क्या होती है कार्बन डेटिंग? ज्ञानवापी मामले में क्यों हो रही है इसके इस्तेमाल की मांग
वाराणसी की जिला कोर्ट आज ज्ञानवापी मामले (Gyanvapi Case) में 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग की मांग पर फैसला सुना सकता है. ज्ञानवापी परिसर के वजुखाने में सर्वे के दौरान मिले कथित शिवलिंग की कार्बन डेटिंग (Carbon Dating of Shivling) को लेकर हिंदू पक्ष की ओर से कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. हिंदू पक्ष की ओर से मांग की गई है कि कोई भी वैज्ञानिक तरीके से जिससे शिवलिंग को नुकसान ना हो, उससे जांच कराई जाए.
आखिर कार्बन डेटिंग क्या होती है और उससे कैसे किसी भी चीज का उम्र का पता लगाया जाता है, इसे विस्तार से समझते हैं.
कार्बन डेटिंग व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली एक विधि है जिसे कार्बनिक पदार्थों की आयु का पता लगाने के लिए उपयोग किया जाता है. जीवित वस्तुओं में विभिन्न रूपों में कार्बन मौजूद होता है. कार्बनिक पदार्थ यानी ऐसी चीजें जो कभी जीवित थीं.
हालांकि सवाल शिवलिंग का है जो पत्थर का होता है. पत्थर निर्जीव होता है. तो अब सवाल यह उठता है कि कार्बन डेटिंग से क्या किसी निर्जीव वस्तु के उम्र का पता लगाया जा सकता है, क्योंकि उसमें कार्बन तो होता ही नहीं है? मौजूदा ज्ञानवापी मामले में किसी ऐतिहासिक ढांचे का कार्बन डेटिंग करके उसकी उम्र का पता कैसे लगाया जा सकता है?
जवाब है कि पत्थरों और धातुओं की डेटिंग नहीं की जा सकती है, क्योंकि उनमें कार्बन नहीं होता है, लेकिन उन निर्जीव वस्तुओं पर या उनके साथ दूसरे जैविक सामान जैसे कि अनाज, कपड़े, लकड़ी, रस्सी जैसी कोई दूसरी चीज़ें भी मिल जाती हैं जिनकी कार्बन डेटिंग की जा सकती है. मौजूदा केस में इसी आधार पर उस ऐतिहासिक ढांचे के विश्वसनीय उम्र का पता लगाया जा सकता है. बता दें कि इसके पहले भी कई मामलों में जैसे कि राम जन्म भूमि और इमामबाड़े के ऐतिहासिक संदर्भ को स्थापित करने के लिए कार्बन डेटिंग का इस्तेमाल किया जा चुका है.
माना जाता है कि हर पुरानी चीज पर समय के साथ कार्बन के तीन आइसोटोप आ जाते हैं- कार्बन-12, कार्बन-13 और कार्बन-14 हैं. कार्बन-14 के जरिए डेटिंग विधि को काम में लाया जाता है जिससे जंतुओं एवं पौधों के प्राप्त अवशेषों के आधार पर जीवन काल, समय चक्र का निर्धारण किया जाता है. पर यह समझना आवश्यक है कि कार्बन डेटिंग किसी जीवाश्म या पुरातत्व संबंधी चीज की अनुमानित आयु बताता है.
कार्बन डेटिंग तकनीक किसकी उपज
रेडियोकार्बन डेटिंग तकनीक का आविष्कार 1949 में शिकागो विश्वविद्यालय के विलियर्ड लिबी (Willard Libby) और उनके साथियों ने किया. 1960 में उन्हें इस काम के लिए रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार (Nobel Prize in chemistry) भी मिला. उन्होंने कार्बन डेटिंग के माध्यम से पहली बार लकड़ी की आयु पता की थी.
कार्बन 14 की खोज 27 फरवरी 1940 में मार्टिन कैमेन और सैम रुबेन (Martin Kamen and Sam Ruben) ने कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय रेडियेशन प्रयोगशाला बर्कले में की.
कब इसकी मदद लेनी चाहिए
अधिकांश कार्बनिक पदार्थ तब तक उपयुक्त होते हैं जब तक कि यह पर्याप्त उम्र के होते हैं और खनिज नहीं होते. वैसे पत्थर और धातु की डेटिंग नहीं की जा सकती है, लेकिन बर्तनों की डेटिंग की जा सकती है. ज्ञानवापी मसले में मुस्लिम पक्ष का भी यही तर्क कि लकड़ी या पत्थर की कार्बन डेटिंग संभव नहीं है. किसी भी वस्तु में जब कार्बन हो तभी कार्बन डेटिंग की जा सकती है.
किन चीज़ों पर की जा सकती है
रेडियोकार्बन डेटिंग का प्रयोग कार्बनिक पदार्थों पर ही किया जा सकता है, जैसे लकड़ी और चारकोल; बीज, बीजाणु और पराग; हड्डी, चमड़े, बाल, फर, सींग और रक्त अवशेष; मिट्टी; शैल, कोरल और चिटिन; बर्तन (जहां कार्बनिक अवशेष है); दीवार चित्रकारी; पेपर और पार्चमेंट इत्यादि.
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