1979 की इस्लामिक क्रांति के पहले कैसा था ईरान और वहां की महिलाएं
1979 के पहले का आधुनिक, अंग्रेजीदां ईरान ऐसा बिलकुल नहीं था, जैसा आज दिखाई देता है.
ईरानी मूल की विख्यात ग्राफिक नॉवेल राइटर और एनीमेशन आर्टिस्ट मरजान सतरापी के ग्राफिक नॉवेल पर्सेपोलिस की शुरुआत कुछ यूं होती है.
1980 का साल है. एक स्कूल में ढेर सारी लड़कियां हैं. सब लड़कियों के सिर पर हिजाब है, लेकिन कोई लड़की उस हिजाब को पंखा बनाकर हवा में उड़ा रही है, कोई लड़की कई सारे हिजाबों को बांधकर उसकी रस्सी बनाकर रस्सी-कूद खेल रही है, कोई लड़की उसे मुंह पर डालकर पाताल की शैतान बन गई है तो किसी ने यह कहकर उसे मुंह से उतार रखा कि “बड़ी गर्मी है.”
एक साल पहले देश में इस्लामिक क्रांति हो चुकी है. इन नन्ही बच्चियों का जीवन अचानक इस तरह क्यों बदल गया, उन्हें कुछ पता नहीं. लेकिन उन्हें पुराने दिन बेतरह याद आ रहे हैं. जब वो फ्रेंच मीडियम वाले स्कूल में पढ़ती थीं, जहां उनकी क्लास में लड़के-लड़कियां सब होते थे. धर्म की कोई बात न किताबों में लिखी थी, न टीचर पढ़ाती थी. टीचर भी स्कूल में स्कर्ट-टॉप पहनकर आती थी. औरत-मर्द सब टीचर थे, लड़के-लड़कियां सब स्टूडेंट.
पिछले साल देश में कुछ हुआ. बच्चियों ने घर से स्कूल के रास्ते में जगह-जगह लोगों को हिजाब के समर्थन में जुलूस निकालते और नारे लगाते देखा. एक छोटी बच्ची को बिना हिजाब में स्कूल जाते देख भीड़ ने पकड़कर जबर्दस्ती काले कपड़े से उसका मुंह ढंक दिया. बाकी बच्चियां डरकर तेजी से स्कूल की तरफ भागीं.
इस नॉवेल की कहानी 1979 के बाद लड़कियों और औरतों के लिए रातोंरात बदल गए देश की कहानी है. किशोरों के लिए बहुत सरल भाषा में लिखा गया, लेकिन दिल को चीर देने वाला एक ग्राफिक नॉवेल.
1979 के बाद से अब तक तकरीबन 20 लाख लड़कियां और महिलाएं देश छोड़कर जा चुकी हैं. ये उन परिवारों की लड़कियां थीं, जो अपनी बेटियों को इस जहालत से बचाने के लिए दूर देश भेज देना अफोर्ड कर सकते थे. इन औरतों में खुद मरजान सतरापी, नॉवेलिस्ट अजर नफीसी शामिल हैं, जिन्होंने ‘रीडिंग लोलिता इन तेहरान’ नाम का जादुई नॉवेल लिखा है.
ईरान ने दुनिया को दी महान वैज्ञानिक, कलाकार महिलाएं
ईरान 1979 के पहले ऐसा बिलकुल नहीं था, जैसा आज दिखता है. ईरान की यूनिवर्सिटीज में खासी संख्या में महिलाएं पढ़ा करती थीं. उस देश ने क्रांति ने पहले दुनिया को बहुत सी महान वैज्ञानिक, कलाकार और राइटर दिए. 1926 में ईरान में जन्मी अजर अनदामी वो वैज्ञानिक थीं, जिनका कॉलेरा की वैक्सीन खोजने में महत्वपूर्ण योगदान है. और ये काम वो तेहरान में रहकर ही कर रही थीं. 1913 में ईरान में जन्मी हुमा शैबानी देश की पहली महिला सर्जन थीं. इस्लामिक क्रांति के बाद 1986 में जन्मी नीलोफर बयानी एक कंजरवेशन बायलॉजिस्ट, वैज्ञानिक और एक्टिविस्ट भी थीं, जिन्हें इस्लामिक सरकार ने जेल में डाल दिया था.
