भारत में पहली बार हवा से बात करेगा पचपन करोड़ डॉलर का हाईस्पीड स्टार्टअप
"अत्याधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर वाली मास रैपिड ट्रांसपोर्टेशन टेक्नोलॉजी के माध्यम से पीएम मोदी बुलेट ट्रेन, सी प्लेन, फ्रेट रेल रोड, हाइब्रिड बस, गतिमान एक्सप्रेस, सागरमाला के साथ देश के 28 बड़े शहरों में रिंग रोड का भी जाल बिछा देना चाहते हैं। इसी क्रम में अमेरिकी कंपनी एचटीटी के 55 करोड़ की लागत वाले 'हाइपरलूप' स्टार्टअप को हरी झंडी मिल गई है।"
महाराष्ट्र सरकार से हरी झंडी मिलने के बाद अमेरिकी कंपनी हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन टेक्नॉलजीज (एचटीटी) का 55 करोड़ की लागत वाला हाइपरलूप स्टार्टअप भारत में पहली बार मुंबई-पुणे मार्ग पर हवा से बातें करने के लिए कमर कस चुका है। यद्यपि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल फरवरी में ही आज से लगभग छह वर्ष पूर्व अमेरिकी अरबपति उद्यमी एलन मस्क की खोज पर केंद्रित इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट की आधारशिला रख दी थी। उस समय वर्जिन ग्रुप के चेयरमैन रिचर्ड ब्रैन्सन ने पहली बार मैग्नेटिक महाराष्ट्र निवेशक सम्मेलन के दौरान इसका खुलासा किया था। अब ऑरिजिनल प्रोजेक्ट प्रॉपनेंट (ओपीपी) के रूप में महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई-पुणे के बीच मात्र 35 मिनट में यात्रियों को पहुंचाने का दावा करने वाले वर्जिन हाइपरलूप वन-डीपी वर्ल्ड कंसोर्टियम को मंजूरी दे दी है। भारत जैसी बढ़ती अर्थव्यवस्था में इसे भविष्य की परिवहन तकनीक की दृष्टि से एक बेहतर और भारी-भरकम निवेश माना जा रहा है। इस परियोजना का सामाजिक-आर्थिक लाभ तो 55 अरब डॉलर अनुमानित है।
अत्याधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर वाली मास रैपिड ट्रांसपोर्टेशन टेक्नोलॉजी के माध्यम से यात्रियों को हाईस्पीड सफर का विकल्प देने में जुटे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दरअसल, बुलेट ट्रेन, सी प्लेन, फ्रेट रेल रोड, हाइब्रिड बस, गतिमान एक्सप्रेस, सागरमाला के साथ ही देश के 28 बड़े शहरों में रिंग रोड के जाल बिछा देना चाहते हैं। हाइपरलूप के टिंकर जॉन गार्डी और एलन मस्क का दावा है कि मैग्नेटिक लेविटेशन टेक्नॉलॉजी से भी ज्यादा विकसित हाइपरलूप ट्रेन बिजली की मामूली खपत के साथ बिल्कुल प्रदूषण मुक्त होगी। अनुमानतः वर्ष 2024 तक यह मुंबई-पुणे के बीच बारह सौ किलो मीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से फर्राटे भरने लगेगी।
महाराष्ट्र से पहले आंध्र प्रदेश सरकार ने 2017 में विजयवाड़ा और अमरावती शहरों को हाइपरलूप से जोड़ने के लिए एचटीटी से समझौता किया था। हाइपरलूप वन ने पांच, दिल्ली-मुंबई, बैंगलोर-तिरुवनंतपुरम, चेन्नई-बैंगलोर, मुंबई-चेन्नई और मुंबई-कोलकाता रूट पर अपने इस प्रोजेक्ट का प्रस्ताव दिया था। इस समय विश्व के अन्य पांच देशों संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका, कनाडा, फिनलैंड और नीदर लैंड में इस प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है। मुंबई-पुणे के बीच की 150 किलोमीटर की दूरी 35 मिनट में तय करने वाली हाइपरलूप वन से दिल्ली-मुंबई का सफर 60 मिनट, मुंबई-चेन्नै का 30 मिनट में पूरा हो सकता है।
