दबाव में हिमाचल की पारिस्थितिकी, इस साल अप्रैल से जून तक रोज औसतन 31 बार लगी आग
हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष एक अप्रैल से 30 जून तक जंगल में आग लगने की 2,763 घटनाएं सामने आई हैं. अगर राज्य के वन संरक्षण और अग्नि नियंत्रण विभाग के आंकड़ों की मानी जाए तो 2007 के बाद से यह सबसे अधिक है.
बीते महीने हिमाचल के किन्नौर स्थित जंगी गांव के 66-वर्षीय किसान रोशन लाल जंगल की आग से परेशान रहे. गांव से सटे जंगल में बीते 12 जून को आग लग गई थी.
उन्होंने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि उन्होंने इस स्तर पर आग पहले कभी नहीं देखा था. आग तीन किलोमीटर में फैली और सैकड़ों पेड़ों को अपनी चपेट में ले लिया. आग बुझाने में लगभग तीन दिन लगे लेकिन तब तक 2,000 बीघा (161 हेक्टेयर) से अधिक वन भूमि आग से प्रभावित हो चुकी थी.
किन्नौर के डिविशनल फॉरेस्ट ऑफिसर (डीएफओ) रेजिनाल्ड रॉयस्टन ने मोंगाबे-इंडिया को जानकारी दी कि धरातल पर तबाही साफ नजर आ रही है. उन्होंने कहा कि आग ने पारिस्थितिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण देवदार और कीमती लकड़ी के लिए मशहूर नीले देवदार के पेड़ों को प्रभावित किया.
लाल ने कहा, “मेवा वाले सैकड़ों चिलगोजा देवदार के पेड़ इस आग की भेंट चढ़ गए. जंगी गांव के निवासियों के लिए ये पेड़ आजीविका के एक प्रमुख स्रोत हैं.” जंगी निवासियों के अनुसार प्रभावित क्षेत्र हिमालयी तहर ( जंगली बकरी से संबन्धित एक प्रजाति) और काले भालू का भी घर था. आग लगने का कारण इनके इंसानों वाले इलाके में आने का खतरा बना रहा.
हालांकि, डीएफओ रेजिनाल्ड रॉयस्टन ने कहा कि चूंकि आग ऊंची पहाड़ी ढलानों पर लगी है और वहां कोई मानव निवास नहीं है. विभाग इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहा है कि आग की घटना आकस्मिक थी या जानबूझकर की गई थी. “लेकिन क्षेत्र में लंबे समय तक शुष्क मौसम को एक संभावित कारण माना जा रहा है. इसने जंगल में नमी के स्तर को काफी कम कर दिया है. इससे उन्हें तीव्र आग लगने का खतरा बढ़ जाता है,” रॉयस्टन ने आगे कहा.
रिकॉर्ड तोड़ आग की घटनाएं
हिमाचल प्रदेश में वन क्षेत्र राज्य के भौगोलिक क्षेत्र के 66 प्रतिशत हिस्से में मौजूद है. जैव विविधता के मामले में ये वन काफी समृद्ध हैं. साथ ही, ये वन नाजुक हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
हिमाचल प्रदेश में बढ़ती आग की घटनाएं अधिकारियों और नागरिकों के लिए चिंता का एक प्रमुख कारण है. ये वन राज्य के पर्यावरण, पारिस्थितिक और आर्थिक कल्याण के लिए महत्वपूर्ण हैं.
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल हिमाचल प्रदेश के कई जिलों में जंगल में आग लगी. हिमाचल प्रदेश के वन संरक्षण और अग्नि नियंत्रण विभाग द्वारा मोंगाबे-इंडिया के साथ साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, राज्य में इस साल एक अप्रैल से 30 जून तक 2,763 आग की घटनाएं दर्ज की गईं. इस समय सामान्यतः जंगल में आग की घटनाएं बढ़ जाती है. इस दौरान यहां प्रति दिन औसतन 31 आग की घटनाएं हुईं. इस अवधि में 618 आग की घटनाओं के साथ धर्मशाला जिला शीर्ष पर रहा, इसके बाद चंबा (522), मंडी (364), शिमला (286), हमीरपुर (285), रामपुर (190), बिलासपुर (151) और सोलन (110) का स्थान रहा. संभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, 2007 में बिलासपुर में सबसे अधिक आग की घटनाएं सामने आईं.
तुलनात्मक रूप से पिछले वर्षों में राज्य में अब तक दर्ज की गई 2,763 घटनाओं की तुलना में पूरे वर्ष में आग की घटनाएं कम रही हैं. वित्तीय वर्ष 2021-22 में 1,275 आग की घटनाएं सामने आईं. जबकि 2020-21 में 1,045 और 2019-20 में 1,445 आग लगी थी. अब तक एक वर्ष में सबसे अधिक जंगल की आग 2009-10 (1,906) और 2018-19 (2,544) में हुई थी.
इन आग की घटनाओं में लगभग 23,239 हेक्टेयर वन क्षेत्र, जो कि राज्य के क्षेत्रफल का लगभग 0.45% है, प्रभावित हुआ है. आग के प्रभाव का कुल मूल्यांकन 64 करोड़ (640 मिलियन) रुपया किया गया है. कुल प्रभावित क्षेत्र में से 18,600 हेक्टेयर प्राकृतिक वन क्षेत्रों का हिस्सा था, और अन्य 4,500 हेक्टेयर में पौधरोपण था. इन पौधों को लगाने के लिए वन विभाग हर साल काफी खर्च करता है.
जंगल की आग बुझाने के प्रयासों में तीन वन विभाग के कर्मियों की फील्ड ऑपरेशन के दौरान मौत हो गई.