ये फेहरिस्त बहुत लंबी है. लेकिन 1979 के बाद लड़कियों और औरतों के लिए वो देश रातोंरात बदल गया. अयातुल्लाह खोमैनी का मानना था कि औरतों का काम घर में रहना, पति की सेवा करना, बच्चे पैदा करना और परिवार की देखभाल करना है.
कट्टर इस्लामिक कानून आने पर अंग्रेजी, फ्रेंच को विदेशी आततायियों की भाषा मानकर उसे स्कूलों में पढ़ाने पर प्रतिबंध लग गया. कोएड स्कूल बंद हो गए. विदेशी संगीत, कपड़ों, किताबों और सिनेमा पर प्रतिबंध लग गया. लड़कियों के विवाह की उम्र 18 साल से घटाकर 13 साल कर दी गई. और उनके लिए ढेरों नियम-कानून बन गए, जिनका पालन न करने पर जेल और कोड़ों की सजा का कानून बनाया गया.
मुहम्मद रजा पहलवी का ईरान
मुहम्मद रजा पहलवी जिन्हें रजा शाह के नाम से भी जाना जाता है, ईरान के आखिरी शाह थे, जो 1941 से लेकर 1979 तक सत्ता में रहे. अयातुल्लाह खोमौनी के नेतृत्व में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद उन्हें देश छोड़कर जाना पड़ा था.
रजा पहलवी का ईरान अब के ईरान से बहुत भिन्न था. ईरान को आधुनिक बनाने में रजा पहलवी की वही भूमिका है, जो तुर्की के इतिहास में कमाल अतातुर्क की रही है. ये लोग जानते थे कि पुराने मूल्यों के हिसाब से वो तेजी से बदल रही आधुनिक दुनिया का मुकाबला नहीं कर पाएंगे. रजा पहलवी के समय प्रशासन का धर्म से कोई लेना-देना नहीं था. लोगों की धार्मिक आस्थाएं उनका निजी मसला था. सत्ता उससे संचालित नहीं होती थी.
फ्रेंच और अंग्रेजी स्कूलों की शुरुआत
रजा पहलवी ने देश में बड़ी संख्या में अंग्रेजी और फ्रेंच माध्यम के स्कूल खुलवाए. स्कूलों को कोएड किया गया. लड़कियों की शिक्षा पर विशेष जोर रहा.
सार्वजनिक जगहों पर हिजाब और धार्मिक पहचान पर रोक
उन्होंने 8 जनवरी, 1936 को कश्फ-ए-हिजाब का कानून लागू किया. इस कानून के मुताबिक महिलाओं को सार्वजनिक जगहों पर किसी तरह की धार्मिक पहचान को धारण करने की इजाजत नहीं थी. यूं कहें कि उनके हिजाब पहनने पर प्रतिबंध था. यदि कोई निजी महफिल में, घर में पहनना चाहे तो उसकी मनाही नहीं थी. लेकिन स्कूल, कॉलेज, सरकारी दफ्तरों में हिजाब, दाढ़ी, पगड़ी जैसी किसी भी तरह की धार्मिक पहचान को उजागर करने वाली चीजों को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया.
ठीक ऐसा ही तुर्की में कमाल अतातुर्क ने भी किया था. उनका यकीन था कि एक राष्ट्र को सेक्यूलर होना चाहिए, जहां सभी धर्मों के लिए समान जगह और समान आदर हो. न ही बहुसंख्यकों को उनकी धार्मिक पहचान के कारण विशेष तवज्जो मिले और न ही सरकारी फैसलों और कामकाज में धर्म का कोई दखल हो.
हालांकि 1941 में जब शाह रजा के बेटे मोहम्मद रजा सत्ता में आए तो उन्होंने कश्फ-ए-हिजाब को खत्म कर दिया और महिलाओं को उनकी मर्जी से पोशाक हिजाब पहनने या न पहनने की इजाजत दी गई.
