बैंकों का सकल NPA मार्च में घटकर छह साल के निचले स्तर पर पहुंचा, RBI की रिपोर्ट
पहले से ही दोहरे अंकों में बैंक ऋण वृद्धि तेजी से बढ़ रही है. बैंकों ने पूंजी और तरलता की स्थिति को भी मजबूत किया है जबकि परिसंपत्ति की गुणवत्ता में सुधार हुआ है. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) अच्छी तरह से पूंजीकृत हैं.
मार्च, 2022 में बैंकों की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) का अनुपात छह साल के निचले स्तर पर पहुंचकर 5.9 फीसदी हो गया है. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने गुरुवार को जून 2022 के लिए अपनी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में यह जानकारी दी है. इसके साथ ही, मार्च 2022 में शुद्ध गैर-निष्पादित संपत्ति (NNPA) अनुपात 1.7 फीसदी तक गिर गया.
रिपोर्ट के मुताबिक, कर्ज के जोखिम को लेकर बेहद ही गहन जांच से पता चलता है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक (एससीबी) अच्छी तरह से पूंजीकृत हैं और सभी बैंक प्रतिकूल तनाव परिदृश्यों में भी न्यूनतम पूंजी आवश्यकताओं का पालन करने में सक्षम होंगे.
मार्च, 2022 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (एससीबी) ने पूंजी से जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (सीआरएआर) और सामान्य इक्विटी टीयर-1 (सीईटी -1) अनुपात क्रमशः 16.7 फीसदी और 13.6 फीसदी के साथ मजबूत पूंजी स्थिति बनाए रखी और परिसंपत्तियों पर रिटर्न और इक्विटी पर रिटर्न में सुधार किया.
इस बीच, एससीबी का प्रावधान कवरेज अनुपात (पीसीआर) मार्च 2022 में बढ़कर 70.9 फीसदी हो गया, जो मार्च 2021 में 67.6 फीसदी था.
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि पहले से ही दोहरे अंकों में बैंक ऋण वृद्धि तेजी से बढ़ रही है. बैंकों ने पूंजी और तरलता की स्थिति को भी मजबूत किया है जबकि परिसंपत्ति की गुणवत्ता में सुधार हुआ है. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) अच्छी तरह से पूंजीकृत हैं. बाजार के जोखिम बढ़ रहे हैं क्योंकि विदेशी पोर्टफोलियो निवेश के निकाले जाने और अमेरिकी डॉलर की तेजी के कारण अस्थिरता के हालात बन गए हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘वैश्विक घटनाक्रम से पैदा हुई चुनौतियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था पुनरुद्धार की राह पर चल रही है. हालांकि, मुद्रास्फीति के दबाव, बाहरी घटनाक्रम और भू-राजनीतिक जोखिमों के चलते हालात से सावधानी से निपटने और करीबी निगरानी रखने की जरूरत है.’’
रिपोर्ट कहती है कि यूरोप में युद्ध, मुद्रास्फीति के लगातार ऊंचे स्तर पर बने रहने और कोविड-19 महामारी की कई लहरों से निपटने के लिए केंद्रीय बैंकों द्वारा उठाए गए मौद्रिक कदमों के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था का परिदृश्य काफी अनिश्चितता से भरा हुआ है.