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किसी को खोने के गम से कैसे बाहर निकलें, बताया सदगुरु ने

किसी को खोने के गम से कैसे बाहर निकलें, बताया सदगुरु ने

Tuesday May 21, 2019 , 5 min Read

इस बात को तो हर कोई स्वीकारेगा कि हमारे इस स्टार्टअप की तेजी से दौड़ती-भागती दुनिया में इन्वेस्टर्स से लेकर उद्यमियों तक किसी के पास भी ठहरने का वक्त नहीं है। हर कोई किसी न किसी काम में व्यस्त ही रहता है। हमारे ऊपर प्रोफेशनल काम और डेडलाइन को पूरा करने का इतना दबाव है कि लगातार तनावग्रस्त जिंदगी बीतती है।


इसलिए जब मुझे हार्वर्ड इंडिया कॉन्फ्रेंस के दौरान करिश्माई भारतीय आध्यात्मिक गुरू सद्गुरु से मिलने का मौका मिला, तो मैंने उनसे यह सवाल पूछने का मौका नहीं छोड़ा: "सद्गुरु, हर कोई सफलता, पैसा और शोहरत के पीछे भाग रहा है। हम में से अधिकांश लोग अभी भी सफलता के पीछे भाग रहे हैं, हम देखते हैं कि हमारे पास कई सारी उपलब्धियां हैं लेकिन उसके बावजूद हम दुखी हैं- खुद से नाखुश हैं अपने इस सफर से खुश नहीं हैं। हम सफलता के बदलते मापदंडों और लक्ष्य के बीच संतुलन और शांति की भावना को प्राप्त करने के लिए क्या कर सकते हैं? " 


मेरे इस सवाल का सदगुरु ने बड़ी शांति और अपनी शैली में जवाब दिया। उन्होंने कहा, 'आजकल आम का मौसम है। भारत में हर कोई आम की चर्चा करता है। अब आम दुकानों में मिलते हैं। लेकिन हमारे वक्त लोग बाग जाते थे और सीधे पेड़ से तोड़कर आम खाते थे। अब फर्ज कीजिए कि आप आम का पेड़ देखते हैं और उसकी जड़ को खोदना शुरू कर देते हैं। आप ये सोचते हैं कि आम के पेड़ की जड़ में आम है, तो क्या आप कभी आम पा सकते हैं?' सदगुरु ने आगे कहा,


'इस तरह आप कभी आम पा ही नहीं सकते। क्योंकि आप सही दिशा में प्रयत्न ही नहीं कर रहे हैं। आप जिस दिशा में हैं उधर आम मिल ही नहीं सकता।'


उन्होंने आगे कहा कि इसी तरह इंसानों का अनुभव होता है, चाहे दुख हो, आनंद हो, पीड़ा हो परमानंद हो, शांति हो या युद्ध ये सब केवल आपके भीतर से निकल सकता है। आपके अपने अनुभव उस चीज का परिणाम नहीं है जो आप चाहते हैं, बल्कि ये तो वो है जो आपप अपने भीतर खोजना चाहते हैं।


इसके बाद सवाल उठता है कि जब सब कुछ आपके नियंत्रण में है तो फिर हमेशा उस मायावी खुशी के लिए बाहर क्यों खोजना? हम फिर क्यों दुनिया को सुधारने की चाहत रखते हैं? हम अपनी मनःस्थिति का निर्धारण करने के लिए अपने से बाहर की परिस्थितियों पर क्यों निर्भर रहें? हम दूसरों से फिर क्यों उम्मीद करते हैं?


