भारत को आर्थिक और तकनीकी रूप से मजबूत बनाने में शिंजो आबे का योगदान अहम

बुलेट ट्रेन प्रोजेक्‍ट से लेकर न्‍यूक्‍लीयर पैक्‍ट और काशी-क्‍योटो प्रोजेक्‍ट तक शिंजो आबे के नेतृत्‍व में जापान ने भारत की हर तरह से आर्थिक और तकनीकी मदद की.

भारत को आर्थिक और तकनीकी रूप से मजबूत बनाने में शिंजो आबे का योगदान अहम

Friday July 08, 2022,

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शिंजो आबे के निधन के साथ भारत-जापान संबंधों के ए‍क महत्‍वपूर्ण अध्‍याय का समापन हो गया. भारत के साथ आबे परिवार के संबंधों का इतिहास बहुत पुराना है, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ शुरू हुआ था. शिंजो आबे के नाना नोबुसुके किशी 1957 से लेकर 1960 तक जापान के प्रधानमंत्री रहे थे. प्रधानमंत्री रहते हुए वह भारत भी आए थे, जो आजाद भारत की यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री थे. उनके और तत्‍कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के संबंध काफी प्रगाढ़ थे.

जापान के प्रधानमंत्री रहते हुए जब शिंजो आबे भारत आए तो उन्‍होंने अपने भाषण में भारत से जुड़ी उन कहानियों का जिक्र किया, जो उन्‍होंने बचपन में अपने नाना से सुनी थीं. शिंजो आबे ने प्रधानमंत्री रहते हुए चार बार भारत की यात्रा की थी. वो सबसे ज्‍यादा बार भारत आने वाले जापानी प्रधानमंत्री हैं. साथ ही वह इकलौते ऐसे जापानी प्रधानमंत्री हैं, जो भारत के गणतंत्र दिवस के समारोह में मुख्‍य अतिथि बने.  

नोबुसुके किशी के बाद शिंजो आबे जापान के दूसरे ऐसे प्रधानमंत्री हुए, जिनके भारत के साथ बहुत प्रगाढ़ रिश्‍ते बने. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी खास निकटता थी. इसकी एक बड़ी वजह दोनों नेताओं की दक्षिणपंथी रूझान भी था. वैचारिक रूप से दोनों नेताओं ने अपने देश के प्राचीन गौरव और परंपराओं की ओर लौटने की कोशिश की थी.

जहां तक आर्थिक विकास का प्रश्‍न है तो शिंजो आबे का दोनों ही देशों के आर्थिक विकास में महत्‍वपूर्ण योगदान है. भारत की महत्‍वाकांक्षी बुलेट ट्रेन परियोजना से लेकर असैन्‍य परमाणु समझौते तक शिंजो आबे का भारत को तकनीकी और आर्थिक रूप से सबल बनाने में महत्‍वपूर्ण योगदान

रहा है.    

काशी को क्‍योटो बनाने में शिंजो आबे का योगदान

जापान में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री के पद पर रहने वाले शिंजो आबे 2006 में पहली बार जापान के प्रधानमंत्री बने. उसके बाद 2012 से लेकर 2020 तक वे उस पद पर रहे. 2014 में जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तो दोनों देशों के संबंधों में और निकटता आई. दोनों देशों के बीच भविष्‍य की जिन साझा योजनाओं पर समझौता हुआ था, उसमें से एक था क्‍योटो की तर्ज पर भारत की धार्मिक नगरी काशी का विकास.

काशी को स्‍मार्ट सिटी बनाने का यह काम अभी चल रहा है. इस दिशा में शहर के इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर को आधुनिक बनाने और विकसित करने से लेकर प्राचीन ऐतिहासिक इमारतों, मंदिरों, कला, संस्‍कृति आदि का संरक्षण भी शामिल है. इस काम में जापान भारत की मदद कर रहा है. दोनों नेताओं की जिस बुनियादी सोच के कारण यह मुमकिन हो पाया, वह है आधुनिकता के साथ परंपरा का मेल. हमें मॉडर्न टेक्‍नोलॉजी तो चाहिए, लेकिन उसके साथ-साथ अपनी पुरानी धरोहरों, कला और इतिहास को भी नहीं भूलना है.  

बुलेट ट्रेन प्रोजेक्‍ट में आबे का योगदान

बुलेट ट्रेन प्रोजेक्‍ट प्रधानमंत्री मोदी की महत्‍वाकांक्षी योजना थी. 2015 में पहली बार भारत और जापान के साथ इसे लेकर करार हुआ. 2017 में दोनों देशों ने मिलकर इस प्रोजेक्‍ट की शुरुआत की. इस प्रोजेक्‍ट के पहले चरण में अहमदाबाद से लेकर मुंबई तक पहली बुलेट ट्रेन चलाई जाएगी. इस प्रोजेक्‍ट को पूरा होने में करीब 1.1 लाख करोड़ रुपए का खर्च आएगा. यह खर्च काफी बड़ा है, जो जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी (JICA) दे रही है. जापान ने इसके लिए 0.1 फीसदी की मामूली दर पर लोन दिया है. बुलेट ट्रेन की यह टेक्‍नोलॉजी, बुलेट ट्रेन और आर्थिक सहयोग, सबकुछ जापान दे रहा है. भारत में 2026 तक पहला बुलेट ट्रेन प्रोजेक्‍ट पूरा होने की संभावना है.

दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (DMIC) में जापान का योगदान

दिल्ली और मुंबई के बीच 1483 किलोमीटर लंबा दिल्ली-मुंबई इंडस्ट्रियल कॉरिडोर (DMIC) बन रहा है. इस कॉरीडोर का निर्माण भी जापान के सहयोग से हो रहा है. यह 90 अरब डॉलर की परियोजना है, जिसके लिए जापान ने भारत को 4.5 अरब डॉलर का लोन दिया है. जनवरी, 2014 में केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की कमेटी ने इस प्रोजेक्ट को अप्रूव किया था. उसके बाद शिंजो आबे भारत की यात्रा पर आए और इस प्रोजेक्‍ट के लिए अपनी ओर से हर संभव मदद का वादा किया.

भारत के साथ सिविल न्यूक्लियर समझौता

वर्ष 2016 में भारत और जापान के बीच सिविल न्यूक्लियर पैक्ट (Civil Nuclear Pact) हुआ. यह पैक्‍ट तब हुआ, जब भारत NPT (Nuclear-Proliferation-Treaty) का सदस्य नहीं था. इसके बावजूद शिंजो आबे ने भारत के साथ सिविल न्यूक्लियर पैक्ट पर हस्‍ताक्षर किए. यह भारत और जापान के संबंधों को मजबूत बनाने की दिशा में उठा बड़ा कदम था क्‍योंकि जापान ही वह देश था, जो इसके पहले न्‍यूक्‍लीयर पावर के तौर पर भारत को मान्‍यता देने के लिए राजी नहीं था. शिंजो आबे की मोदी के साथ प्रगाढ़ रिश्‍तों ने यह आखिरी बाधा भी दूर कर दी.


Edited by Manisha Pandey