रुक जाना नहीं: इंग्लिश पर पकड़ बनाकर सफलता पाने वाले युवा IAS बालाजी डी.के. की प्रेरणादायक कहानी
हम हिंदी और भारतीय भाषाओं के विद्यार्थी अक्सर अंग्रेज़ी से बहुत ज़्यादा डरते हैं और उसे हौआ बना लेते हैं। हिंदी मीडियम के कई युवा तो अंग्रेज़ी से इतना डर जाते हैं कि वे इंग्लिश में पढ़कर या इंग्लिश में परीक्षा देकर सफलता पाने का विचार भी मन में नहीं लाते।
कर्नाटक के तुमकुर जिले के एक साधारण परिवार में जन्मे बालाजी डी.के. की कहानी इस मायने में बड़ी दिलचस्प है। बालाजी की मातृभाषा कन्नड़ थी। इंग्लिश कमज़ोर होने के बावजूद उन्होंने अपनी इंग्लिश पर मेहनत कर उसे मज़बूत बनाया और आख़िरकार इंग्लिश मीडियम से सिविल सेवा परीक्षा देकर IAS सेवा में स्थान हासिल किया। बालाजी ने अभ्यर्थियों की मदद के लिए सिविल सेवा मुख्य परीक्षा के एथिक्स के पेपर पर एक बेहतरीन किताब भी लिखी है।
IAS का एग्ज़ाम क्लियर करना बचपन से ही मेरा सपना था। यह सब तब शुरू हुआ जब मैं 5वीं कक्षा में था। पिताजी मुझ पर गुस्सा हो गए थे और उन्होंने मुझे पीटा भी था। मैं रोते-रोते सिसक रहा था। तभी टी.वी. पर GK का प्रश्न पूछा गया था। मैंने इसका सही उत्तर दिया, जिससे मेरे पिताजी बहुत खुश हुए। उन्होंने मुझे गले से लगा लिया। उनका गुस्सा गर्व और खुशी में बदल गया था। इससे मुझे एहसास हुआ कि सामान्य ज्ञान की मदद से किसी को भी जीता जा सकता है। फिर, मैंने GK में इतनी गहरी रुचि विकसित की, जिससे कि मैं देश की सबसे कठिन GK परीक्षा (मैं इस तरह सोच रहा था) को क्लियर कर सकूं। फिर, मुझे बताया गया कि IAS एक ऐसी परीक्षा है, जिसमें सबसे कठिन GK आता है।
मैं श्री सचिदानंद राव सर से निजी ट्यूशन ले रहा था। वे हमेशा कहा करते थे कि व्यक्ति अपना जीवन ऐसा बनाना चाहिए कि उसकी मृत्यु के 4 दिन बाद तक कम से कम 4 व्यक्ति उसे याद रखें। इन शब्दों ने IAS बनने के मेरे संकल्प को मजबूत कर दिया। इसके साथ ही, एक अन्य शिक्षक श्री जगदीशैया के.एस. सर भी सफल IAS, IPS उम्मीदवारों की कहानियां सुनाते थे। यह सोने पर सुहागे की तरह था।
उसके बाद, जब मैंने 10वीं कक्षा की परीक्षा दी थी, तभी मेरे गृहनगर (कोरटगेरे, ज़िला-तुमकुर,कर्नाटक) से श्री जगदीश के.जे. ने ऑल इंडिया रैंक 58 के साथ IAS की परीक्षा पास की। मेरे लिए यह स्पष्ट संकेत था कि मुझे अपने गृहनगर का अगला जगदीश बनना चाहिए।
अब IAS बनने का सपना औपचारिक रूप से शुरू हो गया था।
फिर मेरी 10वीं कक्षा का परिणाम आया। मैंने गणित में 100% अंकों के साथ 93.76% से दसवीं कक्षा पास की। सभी ने सुझाव दिया कि मुझे ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा के लिए विज्ञान का विकल्प चुनना चाहिए । लेकिन, मेरे दिल ने कहा कि मुझे अपने आईएएस बनने के सपने को आगे बढ़ाने के लिए मानविकी का चयन करना चाहिए।
जैसा कि आप सभी जानते हैं, साइंस स्ट्रीम रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान करती है। एक मध्यम वर्गीय परिवार (मेरे पिता बहुत गरीब परिवार से हैं। मेरे दादा जी परिवार से दूर हो गए थे। मेरी दादी ने दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करके मेरे पिताजी का पालन-पोषण किया। मेरे पिताजी कई जगहों पर काम करते थे और किसी तरह उन्हें ग्रामीण बैंक में एक नौकरी मिल गई। मेरी माँ भी आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवार से हैं) की पृष्ठभूमि से होने को ध्यान में रखते हुए, मेरे लिए एक अच्छी नौकरी खोजना बहुत महत्वपूर्ण था। फिर भी, मैं अपने आई.ए.एस. के सपने को आगे बढ़ाना चाहता था। आश्चर्यजनक रूप से, मेरे माता-पिता ने मुझे पूर्ण सहयोग दिया और मुझे अपना सपना साकार करने का अवसर दिया। सभी ने मेरे माता-पिता को पागल कहा। फिर भी, वे मेरे साथ खड़े रहे।