सदगुरु ने मेरी इन जिज्ञासाओं का शांति से समाधान किया। उन्होंने कहा कि मानवीय अनुभूतियां हमारे भीतर से जन्म लेती हैं और अगर हम जानना चाहते हैं कि आनंद में रहने और शांतिपूर्ण जीवन बिताने का क्या मतलब है तो हमें केवल अपने भीतर झांकना होगा।


स्वयं के गुरु बनो

अगर आप अपने भीतर देख सकते हैं और अपने विचारों और भावनाओं को काबू में रखने की कला में महारत हासिल कर लेते हैं तो कभी भी खुशी पाना आपके लिए मुश्किल नहीं होगा। मुश्किल तभी होती है जब आपके खुद के विचार और भावनाएं आपके खिलाफ हो जाती हैं और जब आप खुद को बदलने के बजाय पूरी दुनिया को ठीक करने की कोशिश में लग जाते हैं। ऐसा कभी होना वाला नहीं है।


अगर स्पष्ट तौर पर कहा जाए तो आपके जीवन में सबसे करीबी लोग फिर चाहे आपके पति, पत्नी, माता-पिता, बच्चे, प्रेमी, प्रेमिका, भाई-बहन ही क्यों न हों- कोई भी आपसे 100 फीसदी नहीं जुड़ा होता है या आपकी तरह ही चीजों को नहीं देखता। लेकिन भले ही वे आपसे 51 फीसदी जुड़े हों आपके पास उस रिश्ते में एक निंयत्रित हिस्सेदारी है।


फिर भी जब आपकी बात आती है तो आपको अपने आप से 100 फीसदी जुड़े रहने की जरूरत होती है। आप अपने विचारों पर निंयत्रण प्राप्त कर सकते हैं और अपने मन की परिस्थितियों को काबू में रख सकते हैं। सीधे तौर पर कहा जाए तो अगर आप खुद के विचारों, भावनाओं और मानसिक अस्तित्व को प्रशिक्षित करने में असमर्थ हैं तो आप बाहरी दुनिया को बदलने का सपना कैसे देख सकते हैं?


फिर हम लाखों लोगों को कैसे प्रभावित कर सकते हैं? जब हम स्वयं अपने विचारों और कार्यों को प्रतिबिंबित करने में सक्षम नहीं होंगे, तो हम दूसरों के जीवन के बारे में उनके दृष्टिकोण को कैसे बदल सकते हैं? यदि हम अपने स्वयं के सर्वश्रेष्ठ संस्करण नहीं हो सकते हैं, तो हम एक अच्छा नेतृत्व कैसे दे सकते हैं। सच्चाई यह है कि हमें अपने विचारों और भावनाओं को जानने के लिए हर समय सीखने की आवश्यकता है, ताकि हम उस खुशी और शांति को पा सकें - जो किसी निकट और प्रिय व्यक्ति की अपूरणीय क्षति के सामने है। यह एक ऐसा अनुभव है जो हमें चुप रहना सिखा देता है। 


लोग कहते हैं कि वक्त सभी जख्मों को भर देता है, यहां तक कि जो किसी प्रियजन को खोने के दर्द को भी। लेकिन हमें फिर भी एक धीमी पीड़ा होती रहती है। तो हम किसी प्रियजन को खोने का गम कैसे भुला सकते हैं? इसके लिए भी सदगुरु ने कहा कि जवाब हमारे भीतर भी है। हम उस क्षति को कैसे कैसे याद रखते हैं, इस पर ये निर्भर करता है।


वे कहते हैं, 'हम सभी जानते हैं कि एकमात्र सत्य मृत्यु है और हम सभी को मरना है। लेकिन हम उस मृत व्यक्ति को कैसे याद रखते हैं ये हमारे ऊपर है। क्या हम उस व्यक्ति को याद करना चाहते हैं जिसने हमें दर्द और उदासी के साथ छोड़ दिया हो या फिर हम उन लोगों को याद रखना चाहते हैं जिन्होंने हमें खुशी दी। जो व्यक्ति जा चुका है वो हमसे क्या चाहेगा? सुख या दुख? क्या आप उस व्यक्ति की याद को संजोना चाहते हैं जिसने आपको छोड़ दिया है या आप उस व्यक्ति के बारे बुरा महसूस करना चाहते हैं? इन सारे सवालों के जवाब आपके भीतर हैं।'


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