IIT मद्रास के नए रिसर्च सेंटर में नियमित अंतराल पर होगा वेस्ट वाटर का एनालिसिस
IIT मद्रास का इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लीन वाटर (ICCW) एक नया रिसर्च सेंटर स्थापित करेगा जो खास कर महामारी के दौर में पानी की स्वच्छता सुनिश्चित करने के लिए जरूरी वेस्ट वाटर की विस्तृत समझ देगा।
IIT मद्रास एक नया रिसर्च सेंटर स्थापित कर रहा है जिसका उद्देश्य शहर के वेस्ट वाटर की जांच कर उसमें मौजूद जैविक सूचकों और रसायनों का पता लगाना और यह डेटा सार्वजनिक करना है। यह प्लांट एक खुफिया इकाई के रूप में काम करते हुए वायरस फैलने के मामलों पर ध्यान रखेगा और इन्हें रोकेगा।
Wastewater-Based Epidemiology (WBE) रिसर्च सेंटर की स्थापना इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लीन वाटर (ICCW) ने की है। प्रोजेेक्ट के लिए 1 मिलियन डॉलर का आर्थिक समर्थन CryptoRelief ने दिया है जो संदीप नेलवाल की खास पहल है।
वेस्ट वाटर के अलग-अलग स्रोतों और ट्रीटमेंट संयंत्रों से प्राप्त आंकड़ों का विश्लेषण किया जाएगा और एक डैशबोर्ड पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराया जाएगा। धीरे-धीरे भारत के अन्य हिस्सों में भी इस सुविधा का विस्तार किया जाएगा।
वेस्ट वाटर विश्लेषण के कई लाभों में एक रासायनिक और जैविक अणुओं का अध्ययन करने के लिए वाटर फिंगरप्रिंटिंग करना शामिल है। डब्ल्यूबीई प्रोजेक्ट में कई अन्य पहलू हैं जैसे कि प्रदूषकों, कीटनाशकों, वैध और अवैध दवाओं पर ध्यान रखना जिनका किसी आबादी के लिए खतरनाक होना लाजमी है।
प्रोजेक्ट के प्रभाव पर प्रकाश डालते हुए पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित और इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लीन वाटर (ICCW), IIT मद्रास के प्रभारी-प्राचार्य प्रो. टी. प्रदीप ने कहा, "लोगों को स्वच्छ जल आपूर्ति करने के लिए कचरा जल की विस्तृत समझ आवश्यक है।"
ICCW टीम का प्रयास शहर का हाइड्रो-इन्फॉर्मेटिक्स प्लेटफॉर्म बनाना है। इसमें उपयुक्त मॉडलिंग टूल होंगे जिनकी मदद से WBE के अध्ययनों से प्राप्त डेटा की स्पेशियो-टेम्पोरल जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी।
WBE को एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक सेवन से बैक्टीरिया-रोधी प्रतिरोध बढ़ने जैसे चिंताजनक मुद्दों का पता लगाने की जिम्मेदारी दी जाएगी। फार्मास्यूटिकल्स और व्यक्तिगत देखभाल के उत्पादों के उपयोग पर नियंत्रण की सही नीतियों को समझना सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा।
ICCW कम लागत पर स्वच्छ पानी प्राप्त करने की अत्याधुनिक तकनीकों का विकास कर रहा है। नियमित अंतराल पर कचरा जल के विश्लेषण का विश्वस्त माध्यम बनाने से समुदाय को बेहतर जल सुरक्षा सुनिश्चित होगी। IIT मद्रास और ICCW की दूरदृष्टि कचरा जल आधारित महामारी विज्ञान अनुसंधान के बल पर एक अधिक स्वस्थ देश का निर्माण करने के लिए व्यावहारिक समाधान देना है।
प्रोजेक्ट के बारे में क्रिप्टो रिलीफ के फाउंडर संदीप नेलवाल ने बताया, "हम कचरा जल विश्लेषण के माध्यम से आम जनता, नीति निर्माता, चिकित्सक और सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी सभी को कोविड 19 महामारी के दौर से बाहर निकलने में मदद करना चाहते हैं।"
क्रिप्टो रिलीफ फंड देश के कई स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक वित्तपोषण कर रहा है।
इस अनुदान से आधुनिक अनुसंधान में मदद मिलेगी और निरंतर बदलते वायरस पैटर्न को लेकर दूरदर्शिता प्राप्त होने के साथ-साथ हमें बेहतर तैयारी करने का अवसर भी मिलेगा। पूरी दुनिया में कोविड-19 फैलने से इसके संचार को समझना कठिन रहा है। इसलिए यह समय की मांग है कि किसी आबादी के स्वास्थ्य को बेहतर समझ कर बीमारी का पूर्वानुमान और नियंत्रण करें चाहे वह महामारी का रूप ले या स्थानीय रहे और इसमें IIT मद्रास का यह नया केंद्र अहम् योगदान देगा।
वेस्ट वाटर में मौजूद अणु लोगों के खान-पान और स्वास्थ्य में बदलाव के संकेत देते हैं। किसी व्यक्ति या घर के शौचालय के मल से उसके उपयोगकर्ता के बारे में बहुत कुछ जानकारी मिल सकती है। इसी तरह शहर के सीवेज से उसके निवासियों के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी मिलती है। Wastewater-Based Epidemiology (WBE) इसे समझने का अच्छा माध्यम है और इसे सीवेज से रासायनिक जानकारी जुटाना कह सकते हैं।
वेस्ट वाटर एनालिसिस से किसी आबादी में सार्स कोविड-2 के अलावा कई अन्य रोगजनकों के प्रकोप का पता लगाया जा सकता है। विश्लेषण की तकनीकों में पोलीमरेज़-चेन-रिएक्शन (पीसीआर) और मास स्पेक्ट्रोमेट्री (एमएस) के साथ-साथ डेटा एनालिटिक्स का तालमेल किया जाएगा।
आपको बता दें कि IN COVID SUPPORT FZE LLC जो कि क्रिप्टो रिलीफ नाम से प्रसिद्ध है उसकी घोषणा 24 अप्रैल 2021 को की गई जो भारत में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर का दौर था।