मिट्टी को प्रभावित करने वाली आग
मोंगाबे-इंडिया से बात करते हुए वन संरक्षण और अग्नि नियंत्रण विभाग के मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ) अनिल शर्मा ने कहा कि हिमाचल में जंगल की आग की ज्यादातर घटनाएं जमीन की आग की थीं. इसका मतलब आग जमीन से सटकर लगी और मिट्टी को भी प्रभावित किया.
“अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जंगल की आग को दो-तीन प्रमुख श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है, जिसमें क्राउन फायर जो पेड़ों के शीर्ष से फैलती है और पेड़ के सभी हिस्से को खा जाती है. यह सबसे तीव्र होती है और नियंत्रित करने में मुश्किल होती है. एक अन्य आग का प्रकार होता है-जमीन की आग. इसमें जंगल को नुकसान होता है, लेकिन यह ज्यादातर अपने ग्राउंड कवर को जला देता है और मिट्टी को प्रभावित करता है,” शर्मा ने समझाया.
“इस साल के जंगल की आग में क्राउन फायर में आग लगने की घटनाएं बहुत सीमित थीं. यह ज्यादातर जमीनी आग थी. अच्छी बारिश के बाद आग से क्षतिग्रस्त जंगल के हरित आवरण के वापस सुधरने की संभावना है,” उन्होंने कहा.
उन्होंने कहा कि राज्य का चीड़ का जंगल 1,259 किलोमीटर में फैला है और राज्य के कुल वन क्षेत्र का 3.4 प्रतिशत है. इस जंगल में आग की घटनाओं की अधिक आशंका रहती है. विभाग ने जंगल की आग की संवेदनशीलता के स्तर के अनुसार 2,026 बीट्स की पहचान की है, जिनमें से 339 बीट अत्यधिक संवेदनशील हैं.
वर्षा की कमी, शुष्क मौसम और अन्य कारक
सीसीएफ अनिल शर्मा ने मोंगाबे-इंडिया को बताया कि ज्यादातर मामलों में जंगल की आग मानवीय लापरवाही का परिणाम है. “उदाहरण के लिए, यदि कोई जलती हुई सिगरेट फेंकता है या यदि किसान वन क्षेत्रों से सटे अपने खेतों में आग लगाता है तो इससे वन क्षेत्र में आग लग सकती है. कुछ आग जानबूझकर भी लगाई गई थी, ताकि मानसून के बाद अच्छी गुणवत्ता वाली घास का चारा प्राप्त किया जा सके.
शर्मा ने कहा, “लेकिन हिमाचल में इस मौसम में लंबे समय तक शुष्क रहने और सामान्य तापमान से अधिक तापमान से आग की संभावना बढ़ गयी है.”
हिमाचल प्रदेश मौसम विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, राज्य में मार्च और अप्रैल के महीनों में क्रमशः 95 प्रतिशत और 90 प्रतिशत कम वर्षा देखी गई. मौसम विभाग के निदेशक सुरेंद्र पॉल के अनुसार 2002 के बाद से यह आंकड़ा सबसे अधिक है. मई और जून के महीनों में भी वर्षा की कमी क्रमशः 23% और 48% थी, जिसमें हिमालय के ऊपरी भाग में अभूतपूर्व वर्षा की कमी देखी गई थी.
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के आंकड़ों के आधार पर दिल्ली स्थित गैर लाभकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने हीटवेव के दिनों का आकलन किया. रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 27 हीटवेव वाले दिन दर्ज किए गए, जो राजस्थान (39) और मध्य प्रदेश (38) के बाद देश में तीसरा सबसे अधिक है.
किन्नौर में स्थित एक पर्यावरण कार्यकर्ता जिया लाल ने मोंगाबे-इंडिया को बताया, “हम सभी को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए कि पिछले एक दशक में राज्य में वर्षा और बर्फबारी के पैटर्न में भारी परिवर्तन क्यों है.” लाल ने कहा कि यह बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं का प्रत्यक्ष परिणाम है जिसने समग्र राज्य की पारिस्थितिकी को परेशान किया है. “इसके अलावा, वैश्विक और साथ ही अन्य घरेलू जलवायु परिवर्तन की घटनाएं हिमाचल में पहले की तुलना में अधिक बार सूखे की पुनरावृत्ति में मदद कर रही हैं. इससे वन संसाधनों, वन्यजीवों और पर्यावरण को भारी नुकसान होता है,” लाल ने कहा.
जंगल की आग की घटनाओं को कैसे नियंत्रित किया जा सकता है, इस पर सीसीएफ अनिल शर्मा ने कहा कि आग की सभी घटनाओं को रोकना असंभव है. इसके लिए सबको जागरूक होने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, “हम स्थानीय लोगों, पंचायतों, स्कूली बच्चों के साथ बड़े पैमाने पर संपर्क कार्यक्रम आयोजित करते हैं, ताकि उन्हें जंगल की आग से वन संसाधनों, वन्यजीवों और पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक किया जा सके.”
शर्मा ने कहा कि उन्होंने देहरादून में भारतीय वन सर्वेक्षण के साथ भी समझौता किया है, और उपग्रहों की मदद से वहां के अधिकारी राज्य के वन क्षेत्र के किसी भी हिस्से में धुआं उठने पर अलर्ट भेजते हैं. “यह हमें जल्द से जल्द मौके पर पहुंचने में मदद करता है और विभाग आग को रोकने के लिए हर संभव उपाय करता है,” उन्होंने कहा.
(यह लेख मुलत: Mongabay पर प्रकाशित हुआ है.)
बैनर तस्वीर: हिमाचल प्रदेश में एक अप्रैल से 30 जून 2022 तक 2,763 आग की घटनाएं दर्ज की गईं, जिसमें प्रति दिन औसतन 31 आग लगीं. तस्वीर - सुमित महार/हिमाधरा कलेक्टिव