कश्मीर के पारंपरिक खाने को जीवित रखने का प्रयास कर रही हैं ये महिला उद्यमी
युवा उद्यमी अस्मा भट्ट कश्मीर के सांस्कृतिक और पारंपरिक खाने को संरक्षित करने के लिए प्रयास कर रही हैं। अस्मा के प्रयासों के चलते हाल ही में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था जहां लोगों को कश्मीर के पारंपरिक खानपान का लुत्फ उठाने का मौका मिला था।
इन दिनों कश्मीर की एक युवा महिला आंत्रप्रेन्योर सबका ध्यान अपनी ओर खींच रही हैं। युवा उद्यमी अस्मा भट्ट कश्मीर के सांस्कृतिक और पारंपरिक खाने को संरक्षित करने के लिए प्रयास कर रही हैं। अस्मा के प्रयासों के चलते हाल ही में एक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था जहां लोगों को कश्मीर के पारंपरिक खानपान का लुत्फ उठाने का मौका मिला था।
भारतीय व्यंजन अपनी संस्कृति जितना ही समृद्ध है, ऐसे में जो चीज इसे और अधिक लोकप्रिय बनाती है वह है हर क्षेत्र में फैली हुई विविधता। आप देश के किसी भी हिस्से में जाएँ और आपको अनोखे स्वाद और सुगंध के साथ व्यंजनों की एक विस्तृत श्रृंखला मिलती है। ऐसा ही एक खास उदाहरण कश्मीरी व्यंजन भी है।
अस्मा खुद भी पारंपरिक खाना तैयार करती हैं, जिसमें खास केक भी शामिल है। अस्मा नमकीन चाय भी बनाती हैं, जिसे नून चाय कहा जाता है। इसी के साथ वह वाज़वान नाम का खास पकवान भी तैयार करती हैं।
पारंपरिक खाने को भूल रहे हैं लोग
न्यूज़ एजेंसी एएनआई से बात करते हुए अस्मा का कहना है कि पहले सभी स्थानीय लोग इन खाद्य पदार्थों को आसानी से ही अपने घरों पर तैयार कर लिया करते थे, लेकिन समय के साथ हुए जीवनशैली में बदलाव और आधुनिकीकरण के साथ ही पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव के चलते अब स्थिति में बदलाव आ गया है।
अस्मा के अनुसार ऐसा नहीं है कि सभी पारंपरिक व्यंजन अपनी लोकप्रियता खो चुके हैं, वजवान जैसे व्यंजन अभी भी लोकप्रिय हैं, लेकिन इसके साथ अन्य व्यंजन लोगों के बीच गुम से होते जा रहे हैं और यह चिंता का विषय है।
जारी है अस्मा की कोशिश
इस दिशा में बात करते हुए अस्मा कहती हैं कि इसलिए वे कश्मीरी संस्कृति और परंपराओं का प्रतिनिधित्व करने वाले सभी खाद्य उत्पादों को पुनर्जीवित करने की पूरी कोशिश कर रही हैं।, ताकि भविष्य में उनकी संस्कृति से संबंधित हमारे पारंपरिक खाद्य पदार्थ भी लोगों के बीच जीवित रहें। अस्मा का मानना है कि युवा पीढ़ी को कश्मीर के अनूठे स्वाद का आनंद लेने के महत्व को जानना चाहिए।
बतौर उद्यमी अपने बारे में बात करते हुए अस्मा का कहना है कि वे चाहती हैं कि महिलाएं स्टीरियोटाइप तोड़कर आगे बढ़ें। अस्मा का कहना है कि उन्हें जिस तरह की सकारात्मक प्रतिक्रिया लोगों से मिली है, असे में वे आने वाले 2 से 3 सालों में अपना रेस्टोरेन्ट खोल सकती हैं। बड़ी संख्या में लोगों को कश्मीरी पारंपरिक खाने से जोड़ने के उद्देश्य से अस्मा ने सोशल मीडिया पेज भी बनाया हुआ है जहां से लोग ऑनलाइन ऑर्डर कर सकते हैं।
Edited by रविकांत पारीक