11वीं कक्षा में प्रवेश होने के पहले सप्ताह में ही एक किताबों की दुकान पर लटकी हुई पत्रिका ने मेरा ध्यान आकर्षित किया। उस अंक के कवर पेज पर श्री एस. नागराजन (AIR 1, CSE 2005) की तस्वीरें छपी हुई थीं। इन तस्वीरों ने मुझे उस पत्रिका को खरीदने के लिए मजबूर कर दिया। परन्तु अफसोस! इसस बात का था कि मुझे उस पत्रिका में कुछ भी समझ नहीं आया। मुझे तब एहसास हुआ कि मेरी अंग्रेजी कितनी खराब है। मैंने फैसला किया कि IAS परीक्षा को क्लियर करने के लिए मुझे पहले इंग्लिश सीखनी चाहिए। मैंने अपनी रणनीति तैयार की।
उस समय, मैं रोजाना बस से 26 किमी दूर कॉलेज (जो तुमकुर में था) की यात्रा करता था। मैंने केवल वीडियो-कोच-बसों से यात्रा करने का फैसला किया। मैंने कन्नड़ और तेलुगु फिल्मों के संवादों का अनुवाद अंग्रेज़ी में करना शुरू कर दिया। जब भी मुझे किसी कठिनाई का सामना करना पड़ता था, तो मैं उस वाक्य को लिख लेता था और अगले दिन अंग्रेजी के शिक्षकों के साथ चर्चा करके उन्हें समझ लेता था। मैं हमेशा मन ही मन अंग्रेजी के वाक्यों को बनाता रहता था। मैंने 3 महीने तक सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी को जिया। इससे मुझे अंग्रेजी पर पकड़ बनाने में वास्तव में मदद मिली।
जब मैं 12वीं कक्षा में था तो दो विचार मुझे बार-बार परेशान करते थे।
पहला- अगर मैं IAS क्लियर नहीं कर पाया तो क्या होगा? क्या मैं जीवन को व्यवस्थित कर पाऊंगा?
दूसरा- मैं इन मानविकी विषयों को ख़ुद ही पढ़ सकता था। क्या मुझे इसे एक नियमित पाठ्यक्रम के रूप में आगे पढ़ना चाहिए? या मुझे कोई अन्य प्रोफ़ेशनल कोर्स करना चाहिए?
फिर, मेरे कॉलेज के प्रिंसिपल श्री एन.पी. रवींद्रनाथ जी ने सभी शंकाओं को दूर करते हुए मुझे आत्मविश्वास प्रदान किया। उन्होंने मुझे बैचलर ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट (बीबीएम) करने और फिर एमबीए करने का सुझाव दिया।
एमबीए करने के बाद, मुझे एक सामुदायिक संगठन के बारे में पता चला जो IAS उम्मीदवारों के लिए मुफ्त बोर्डिंग, लॉजिंग और कोचिंग की सुविधा देता था। जब मैंने उनसे संपर्क किया, तो मुझे अपमानित किया गया । इसने फिर से मेरे संकल्प को मजबूत कर दिया। अंत में मेरा संकल्प सफल हुआ और मैं आन्ध्र प्रदेश कैडर में आई.ए.एस. अधिकारी हूँ।
मेरी ओर से सुझाव यह है कि एक ही विषय के लिए कई पुस्तकों के पीछे न भागें। याद रखें कि एक पुस्तक को दो बार पढ़ना दो पुस्तकों को एक बार पढ़ने से बेहतर है।
गेस्ट लेखक निशान्त जैन की मोटिवेशनल किताब 'रुक जाना नहीं' में सफलता की इसी तरह की और भी कहानियां दी गई हैं, जिसे आप अमेजन से ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं।
(योरस्टोरी पर ऐसी ही प्रेरणादायी कहानियां पढ़ने के लिए थर्सडे इंस्पिरेशन में हर हफ्ते पढ़ें 'सफलता की एक नई कहानी निशान्त जैन की ज़ुबानी...')