एलन मस्क ने वर्ष 2013 में एक वाइटपेपर के रूप में हाइपरलूप की बेसिक डिजाइन से दुनिया को रू-ब-रू कराया था। उन्होंने हाइपरलूप कॉन्सेप्ट को ‘परिवहन का पाँचवां मोड़’ कहा है। हाइपरलूप एक ट्यूब ट्रांसपॉर्ट टेक्नॉलजी है। इसके तहत खंभों के ऊपर (एलिवेटेड) ट्यूब बिछाई जाती है। इसके भीतर बुलेट जैसी शक्ल की लंबी सिंगल बोगी हवा में तैरते हुए दौड़ लगाती है। इसमें घर्षण नहीं होता है। वैक्यूम ट्यूब में कैपसूल को चुंबकीय शक्ति से दौड़ाया जाता है। बिजली के अलावा इसमें सौर और पवन ऊर्जा का भी उपयोग होता है। इस तकनीक में हाईपरलूप वन सबसे अग्रणी कंपनी है। इसके अलावा डिनक्लिक्स ग्राउंडवर्क्स, ऐकॉम, लक्स हाइपरलूप नेटवर्क, हाइपरलूप इंडिया, इंफी-अल्फा आदि भी इस अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी वाले स्पीड स्टार्टअप के क्षेत्र में सक्रिय हैं। वर्जिन हाइपरलूप वन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जे. वाल्डर का कहना है कि यह परिवहन के नए युग की शुरुआत है। भारत में हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम का विश्व-इतिहास रचा जा रहा है।
दरअसल, 'हाईपरलूप वन' कंपनी एक नए तरह का भारी निवेश वाला स्टार्टअप है। दो साल पहले हाइपरलूप ट्रेन प्रणाली में पांच भारतीय कंपनियों डिनक्लिक्स ग्राउंडवर्क्स, ऐकॉम, लक्स हाइपरलूप नेटवर्क, हाइपरलूप इंडिया और इंफी-अल्फा ने पांच अलग-अलग रूटों के लिए दिलचस्पी दिखाई थी। हाईपरलूप वन ने दुनिया भर के देशों से इस तकनीक की परियोजनाओं में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था, जिसके जवाब में 90 देशों से 2600 कंपनियों ने अपने प्रस्ताव भेजे थे। इनके मूल्यांकन के बाद जिन 26 अरब डालर के संभावित निवेश वाले 35 प्रस्तावों को गंभीर माना गया है, उनमें सर्वाधिक कंपनियां भारत की रही हैं। यद्यपि हाइपरलूप वन के मालिक एलन मस्क और रिचर्ड ब्रैन्सन की ओर से दावा किया गया है कि इस 'सुपर फास्ट, सुपर चीप' परियोजना से 36 अरब डॉलर के रोजगार पैदा होंगे, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक, बहुतों के लिए यह एक डरावना अनुभव भी हो सकता है। यह तकनीक क्रांतिकारी है मगर आसान नहीं।
इस परिवहन प्रणाली की कई कमियां भी उल्लेखनीय हैं। मसलन, यदि ट्यूब में वैक्यूम से छेड़छाड़ की जाती है, तो इसका मतलब होगा कि उस समय ट्यूब के अंदर किसी की भी तत्काल मृत्यु हो सकती है। हाइपरलूप किसी समय रास्ते में रुक जाए, या इसकी किसी भी मशीनरी में खराबी आ जाए तो ऐसे में मरम्मत करने वाली टीम अपना काम कैसे करेगी? इसमें एक सीलबंद सुरंग में प्रवेश करना होता है, जो आंशिक रूप से वैक्यूम होती है। हाइपरलूप के निर्वात के आसपास के पतले टयूबिंग में कुछ छेदों की शूटिंग करने से हवा के झोंके पैदा हो सकते हैं। यह सिस्टम हर यात्री के लिए जानलेवा हो सकता है। इसके साथ ही कैप्सूल की उच्च गति से यात्रियों को चक्कर आने का अंदेशा रहेगा।