुखर्जी नगर क्षेत्र में जहां बड़ी संख्या में युवा विशेषज्ञों की मदद लेकर तैयारी करते हैं, लेकिन आशीष ने इस तरह की कोई मदद नहीं ली। आशीष की यह कहानी आप इधर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

कर्फ्यू से मिली आईएएस बनने की प्रेरणा

आईएएस इरा सिंघल

इरा सिंघल, आईएएस



मेरठ में कर्फ़्यू लगने के बाद जब इरा को यह पता चला कि डीएम ने कर्फ़्यू क्यों लगाया है, तब उनके भीतर इस पद को लेकर दिलचस्पी पैदा हुई। दिल्ली से इंजीनियरिंग फिर एमबीए और एक बड़ी कंपनी में लाखों के मोटे पैकेज वाली नौकरी इरा के सपनों को छोटा नहीं कर सकी। इरा के मन में समाज के लिए कुछ करने कि इच्छा थी और यही इच्छा उन्हे आईएएस तक ले कर गई।


यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की सामान्य कैटिगरी में देश की पहली विकलांग महिला टॉपर इरा सिंघल समाज की संवेदनहीनता से विचलित हो जाती हैं। अपने पहले ही अटेम्प्ट में आईएएस बनने वाली इरा की कहानी आप इधर पढ़ सकते हैं।

दादा साहेब फाल्के

दादा साहेब फाल्के

दादा साहेब फाल्के



भारत में सिनेमा को कई आयामों पर रखकर देखा जाता है, सिनेमा के लिए होने वाले सम्मान समारोहों की प्रासंगिकता को लेकर अक्सर तमाम तरह की बातें उठती रहती हैं, लेकर फिर भी सिनेमा के क्षेत्र में एक सम्मान आज भी है मौजूद है जिसकी प्रासंगिकता बराबर बरकरार है और वह है दादा साहेब फाल्के पुरस्कार।


यह पुरस्कार भारतीय सिनेमा उद्योग के पितामह दादा साहेब फाल्के के सम्मान में दिया जाता है। दादा साहेब फाल्के का भारतीय सिनेमा के लिए योगदान अद्वितीय है। दादा साहेब फाल्के के बारे में आप इधर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।