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भारतीय शोधकर्ताओं ने ब्रह्मांड में आपस में मिल रहे तीन बड़े ब्लैकहोल्स का पता लगाया

हमारे निकटवर्ती ब्रह्मांडों में हुई यह दुर्लभ घटना बताती है कि विलय करने वाले छोटे समूह बहुसंख्यक महाविशाल ब्लैक होल का पता लगाने के लिए आदर्श प्रयोगशालाएं हैं और ये ऐसी दुर्लभ घटनाओं का पता लगाने की संभावना को बढ़ाते हैं।

भारतीय शोधकर्ताओं ने ब्रह्मांड में आपस में मिल रहे तीन बड़े ब्लैकहोल्स का पता लगाया

Saturday August 28, 2021 , 5 min Read

भारतीय शोधकर्ताओं ने तीन आकाशगंगाओं से ऐसे तीन महा विशाल ब्लैक होल्स की खोज की है जो एक साथ मिलकर एक ट्रिपल सक्रिय गैलेक्टिक न्यूक्लियस बनाते हैं। यह एक नई खोजी गई आकाशगंगा के केंद्र में एक ऐसा ठोस क्षेत्र है जिसमें सामान्य से बहुत अधिक चमक है।


हमारे निकटवर्ती ब्रह्मांडों में हुई यह दुर्लभ घटना बताती है कि विलय करने वाले छोटे समूह बहुसंख्यक महाविशाल ब्लैक होल का पता लगाने के लिए आदर्श प्रयोगशालाएं हैं और ये ऐसी दुर्लभ घटनाओं का पता लगाने की संभावना को बढ़ाते हैं।


किसी प्रकार का प्रकाश उत्सर्जित नहीं करने के कारण महाविशाल ब्लैक होल का पता लगाना कठिन ही होता है ,लेकिन वे अपने परिवेश के साथ समाहित होकर अपनी उपस्थिति प्रकट कर सकते हैं। जब आसपास से धूल और गैस ऐसे किसी सुपरमैसिव ब्लैक होल पर गिरती है तो उसका कुछ द्रव्यमान ब्लैक होल द्वारा निगल लिया जाता है। लेकिन इसमें से कुछ द्रव्यमान ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है और विद्युत चुम्बकीय विकिरण के रूप में उत्सर्जित होता है जिससे वह ब्लैक होल बहुत चमकदार दिखाई देता है। इन्हें एक्टिव गैलेक्टिक न्यूक्लियस-एजीएन कहा जाता है और ऐसे नाभिक आकाशगंगा और उसके वातावरण में भारी मात्रा में आयनित कण और ऊर्जा छोड़ते हैं। तदुपरांत ये दोनों आकाशगंगा के चारों ओर का माध्यम विकसित करने और अंततः उस आकाशगंगा के विकास और उसके आकार में वृद्धि में अपना योगदान देते हैं।


भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स) के शोधकर्ताओं की एक टीम जिसमें ज्योति यादव, मौसमी दास और सुधांशु बर्वे शामिल हैं ने कॉलेज डी फ्रांस कॉम्ब्स, चेयर गैलेक्सीज एट कॉस्मोलोजी, पेरिस, के फ्रैंकोइस कॉम्ब्सइ साथ एनजीसी 7733 और एनजीसी 7734 की जोड़ी का संयुक्त रूप से अध्ययन करते हुए एक ज्ञात इंटर-एक्टिव आकाशगंगा एनजीसी 7734 के केंद्र से असामान्य उत्सर्जन और एनजीसी 7733 की उत्तरी भुजा के साथ एक बड़े चमकीले झुरमुट (क्लम्प) का पता लगाया। उनकी जांच से पता चला है कि यह झुरमुट आकाशगंगा एनजीसी 7733 की तुलना में एक अलग ही गति से आगे बढ़ रहा है।


वैज्ञानिकों का यहाँ आशय यह भी था कि यह झुरमुट एनजीसी 7733 का हिस्सा नहीं होकर उत्तरी भुजा के पीछे की एक छोटी किन्तु अलग आकाशगंगा थी। उन्होंने इस आकाशगंगा का नाम एनजीसी 7733 एन रखा है।


जर्नल एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स में एक पत्र के रूप में प्रकाशित इस अध्ययन में पहली भारतीय अंतरिक्ष वेधशाला पर लगे एस्ट्रोसैट अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (यूवीआईटी), यूरोपियन इंटीग्रल फील्ड ऑप्टिकल टेलीस्कोप जिसे एमयूएसई भी कहा जाता है, और जो चिली में बहुत बड़े आकार के दूरदर्शी (वेरी लार्ज टेलीस्कोप - वीएलटी) पर स्थापित किया किया गया है, से मिले आंकड़ों के साथ ही दक्षिण अफ्रीका में ऑप्टिकल टेलीस्कोप से प्राप्त (आईआरएसएफ) से प्राप्त इन्फ्रारेड चित्रों का उपयोग किया गया है।

