डेढ़ सौ रुपये में अपने सिर के बाल बेचकर लाचार मां ने भूखे बच्चों का पेट भरा
कवि धूमिल ने कभी रोटी और संसद पर कविता लिखी थी। अब उसके मायने बदल चुके हैं। रोटी हर कोई खाता है। उसके रंग अलग अलग होते हैं। एक महिला ने भूखे बच्चों की रोटी के लिए अपना सिर मुड़वा लिया, दूसरी और तीसरी के पास रोटी इफरात रही तो जीवन की दो अलग-अलग राहों पर चल कर प्रेरणा स्रोत बन गई हैं।
एक देश के महिलाओं के कई रंग। एक ओर भूख की त्रासदी, दूसरी ओर देशभक्ति की प्रेरणा, तीसरी महिला डिंडीगुल (तमिलनाडु) के गांव चिनालापत्ती की गुणावती चंद्रशेखरन का अनोखा संघर्ष है, जिन्होंने अलग तरह से चुन ली जीवन की राह। गुणावती को डेढ़ साल की उम्र में ही पोलियो हो गया। पिता डॉक्टर थे। बेटी की बीमारी देर से जान पाए। तब तक दोनो पैर बेकार हो चुके थे।
गुणावती शादी के बाद दो बेटियों की मां बनीं। इस तरह एक वक़्त ऐसा आ गया कि जिंदगी बोझ लगने लगी। उसी तनाव में पति ने अपने प्रिंटिंग-बाइंडिंग व्यवसाय में मदद के लिए कहा, जहां ग्राफिक मशीन के इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट का काम भी होता था, वह संभालने लगीं।
उसी दौरान उन्होंने पेपर क्विलिंग की कला सीखकर अपनी कल्पनाशक्ति से वॉल आर्ट, ग्रीटिंग कार्ड, वेडिंग कार्ड, लघु चित्र, कंपनी के लोगो जैसे बहुत सारे पेपर क्विलिंग उत्पाद बनाने शुरू कर दिए। पेपर आर्ट की जानकारी जुटाई। पेपर आर्ट वर्क से तितली की आकृति बनाई, पति ने सोशल मीडिया पर साझा कर दिया।
फिर उन्हें 20 दिनों में 40 पेपर आर्ट वर्क बनाने का काम मिला। अब तो पूरे देश में प्रदर्शनियों में अपने उत्पाद वह स्वयं ले जाती हैं। इस समय वह क्विलिंग गिल्ड, ब्रिटेन की सदस्य भी हैं, साथ ही ब्रिटिश काउंसिल में अपने इस बिजनेस आईडिया पर लेक्चर भी दे चुकी हैं।
यह दूसरी दास्तान भी तमिलनाडु की ही है। सेलम (चेन्नई) की। यहां की प्रेमा बताती हैं कि उनके तीन बच्चे हैं, पांच, तीन और दो साल के। बच्चे भूखे थे। उन्होंने पड़ोसियों, रिश्तेदारों और जो भी दिखा सबसे मदद मांगी, लेकिन किसी ने सहायता नहीं की। उस दिन एक बाल खरीदने वाला गली से गुजरा। वह बालों से बिग बनाने का काम करता था। उसकी आवाज सुनकर वह अपनी झोपड़ी से तुरंत भागीं। अपने बालों को काटा और उसे 100 रुपये में बेच दिया। उस रुपये से उन्होंने अपने तीनो बच्चों का उस दिन पेट भरा।
हमारे देश के होटलों में रोजाना करोड़ों की खाद्य सामग्री कचरे में चली जाती है लेकिन प्रेमा जैसी महिलाएं अपने भूखे बच्चों का पेट भरने के लिए अपने बाल बेच देती हैं। न जाने कितनी तरह की त्रासदियां झेलती हैं। भारी कर्ज से पति पहले ही आत्महत्या कर चुके थे। इन्ही हालात में प्रेमा ने एक दिन आत्महत्या तक कर लेने की सोची। उस समय उनके पास 50 रुपये थे। जहर की शीशी लेने दुकानदार के पास गईं। दुकानदार भांप गया। जहर देने से मना कर दिया।
उसके बाद लौटकर प्रेमा ने जहरीले पौधे का बीज खाकर जान देने की कोशिश की तो बहन ने रोक दिया। जब यह सब बातें चेन्नई की ग्राफिक डिजाइनर जी. बाला को पता चलीं। उन्होंने सोशल मीडिया पर प्रेमा की दास्तान पोस्ट कर क्राउड फंडिग से 1.45 लाख रुपये जुटाकर दिए। अब सरकार से विधवा पेंशन का आश्वासन भी मिल गया। प्रेमा अब कोई काम-धंधा कर बच्चों को बड़ा करना चाहती हैं।
इंदौर (म.प्र.) की हैं 58 वर्षीय वृंदा। शहर के न्याय नगर में रहती हैं। उन्होंने नए साल में लोगों को पश्चिमी देशों की तरह ट्रैफिक के प्रति लोगों को जागरूक करने का संकल्प लिया है। वह रोजाना दो घंटे शाम को चार से छह बजे तक चौराहों पर खड़े होकर वाहन चालकों को ट्रैफिक नियमों का पालन करना सिखाती हैं। एक घंटा विजय नगर चौराहे और एक घंटा सयाजी चौराहे पर जागरूकता अभियान चलाती हैं।
वे वाहन चालकों को हेलमेट लगाने, सिग्नल नहीं तोड़ने और अपनी लेन में चलने की सीख देती हैं। वृंदा कहती हैं कि इंदौर शहर स्वच्छता में पूरे देश में अव्वल घोषित हो चुका है। अब यह ट्रैफिक सिस्टम में भी नंबर वन बनकर रहेगा। वृंदा चार साल पहले कैलिफोर्निया गई थीं। कैब से अपने होटल जा रही थीं। पूरा रास्ता खाली था, एक भी गाड़ी नहीं थी, फिर भी कैब के ड्राइवर ने रेड सिग्नल होने पर गाड़ी रोक दी।
वही से उन्हें आइडिया मिला कि अब अपने देश-शहर लौटकर वह लोगों का इसी तरह कड़ाई से नियम का पालन सिखाएंगी। तीनो बेटियों की मदद से उन्होंने ट्रैफिक के नियम सीखे। बड़ी बेटी दिव्या सिंगापुर में इंडियन एम्बेसी में हैं और दूसरी निकिता सिविल जज हैं और छोटी परिधि कमर्शियल टैक्स इंस्पेक्टर हैं।