IIT दिल्ली के नए अविष्कार से दृष्टिहीन भी 'देख' सकेंगे किताबों में बने डायग्राम
आईआईटी दिल्ली के रेज़्ड लाइन्स फ़ाउंडेशन ने एक तकनीक विकसित की है, जो 3 डी प्रिटिंग का इस्तेमाल करके उम्दा क्वॉलिटी के टैक्टाइल डिज़ाइन्स तैयार करता है। इनका इस्तेमाल ब्रेल लिपि में तैयार होने वाली किताबों और प्रिटिंग मटीरियल्स में होता है। इसकी मदद से देखने में असक्षम लोगों को पहले से कहीं अधिक सहूलियत मिलती है।
अच्छे 3 ड्री डायग्राम्स के अभाव में दृष्टिबाधित विद्यार्थियों को साइंस और गणित इत्यादि के विषयों को पढ़ने और समझने में काफ़ी मुश्क़िलें पेश आती है। यह फ़ाउंडेशन इस चुनौती को ही दूर करने की कोशिश कर रहा है। आईआईटी दिल्ली से पीएचडी की पढ़ाई कर रहे पीयूष खन्ना का मानना है, "आमतौर पर भारत में उपलब्ध ब्रेल लिपि की किताबों में मूलरूप से टेक्स्ट ही अधिक होता है। इस वजह से दृष्टिबाधित लोगों को नई जेनरेशन की पढ़ाई के पैटर्न के साथ कदम से कदम मिलाने में बहुत सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।"
देखने में असक्षम विद्यार्थियों की मदद के उद्देश्य के साथ ही 36 वर्षीय पीयूष ने जुलाई, 2018 इस फ़ाउंडेशन की शुरुआत की, जो एक सोशल वेलफ़ेयर कंपनी है। यह फ़ाउंडेशन एक ख़ास तकनीक की मदद से टैक्टाइल डायग्राम तैयार करता है, जिसके अंतर्गत ख़ास तरह के सांचों और थर्मोफ़ार्मिंग की मदद से टैक्टाइल डायग्राम्स तैयार किए जाते हैं।
आईआईटी दिल्ली के फ़ैकल्टी मेंबर्स, रिसर्च स्टाफ़ और विद्यार्थी इस फ़ाउंडेशन के साथ जुड़े हुए हैं। यह टीम दृष्टिबाधित लोगों की मदद हेतु किफ़ायती और सुलभ तकनीकों के विकास की दिशा में काम करती है। 2013 में फ़ाउंडेशन की टीम ने दृष्टिबाधित लोगों के लिए ख़ुद के दमपर सुरक्षित तौर पर एक-जगह से दूसरी जगह जाने के लिए 'स्मार्ट केन' नाम से एक प्रोडक्ट विकसित किया था। इस प्रोडक्ट को विकसित करने के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी, दृष्टिबाधित लोगों को इसका इस्तेमाल करना सिखाना। इस चुनौती को ख़त्म करने की प्रेरणा के साथ ही 3 डी टैक्टाइल डायग्राम्स बनाने की दिशा में फ़ाउंडेशन ने रिसर्च शुरू की। टीम ने अपना पहला टैक्टाइल डायग्राम मसूर की दाल से तैयार किया था।
पीयूष बताते हैं, "हमें एहसास हुआ कि दृष्टिबाधित विद्यार्थी स्कूल के बाद विज्ञान और गणित जैसे विषयों से किनारा कर लेते हैं क्योंकि ब्रेल लिपि में तैयार किताबों डायग्राम्स नहीं होते थे और पढ़ाई के लिए वे पूरी तरह से शिक्षकों पर ही निर्भर थे।"
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक़, पूरी दुनिया में 285 मिलियन लोग देखने में असक्षम हैं, जिनमें से 39 मिलियन भारत में हैं। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 50 लाख से ज़्यादा दृष्टिबाधित लोग हैं, जो दुनिया के किसी भी देश के मुक़ाबले कहीं अधिक है। पीयूष बताते हैं कि इस आबादी का बड़ा हिस्सा बच्चों का है, जो 5 से 19 साल के बीच हैं।
इस मुहिम को बड़े स्तर पर ले जाने के लिए आईआईटी दिल्ली की टीम ने दृष्टिबाधित लोगों, उनके शिक्षकों और उनसे जुड़े संगठनों के साथ काफ़ी लंबे समय तक गहन रिसर्च की। लॉन्च के बाद महज़ 6 महीनों के भीतर, आरएलएफ़ की 12 सदस्यीय टीम ने 2 हज़ार टैक्टाइल सप्लीमेंट बुक्स तैयार की हैं। फ़ाउंडेशन इन-हाउस तौर पर एक महीने में 500 किताबें तैयार कर सकता है। फ़ाउंडेशन 6वीं से 12वीं कक्षा तक पढ़ाई जाने वाली गणित, विज्ञान और भूगोल आदि विषयों की किताबों के लिए 1 हज़ार 3 ड्री डायग्राम्स की 70 हज़ार टैक्टाइल कॉपीज़ तैयार कर चुका है। कंपनी के पास वेबसाइट और अन्य संगठनों की ओर से भी ऑर्डर्स आते रहते हैं।
2015 में इस प्रोजेक्ट की शुरुआत सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस इन टैक्टाइल ग्राफ़िक्स के तौर पर हुई थी और बाद में इसका नाम बदलकर रेज़्ड लाइन्स फ़ाउंडेशन कर दिया गया। शुरुआती तीन सालों में इसे मिनिस्ट्री ऑफ़ इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इन्फ़र्मेशन, भारत सरकार का सहयोग मिला। मंत्रालय ने फ़ाउंडेशन के साथ अपना करार दो सालों के लिए और बढ़ा दिया है।
पीयूष ने बताया कि फ़ाउंडेशन आईआईटी सोनीपत कैंपस में अपने ऑपरेशन्स चला रहा है। आईआईटी दिल्ली के फ़ैकल्टी सदस्य, प्रोफ़ेसर एम बालाकृष्णन और प्रोफ़ेसर पीवीएम राव भी इस फ़ाउंडेशन का हिस्सा हैं। आरएलएफ़ फ़ाउंडेशन को एनसीईआरटी, राज्यों के शिक्षा विभागों, सर्व शिक्षा अभियान आदि संगठनों से भी मदद मिलती रहती है।
पीयूष बताते हैं कि यह एक नॉन-प्राफ़िट संगठन है और इसलिए वे पब्लिक फ़ाइनैंसिंग और सीएसआर की तलाश में रहते हैं ताकि वे अपने ऑपरेशन्स को और भी बड़े स्तर तक पहुंचा सकें। आरएलएफ़ का उद्देश्य है कि आने वाले तीन सालों के भीतर दृष्टिबाधित लोगों के लिए काम करने वाले 200 संगठनों तक मदद पहुंचाई जा सके और पूरे देश में 25 हज़ार से भी ज़्यादा टैक्टाइल किताबों का वितरण किया जा के। कंपनी भारत के बाहर देखने में असक्षम लोगों के लिए काम करने वाले संगठनों तक भी अपने उत्पाद को पहुंचाना चाहती है।
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