वैज्ञानिकों का यहाँ आशय यह भी था कि यह झुरमुट एनजीसी 7733 का हिस्सा नहीं होकर उत्तरी भुजा के पीछे की एक छोटी किन्तु अलग आकाशगंगा थी। उन्होंने इस आकाशगंगा का नाम एनजीसी 7733 एन रखा है।

वैज्ञानिकों का यहाँ आशय यह भी था कि यह झुरमुट एनजीसी 7733 का हिस्सा नहीं होकर उत्तरी भुजा के पीछे की एक छोटी किन्तु अलग आकाशगंगा थी। उन्होंने इस आकाशगंगा का नाम एनजीसी 7733 एन रखा है। (फोटो साभार: PIB)

अल्ट्रावायलेट-यूवी और एच-अल्फा छवियों ने निकल रही तरंगों के अतिम सिरे (टाइडल टेल्स) के साथ एक नए तारे के निर्माण का प्रकटीकरण करके वहां तीसरी आकाशगंगा की उपस्थिति का भी समर्थन किया जो एक बड़ी आकाशगंगा के साथ एनजीसी 7733 एन के विलय से बन सकती थी। इन दोनों आकाशगंगाओं के केंद्र (नाभिक) में एक सक्रिय महाविशाल ब्लैक होल बना हुआ है और इसलिए इनसे एक बहुत ही दुर्लभ एजीएन सिस्टम बन जाती है।


शोधकर्ताओं के अनुसार, आकाशगंगा के विकास को प्रभावित करने वाला एक प्रमुख कारक आकाशगंगाओं की परस्पर क्रिया है जो तब होती है जब विभिन्न आकाशगंगाएं एक-दूसरे के निकट आती हैं और एक-दूसरे पर अपना  जबरदस्त गुरुत्वाकर्षण बल लगाती हैं। इस तरह आकाशगंगाओं के आपस में मिलते समय उनमे विद्यमान महाविशाल ब्लैकहोल्स के भी एक-दूसरे के एक दूसरे के पास आने की सम्भावना प्रबल हो जाती हैं। अब द्विगुणित हो चुके ब्लैक होल्स अपने परिवेश से गैस का उपभोग करना शुरू कर देते हैं और दोहरी सक्रिय मंदाकिनीय नाभिक प्रणाली (एजीएन) में परिवर्तित हो जाते हैं।


भारतीय खगोलभौतिकी संस्थान (आईआईए) की टीम इसका घटना क्रम की व्याख्या करते हुए बताती है कि अगर दो आकाशगंगाएं आपस में टकराती हैं तो उनके ब्लैक होल भी अपनी गतिज ऊर्जा को आसपास की गैस में स्थानांतरित करके पास आ जाएंगे। ब्लैकहोल्स के बीच की दूरी समय के साथ तब तक घटती जाती है जब तक कि उनके बीच का अंतर एक पारसेक (3.26 प्रकाश-वर्ष) के आसपास न हो जाए। इसके बाद दोनों ब्लैक होल तब अपनी और अधिक गतिज ऊर्जा का व्यय नहीं कर पाते हैं ताकि वे और भी करीब आ सकें और एक-दूसरे में विलीन हो सकें। इसे अंतिम पारसेक समस्या के रूप में जाना जाता है। तीसरे ब्लैक होल की उपस्थिति इस समस्या को हल कर सकती है। आपस में विलीन हो रहे दोनों ब्लैकहोल ऐसे में अपनी ऊर्जा को तीसरे ब्लैकहोल में स्थानांतरित कर सकते हैं और तब एक दूसरे के साथ विलय कर सकते हैं।


इससे पहले अतीत में कई सक्रिय एजीएन के जोड़ों का पता चला है। लेकिन तिहरी सक्रिय मंदाकिनीय नाभिक प्रणाली (ट्रिपल एजीएन) अत्यंत दुर्लभ हैं और एक्स-रे अवलोकनों का उपयोग शुरू किए जाने से पहले गिनती की ही ऐसी प्रणालियों के बारे में जानकारी थी। तथापि भारतीय खगोलभौतिकी संस्थान (आईआईए) की टीम को उम्मीद है कि आकाशगंगाओं के छोटे विलय वाले समूहों में ऐसी ट्रिपल एजीएन प्रणाली और अधिक सामान्य होगी। हालांकि यह अध्ययन केवल एक ही प्रणाली पर केंद्रित है।


परिणाम बताते हैं कि इस प्रकार विलीन होने वाले छोटे समूह कई महाविशाल ब्लैक होल्स का पता लगाने के लिए अपने आप में आदर्श प्रयोगशालाएं हैं।

(साभार: PIB)


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