एक पुअर डैड के बेटे की सलाह अमीर बनने के लिए
अगर आपने कभी गूगल पर बेस्ट पर्सनल फाइनेंस बुक्स सर्च किया है तो “रिच डैड, पुअर डैड” उस सर्च में सबसे ऊपर रही होगी. यह किताब अमेज़न के पर्सनल फाइनेंस मैनेजमेंट केटेगरी में #1 और दुनिया में ‘हाउ-टू’ केटेगरी में अब तक जितनी भी किताबें लिखी गयीं हैं उनमें थर्ड-लांगेस्ट रनिंग बेस्ट सेलर है.
द न्यूयॉर्क टाइम्स की लगातार 6 सालों तक टॉप बेस्ट सेलर बुक रही और दो साल तक यू.एस.ए टुडे की #1 मनी बुक रही. साल 2002 में प्रकाशित रॉबर्ट टी. कियोसाकी की यह किताब की अभी तक 46+ मिलियन कॉपी बिक चुकी है जिसे दुनिया के 109 देशों के 51 अलग-अलग भाषाओँ में अनुवाद किया जा चुका है. इसका अनुवाद कई भारतीय भाषाओँ में भी हो चुका है.
ज़्यादा पैसा कमाने से नहीं बनता कोई अमीर
यह किताब इस मिथक को तोडती है कि अमीर बनने के लिए ज्यादा पैसा कमाना जरूरी है. कि अमीर लोग पैसे के लिए काम नहीं करते हैं या बहुत पैसा सिर्फ दो नंबर से ही कमाया जा सकता है. इस किताब से रॉबर्ट कियोसाकी दुनिया भर के करोड़ों लोगों की पैसों के बारे में उनकी सोच को चुनौती देते हैं. रॉबर्ट के अनुसार, अमीर बनना आपकी फाइनेंसियल इंटेलीजेंस पर निर्भर करता है. इसी ज्ञान की कमी के कारण ग़रीब व्यक्ति ग़रीब बना रहता है और मध्यम वर्गीय आदमी पैसा होने के बावजूद भी हमेशा ही माध्यम वर्गीय ही बना रहता है.
यह किताब अमीर या ग़रीब की मानसिकता का वर्णन करती है. रॉबर्ट के मुताबिक़ धनवान वही लोग बनते हैं जो संपत्ति (assets) लेते हैं, ग़रीब और मध्यम वर्ग के लोग दायित्व (liabilities) लेते हैं. समझदार वो लोग होते हैं जो अपने पैसे को स्टॉक, बांड, रियल एस्टेट आदि में निवेश करते हैं, जिससे वह अधिक पैसा कमाने में कामयाब होते हैं. बेसिकली, समझदार वह लोग होतें हैं जो पैसे इन्वेस्ट करने के मौकों की तलाश में रहते हैं.
पुअर डैड़ सिर्फ़ ‘समझदारी’ की बात करते हैं
इस बात को पुख़्ता करने के लिए रॉबर्ट हमारी ज़िन्दगी से उदहारण लेते हुए दिखाते हैं कि कैसे हममें से अधिकतर लोग फाइनेंसियल एडवाइस उनसे लेते हैं जिनके पास पैसे नहीं होते, सिर्फ अनुभव होता है. ये लोग अपने अनुभव के आधार पर अपनी राय देते हैं. यहाँ पर रॉबर्ट समझदारी और काबिलियत में फ़र्क दिखाते हैं. किताब के टाइटल में ‘रिच डैड’ काबिलियत का सूचक है और ‘पूअर डैड’ समझदारी का. कियोसाकी लकी थे कि उन्हें दोनों तरह के व्यक्तियों से एडवाइस लेने का मौका मिला.
‘पूअर डैड’ उनके असली पिता थे जो काफी पढ़े लिखे थे मगर ज़िन्दगी भर ग़रीब रहे और जो कियोसाकी को पढाई-लिखी करके अपना भविष्य सुरक्षित करने की एडवाइस दिया करते थे. ‘रिच डैड’ उनके पड़ोसी दोस्त के पिता थे जो काफी पढ़े लिखे तो नहीं थे मगर काफी अमीर थे. इन्होने कियोसाकी को पैसे की समझ विकसित करने में लाइफ लॉन्ग लेसंस दिए. इन्हीं दोनों थीम्स के इर्द-गिर्द, किताब की अन्य थीम्स भी हैं. जैसे अमीर बनने के लिए आपको जोखिम उठाना सीखना चाहिए. ऐसी चीज़ें जीवन में जोड़िये जो आपको पैसे कमा कर देगी. हमेशा दिल से नहीं बल्कि दिमाग से काम लें; पैसे के लिए काम ना करें, पैसा आपके लिए काम करे इत्यादि.
क्या है इस किताब की लोकप्रियता का रहस्य
इस तरह की अस्पष्ट लेकिन प्रभावशाली बातें ‘सेल्फ-हेल्प’ की किताबों में अमूमन लिखी जाति रही हैं. ऐसे वाक्यों का कोई एक ख़ास तार्किक मतलब या माने नहीं होता, लेकिन प्रॉमिस और ज़ोश से भरपूर ये सुझाव या सलाह रीडर को, इसे पढ़ते हुए, ये महसूस कराते हैं कि ये उनके लिए ही लिखी गयी है. लोगों में किसी चीज़ में विश्वास रखने की या यकीन करने की उनकी ज़बर्दस्त (overwhelming) इच्छा अक्सरहां उन्हें इस तरह के विषयों पर तार्किक या स्पष्ट सोच रखने से वंचित रखती है. इस किताब को पढ़ते हुए रीडर के मन में ये सवाल आ ही सकते हैं कि जो किताब फाइनेंसियल जीनियस के ब्लूप्रिंट देने का दावा कर रही है वो रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट, स्टॉक मार्किट इन्वेस्टमेंट, एसेट्स, लाइबिलिटी ऐसे कॉन्सेप्ट्स को इतने मोटे-मोटे शब्दों में क्यूँ समझा रही है? या ये की क्या पैसों के साथ ख़ुशी या काबिलियत जोड़ना सही है?
लेकिन ज़ाहिर है इसे पढ़ने वाले, पसंद करने वालों ने इसको इतना आलोचनात्मक नज़र से नहीं देखा है. यह पिछले बीस सालों में एक तेज़ी से बदलती और जटिल होती जा रही ग्लोबल व्यवस्था में उन्हें दिशा देती रही है.
बुक रिव्यू की हमारी इस श्रृंखला में हम बिज़नस, फाइनेंस, इन्वेस्टमेंट, ‘सेल्फ-हेल्प’ कैटेगरी की किताबों का रिव्यू आप तक पहुंचाएंगे.