कल्पना, सुनीता के बाद हैदराबाद के राजा चारी बने नासा के पहले भारतीय पुरुष एस्ट्रोनॉट
अमेरिकी नासा ने स्पेस मिशन के लिए मूलतः हैदराबाद (तेलंगाना) के रहने वाले पहले भारतीय पुरुष वैज्ञानिक राजा जॉन वुरपुत्तूर चारी का एस्ट्रोनॉट के रूप में चयन किया है। इससे पहले भारतीय मूल की कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स नासा के मिशन में शामिल रही हैं। अमेरिकी स्पेस मिशन के लिए चारी तीसरे ऐसे वैज्ञानिक हैं।
भारतीय मेधा का अनुमान लगाने के लिए सिर्फ एक जानकारी ही पर्याप्त हो सकती है कि अमेरिका की अंतरिक्ष एजेंसी नासा में काम करने वाले लोगों में भारतीयों की संख्या 36 प्रतिशत है। इसी तरह अमेरिका में कार्यरत डॉक्टरों में से 38 प्रतिशत और वैज्ञानिकों में 12 प्रतिशत भारतीय हैं।
अमेरिका-भारत वाणिज्य मंडल के अनुसार कम्प्यूटर क्रांति लाने वाली कंपनी माइक्रोसॉफ्ट में भारतीयों का आँकड़ा 34 प्रतिशत है। इसी तरह आईबीएम के 28 प्रतिशत और इंटेल के 17 प्रतिशत कर्मी भारतीय हैं। इसी बीच हाल ही में नासा ने स्पेस मिशन के लिए भारतीय मूल के तीन वैज्ञानिकों में से एक अमेरिकी एस्ट्रोनॉट राजा जॉन वुरपुत्तूर चारी का चयन किया है।
स्पेस एजेंसी ने चारी समेत 11 नए एस्ट्रोनॉट्स के नाम घोषित कर दिए हैं। चारी अमेरिकी एयरफोर्स के कर्नल हैं। वह एफ-35 बेड़े इंटिग्रेटेड टेस्ट फोर्स के डायरेक्टर के तौर पर भी सेवाएं दे चुके हैं। वह अमेरिकी स्पेस मिशन के लिए चुने गए भारतीय मूल के तीसरे व्यक्ति हैं। उनसे पहले कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स नासा के मिशन में शामिल रही हैं।
नासा के एडमिनिस्ट्रेटर जिम ब्राइडेनस्टीन कहते हैं कि
"राजा अमेरिका के सर्वश्रेष्ठ एस्ट्रोनॉट हैं। यह इनके लिए हमारे एस्ट्रोनॉट कॉर्प्स में शामिल होने का अमूल्य समय है। चारी भारतीय मूल के पहले पुरुष वैज्ञानिक हैं, जो नासा के लिए अंतरिक्ष यात्री के तौर पर काम करेंगे।"
मूलतः हैदराबाद के रहने वाले राजा जॉन वुरपुत्तूर चारी को अपने पिता श्रीनिवास वी चारी से ही शिक्षा के मूल्य मिले हैं। पिता श्रीनिवास वी चारी का मानना था कि भारत में स्कूल जाना और शिक्षा प्राप्त करना अधिकार नहीं, विशेषता है। यह एक ऐसी बात थी, जो उनके पूरे परिवार पर सार्थक दिखती है। इसलिए राजा ने कभी स्कूल जाने में आनाकानी नहीं की।
ओसमानिया यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद राजा के पिता 1970 के दशक में अमेरिका चले गए। मास्टर्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद पेगी चारी से शादी की और 25 जून 1977 को राजा का जन्म हुआ। 67 साल की उम्र में 2010 में श्रीनिवास चारी का निधन हो गया। राजा चारी ने यूएस एयरफोर्स एकेडमी से एस्ट्रोनॉटिकल इंजीनियरिंग में स्नातक किया है। इसके बाद मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोनॉटिक्स एंड एस्ट्रोनॉटिक्स में मास्टर्स किया है। नेवी पायलट स्कूल से प्रशिक्षण ले चुके हैं।
वह कहते हैं,
"मैं जानता हूं कि हमारे पिता को हमें स्कूली शिक्षा देने के लिए कितना त्याग करना पड़ा। मैं सोचता हूं कि शायद हममें और दूसरों में यही सबसे बड़ा अंतर रहा है।"
राजा अगस्त 2017 में नासा के आर्टेमिस प्रोगाम के लिए 18 हजार आवेदकों में से चुने गए 11 लोगों में शामिल रहे। हाल ही में दो साल की बेसिक एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग पूरी कर वह अब नासा के इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन, चांद और मंगल मिशन के तैयार हो चुके हैं। राजा को गत दिवस जॉन्सन स्पेस सेंटर के एक प्रोग्राम में सभी 11 ग्रैजुएट्स के साथ सिल्वर पेन दिया गया।
नासा की परंपरा के मुताबिक, अंतरिक्ष में जाने के बाद उन्हें दूसरे एस्ट्रॉनाट्स से यह पेन अदला-बदली करनी होगी। इस परंपरा की शुरुआत 1959 में मर्करी मिशन के लिए चुने गए 7 एस्ट्रोनॉट्स के साथ हुई थी। नासा के पास अभी 48 अंतरिक्ष यात्री हैं जो पूरी तरह से सक्रिय हैं। नासा इस संख्या को बढ़ाने के लिए आने वाले समय में और आवेदन जारी कर सकता है।
नासा की योजना अगले एक दशक में इस आंकड़े को सैकड़े में तब्दील करना है जिससे अंतरिक्ष विज्ञान की दुनिया में तेजी लाई जा सके।
अमेरिका ने अंतरिक्ष की दुनिया में अपनी बादशाहत कायम रखने के लिए जिन 11 सर्वश्रेष्ठ एस्ट्रोनॉट को चुना है, उनमें भारतीय मूल के राजा चारी समेत सात पुरुष और छह महिला अंतरिक्ष यात्री हैं। इस टीम में शामिल महिलाएं आर्टेमिश मिशन के तहत 2024 में चांद पर कदम रखेंगी जबकि 2030 में मंगल ग्रह पर इन्हीं अंतरिक्ष यात्रियों में से कोई पहली बार कदम रखेगा। ये सभी लोग उन 500 अंतरिक्ष यात्रियों की चुनिंदा सूची में शामिल हैं जिन्हें भविष्य में अंतरिक्ष यात्रा पर जाने का मौका मिलेगा।
यह भी गौरतलब है कि वर्ष 1958 में नासा के ऐतिहासिक 'टच द सन' मिशन की जमीन भी भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने तैयार की थी। उन्होंने 'सौर पवन' के अस्तित्व के प्रस्ताव वाले रिसर्च को अपने जर्नल में प्रकाशित किया था। वह रिसर्च डॉक्टर यूजीन न्यूमैन पार्कर का था।
दो साल पहले 2018 में नासा का यह मिशन पार्कर के रिसर्च में प्रस्तावित 'सौर पवन' का ही अध्ययन करने के लिए रवाना किया गया था। आज से साढ़े छह दशक पहले 60 साल पहले अगर खगोल भौतिकशास्त्री चंद्रशेखर ने 'सौर पवन' के अस्तित्व के प्रस्ताव वाले रिसर्च का प्रकाशन अपने जर्नल में करने का साहस न दिखाया होता, तो सूर्य को स्पर्श करने के पहले मिशन की मौजूदा शक्ल शायद कुछ और ही होती।