जैन सम्भाव्य विश्वविद्यालय के शोधार्थियों द्वारा आयोजित वेबिनार में "साहित्यिक परंपरा एवं संस्कृति के बीच स्त्रियों की भागीदारी" पर बोले रमन अग्रवाल साहित्य सम्मान से सम्मानित डॉ. निरंजन सहाय
जैन सम्भाव्य विश्वविद्यालय के शोधार्थियों द्वारा आयोजित वेबिनार शृंखला, "जेंडर : पूर्वाग्रह , रूढ़िवादिता एवम समानता" के पांचवे दिन (दिनांक १७-७-२०२०) के विषय, "लैंगिक असमानता के प्रश्न और हिंदी भाषा" पर महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के प्रोफेसर और २०१८ के रमन अग्रवाल साहित्य सम्मान से सम्मानित डॉ. निरंजन सहाय ने महत्वपूर्ण व्याख्यान प्रस्तुत किया। सत्र की शुरुआत, जैन सम्भाव्य विश्वविद्यालय की शोधार्थी एच. के. रूपा रानी ने की, जिनका शोधकार्य, "स्त्री मुक्ति के प्रश्न एवं समकालीन स्त्रीवादी कविता के स्वर : सन्दर्भ अनामिका एवं पवन करण" पर है। सत्र के आरम्भ में, कार्यक्रम के संयोजक एवं जैन सम्भाव्य विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. भॅवर सिंह शक्तावत ने प्रोफेसर निरंजन सहाय का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया।
सत्र की शुरुआत में प्रोफेसर निरंजन सहाय ने विश्वविद्यालय के आयोजकों और सभी प्रतिभागियों के प्रति आभार प्रकट करते हुए, समाज के तौर तरीके, साहित्यिक परंपरा एवं संस्कृति के बीच स्त्रियों की भागीदारी पर व्याख्यान आरम्भ किया और साथ ही विषय पर चर्चा करते हुए जेंडर विमर्श पर वेबिनार के लिए जैन सम्भाव्य विश्वविद्यालय की प्रशंसा की। अपने व्याख्यान को प्रस्तुत करते हुए उन्होंने महान दार्शनिक अलबरूनी का उल्लेख किया। अलबरूनी ने भारत प्रवास के दौरान भारतीयों के तर्क करने की प्रवृति को आत्मसात करते हुए कहा , बहस से अथवा तर्क से तत्त्व ( सत्य ) तक पहुंचने की बात , भारत के लोगों की अनोखी है ।
प्रोफेसर सहाय ने वैदिक परंपरा में उद्धरित देव ऋण, पितृ ऋण और ऋषि ऋण का उल्लेख किया और वेदों में मातृ ऋण का उल्लेख न होने पर प्रश्न किया। आगे व्याख्यान को बढ़ाते हुए उन्होंने २००५ में NCERT के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रूपरेखा में जेंडर के सवाल की चर्चा की, जिसके बाद से आधार पत्र में महिलाओं से सम्बंधित विषयों को जोड़ा गया और इसी कार्यक्रम से जुड़े महान विद्वान राधावल्लभ त्रिपाठी का उद्धरण प्रस्तुत किया जिन्होंने एक श्लोक के बारें में बताया की अगर प्रतिदिन अहिल्या , द्रौपदी, तारा, सीता और मंदोदरी का स्मरण किया जाये तो महापातक से मुक्ति मिलती है।
वेबिनार के दौरान बृहदारण्यक उपनिषदों की चर्चा हुई जिसमें याज्ञवल्य और गार्गी का संवाद है और महाभारत के शांति पर्व से देवल ऋषि की कन्या सुवर्चला का उल्लेख किया, जिसने अपने योग्य वर के लिए एक ऐसी शर्त रखी जिसके अनुसार जो देख भी सकता और नहीं भी देख सकता वही वर उसके विवाह के योग्य है तब उद्यालक ऋषि के पुत्र, श्वेतकेतु ने सुवर्चला को अपने तार्किकता पूर्ण विश्लेषण से संतुष्ट कर, उसका पाणिग्रहण किया। ये सभी उद्धरण लैंगिक समानता के प्रश्न से जुड़े हैं। इस संदर्भ में उन्होंने बौद्ध कालीन थेरी गाथाओं की चर्चा की, जिसके एक प्रसंग में औरतों के संघ में प्रवेश को लेकर भगवान बुद्ध और आनंद के बीच तर्क होता है और उसके बाद महिलाओं को संघ में प्रवेश मिलता है। आगे मार और सुमंगला के संवाद का उल्लेख करते है जिसमें मार के प्रश्न का उत्तर देती हुई कहती है, "न मैं स्त्री हूँ और न ही पुरुष"।
साथ ही वर्तमान सन्दर्भ के राजस्थान और बिहार राज्य के कुछ पिछड़े और दलित नामों की चर्चा की जिनमें राजस्थान के अंछायी बाई और बिहार के मनचूर्णी नाम के विशेषण के अर्थ में लैंगिक समानता और अनचाहे स्त्री संतान का विरोध नज़र आता है। इसकी तुलना में कुछ पुरुष नाम भी हैं लेकिन वह अनचाही संतान नहीं वरन अनिष्ट से बचने की प्रथा में शामिल है।
मैन पावर का उद्भोधन होता है मगर वीमेन पावर का नहीं। व्याख्यान को आगे बढ़ाते हुए प्रो. सहाय ने भाषा वैज्ञानिक रमाकांत अग्निहोत्री का उद्धरण प्रस्तुत किया, जिनके कथनानुसार विवरण को, पुरुष का आदेश मानना हर स्त्री की नियति है। ये पितृसत्तात्मक वर्चस्व का रूप है, साथ ही विद्वान पालो की पुस्तक, 'उम्मीदों का शिक्षा शास्त्र' का उल्लेख किया जिसके बाद से स्त्री -पुरुष शब्दों को समानता प्रदान करने की बात का हवाला लेखक के द्वारा दिया गया है, और अमर सिंह तथा ज्यांद्रेज की पुस्तक में दोनों लिंग के लिए, मानव जाति के सम्बोधन की बात कही गयी है।
अपने व्याख्यान के अंत में प्रोफेसर निरंजन सहाय ने बड़ौदा की पूजा, रमैया के कविता की दो पंक्तियों का उल्लेख किया,
मेरी किताबों ने यह बताया
कि सिर्फ पुरुष ही होते है राजा
और एक दिन मुझे
ऐसी पुस्तक मिली
जिससे पता चला कि एक स्त्री भी राजा हुई थी
प्रश्नोत्तर काल के दौरान प्रोफेसर सहाय ने हिन्दू कोड बिल के प्रासंगिकता की व्याख्या की और लैंगिक समानता से जुड़े प्रश्नों का भी सटीक विश्लेषण किया। सत्र के समापन से पूर्व जैन सम्भाव्य विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अरविन्द ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। शोधार्थियों का ये व्याख्यान 18 जुलाई तक चलेगा, जिसके अंतिम दिन अजय ब्रम्हात्मज वक्ता होंगे। शोधार्थियों द्वारा आयोजित यह वेबिनार हिंदी विभाग द्वारा आयोजित किया जा रहा है।
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