ऐंजल टैक्स के अलावा और किन चीज़ों में भारतीय स्टार्टअप्स को मिल सकती है 'आज़ादी'?
भारत देश अपनी स्वतंत्रता की 73वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है। इस मौक़े पर देश के स्टार्टअप्स को सरकार ने एक शानदार तोहफ़ा दिया है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) ने 10 अगस्त, 2019 को एक अधिसूचना जारी कर बताया कि स्टार्टअप्स और ऐंजल इनवेस्टर्स अब ऐंजल टैक्स के दायरे के अंदर नहीं आएंगे।
अभी तक ऐंजल टैक्स देश के स्टार्टअप ईकोसिस्टम के ऊपर एक तलवार की तरह लटक रहा था और इस वजह से प्रतिभागियों के अंदर एक असहजता थी। लंबे संघर्ष और सरकार के साथ लगातार बातचीत के बाद यह परिणाम सामने आया है।
यही समय है जब सरकार, नीति निर्माताओं और स्टार्टअप ईकोसिस्टम को स्थापित व्यवस्था और भविष्य पर विचार करना चाहिए। भारत का स्टार्टअप ईकोसिस्टम, दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप ईकोसिस्टम है और पूरी संभावना है कि जल्द ही भारत इस मामले में दूसरे पायदान पर पहुंच जाएगा।
सरकार ने स्टार्टअप्स को महत्व देते हुए 2016 में स्टार्टअप इंडिया मुहिम की शुरुआत की थी। यह देश के स्टार्टअप ईकोसिस्टम के लिए बहुत ही कारगर और लाभकर साबित हुआ। इस मुहिम के चलते स्टार्टअप्स को बड़े शहरों के साथ-साथ छोटे शहरों में भी अपने उत्पाद और सुविधाएं पहुंचाने का अच्छा मौक़ा मिला और काम करने की सहूलियत भी मिली।
चुनौतियां
जहां तक चुनौतियों का सवाल है तो अभी भी देश के स्टार्टअप ईकोसिस्टम में कैपिटल, मार्केट डिमांड और बिज़नेस करने के माहौल और सहूलियत को लेकर कई चुनौतियां मुंह फैलाए खड़ी हैं।
एक कम्युनिटी सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म, लोकल सर्कल्स के चेयरमैन सचिन तपारिया कहते हैं कि स्टार्टअप्स के सामने सबसे बड़ी चुनौती डिमांड और कैश फ़्लो की है। उनका मानना है कि जीएसटी की स्थापित व्यवस्था स्टार्टअप्स के लिए कुछ ख़ास मददगार नहीं है क्योंकि सोर्स पर टैक्स कटने के बाद रिफ़ंड मिलने में समय लगता है।
इससे स्टार्टअप्स के कैश फ़्लो पर प्रभाव पड़ता है और अगर रिफ़ंड मिलने में एक महीने की भी देरी हो जाए तो स्टार्टअप्स के पूरे ऑपरेशन्स बहुत बुरा असर पड़ सकता है।
एक्सफ़िनिटी वेंचर्स के चेयरमैन वी बालाकृष्णन कहते हैं, "हमें देश में स्टार्टअप्स के लिए बिज़नेस करने की सहूलियत को बढ़ाने की ज़रूरत है।" उन्होंने कहा कि स्टार्टअप का सेटअप जमाना हो या फिर उसे बंद करना हो, दोनों ही कामों के लिए बहुत सारी औपचारिकताओं को पूरा करना पड़ता है।
इसके अलावा फ़ंडिंग की समस्या भी काफ़ी बड़ी है। बड़े स्टार्टअप्स को फ़ंड जुटाने में कुछ ख़ास मुश्क़िल नहीं होती, लेकिन ज़्यादातर नई कंपनियों के पास इसका अभाव होता है।
फ़ंडिंग
सरकार ने स्टार्टअप्स में निवेश के लिए 10,000 हज़ार करोड़ रुपए का फ़ंड सेटअप किया था, लेकिन इसका उपयुक्त इस्तेमाल नहीं हो पाया। आम बजट से पहले इस बात की अपेक्षा की जा रही थी कि इस कोष में इज़ाफ़ा होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। यह नीति निर्माताओं को इस बात का संकेत देता है कि वे किस तरह से देश के पूंजीपतियों को स्टार्टअप्स में निवेश करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
3one4 Capital के फ़ांउडिंग पार्टनर सिद्धार्थ पई कहते हैं,
"हमें प्रयास करना होगा कि देश में मौजूद पूंजी को स्टार्टअप्स में निवेश के लिए इस्तेमाल किया जाए।"
ऐसा देखा गया है देश के पूंजीपति सोने, रियल एस्टेट और इक्विटी में निवेश को प्राथमिकता देते हैं।
इसलिए ज़रूरत है कि स्टार्टअप्स के लिए ख़ासतौर पर एक स्टॉक एक्सचेंज तैयार किया जाए और उसे एक पब्लिक इनवेस्टमेंट प्लैटफ़ॉर्म के रूप में विकसित किया जाए। सेबी (सिक्यॉरिटीज़ ऐंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया) ने इनोवेटर्स ग्रोथ प्लैटफ़ॉर्म (आईजीपी) के माध्यम से ऐसे एक सेट अप को तैयार करने के लिए प्रयास शुरू किए थे, लेकिन अभी तक यह पूरी तरह से ऑपरेशनल नहीं हुआ है।
योर स्टोरी के साथ पूर्व में हुई एक बातचीत में लिस्टिंग्स (इक्विटी ऐंड डेट), नैशनल स्टॉक एक्सचेंज की प्रमुख इशिता वोरा ने कहा था,
"यह फ़ंडिंग के विभिन्न चरणों के दौरान स्टार्टअप ईकोसिस्टम में लिक्विडिटी को बढ़ावा देने के लिए एक अच्छा कदम है।"
देश का स्टार्टअप ईकोसिस्टम अब डिमांड में इज़ाफ़े कि लिए सरकार की ओर देख रहा है। सरकार वस्तुओं और सेवाओं के रूप में अपनी ज़रूरतों का कुछ निर्धारित हिस्सा स्टार्टअप्स द्वारा आपूर्ति के लिए सुरक्षित कर सकती है।
सचिन का कहना है,
"पहले से ही इसके लिए एक नियम है, जिसके तहत वस्तुओं और सेवाओं के रूप में केंद्र सरकार की ज़रूरतों का 20 प्रतिशत स्टार्टअप्स के लिए सुरक्षित है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर ऐसा हो नहीं पा रहा है और इसलिए इस दिशा में काम करने की ज़रूरत है।"
भारतीय स्टार्टअप्स ने विभिन्न सेक्टरों में अपनी मिसालें क़ायम की हैं, जिसकी वजह से पूंजी और टैलंट दोनों ही इसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। अब समय है कि अच्छे अवसरों को भुनाया जाए।