औरतों को वोटिंग का अधिकार
ईरान दुनिया के उन शुरुआती मुल्कों में से एक है, जहां औरतों को मतदान का अधिकार दिया गया और इसके लिए उस देश में कोई लंबी लड़ाई भी नहीं हुई. राजतंत्र समाप्त होने, लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू होने के साथ जब ईरान में चुनावों की शुरुआत हुई तो 1963 में मोहम्मद रजा शाह ने महिलाओं को वोट का अधिकार दिया. इतना ही नहीं, उन्हें चुनाव में खड़े होने और सुनकर संसद में जाने की भी अनुमति मिली.
महिलाओं से जुड़े कानून
1967 में ईरान में विमेन पर्सनल लॉ बना, जिसके तहत जेंडर बराबरी को सुनिश्चित करने वाले कानून आए. जैसेकि महिलाओं को संपत्ति में बराबर का हक दिया गया. उनके विवाह की न्यूनतम उम्र 13 से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई. साथ ही अबॉर्शन को बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकारों में शामिल किया गया.
वक्त का पीछे जाता पहिया और अयातुल्लाह खुमैनी की आमद
लंबे समय तक आधुनिकता और प्रगति की राह पर चल रहा ईरान एक दिन अचानक पीछे मुड़कर देखने लगा और पीछे की ओर चल पड़ा. शियाओं के नेता अयातुल्लाह खुमैनी के नेतृत्व में हुई इस्लामिक क्रांति ने देश को एक रात में 200 साल पीछे ढकेल दिया. मोहम्मद रजा सत्ता से बेदखल कर दिए गए और शाह पहलवी को देश छोड़कर जाना पड़ा.
अयातुल्लाह खुमैनी ने सत्ता में आते ही सबसे पहले जो कुछ फैसले लिए, वो इस तरह थे-
1- विवाह की उम्र 18 से घटाकर 9 कर दी गई
लड़कियों की विवाह की उम्र 18 साल से घटाकर पहले 13 साल की गई और फिर 1982 में उसे और कम करके 9 साल कर दिया गया.
2- मेल गार्जियनशिप कानून आया
खुमैनी ने मेल गार्जियनशिप कानून लागू किया, जिसने महिलाओं से सारी स्वायत्तता, स्वतंत्रता और अधिकार छीन लिए. इस नए मेल गार्जियनशिप कानून के मुताबिक हर लड़की और महिला का एक पुरुष अभिभावक होना अनिवार्य था, जिसकी लिखित अनुमति के बगैर वो न कॉलेज में एडमिशन ले सकती थीं, न नौकरी कर सकती थीं, न विवाह कर सकती थीं, न यात्रा कर सकती थीं, न प्रॉपर्टी खरीद सकती थीं, न बैंक अकाउंट खुलवा सकती थीं और न ही अबॉर्शन करवा सकती थीं.
3- हिजाब अनिवार्य और कॉस्मैटिक्स पर प्रतिबंध
महिलाओं के लिए हिजाब अनिवार्य कर दिया गया और किसी भी तरह के सौंदर्य प्रसाधन के इस्तेमाल पर पूरी तरह प्रतिबंध लग गया.
आज ईरान में जिस ‘गश्त-ए-एरशाद’ (मोरैलिटी पुलिस) के खिलाफ औरतें सड़कों पर उतरी हुई हैं, उसकी शुरुआत 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद अहमदीनेजाद ने की थी. उन्होंने ही ‘गश्त-ए-एरशाद’ बनाया, जिसका काम लोगों के इस्लामिक कंडक्ट की चौकीदारी करना था. सार्वजनिक जगहों पर और कई बार तो निजी जिंदगी में भी यह देखना कि लोग इस्लामिक शरीया का पालन कर रहे हैं या नहीं.
हसन रूहानी के शासनकाल में इन नियमों में थोड़ी ढील दी गई थी. वो जींस पहन सकती थीं, रंग-बिरंगे हिजाब भी. लेकिन इब्राहिम रईसी ने सत्ता में आने के बाद खुमैनी के नक्शेकदम पर चलने की कसम खा ली. उसने ‘गश्त-ए-एरशाद’ को और सख्त कर दिया और पहले से कहीं ज्यादा सख्ती से इस्लामिक नियमों का पालन करवाया जाने लगा.
उसके बाद जो हुआ है, हमारे सामने है. इतिहास का पहिया फिर घूम रहा है.