ऑर्गैनिक बागवानी से कश्मीर के मीर बने अमीर, हर महीने कमा रहे 12 लाख
एक मामूली से आइडिया ने कश्मीर के मीर गौहर को अमीर बना दिया। इस वक्त उन्हे ऑर्गेनिक सेब के कारोबार में बारह लाख रुपए से अधिक की कमाई हो रही है। गौरतलब है कि पूरी दुनिया के बाजारों में गैर रासायनिक सेब की डिमांड तेजी से बढ़ती जा रही है। मीर ने इसी जानकारी में अपने बिजनेस का आइडिया ढूंढ लिया।
जिस आतंक पीड़ित पुलवामा को एक देश विरोधी वारदातों के गढ़ के रूप में याद किया जाने लगा है, वह इलाका सेब उत्पादन के लिए भी जाना जाता है। कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में लाखों किसान सेब की खेती में लगे हुए हैं। हिमाचल प्रदेश में चार लाख परिवार सालाना सेब का 3500 करोड़ रुपए का कारोबार कर रहे हैं। देश में पैदा होने वाले कुल सेब उत्पादन में कश्मीर की करीब 71 फीसदी हिस्सेदारी है। यद्यपि इस बार कश्मीर में भारी बर्फबारी की वजह से सेब किसानों को तकरीबन 500 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
हॉर्टीकल्चर विभाग के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में सालाना आठ हजार करोड़ का सेब कारोबार होता है। अन्य तरह के कृषि उत्पादन की तरह कश्मीरी सेब कारोबार के साथ भी एक नई चीज जुड़ गई है। भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में ऑर्गेनिक सेब की डिमांड दिनोदिन बढ़ती जा रही है। इसी जानकारी से पुलवामा के मीर गौहर को एक ऐसा आइडिया मिला, जिसने उन्हे करोड़पति बना दिया। आज वह हर महीने बारह लाख रुपए से अधिक की कमाई कर रहे हैं।
आज के जमाने में कम लागत में उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त करने के लिए जैविक खेती एक अच्छा विकल्प बन चुकी है। सुरक्षित और लाभकारी भविष्य को देखते हुए शहरी-ग्रामीण पढ़े-लिखे युवा समूह बनाकर जैविक खेती को बढ़ावा देने में जुटे हैं।
साथ ही, ऑर्गेनिक उत्पाद के कारोबार में भी आगे आ रहे हैं। जैविक खेती के जरिए बिजनेस और एंटरप्रेन्योरशिप से न सिर्फ युवाओं को फायदा हो रहा है बल्कि, दूसरों को रोजगार भी मिल रहे हैं। इसी कड़ी में श्रीनगर (कश्मीर) के मीर गौहर ने करवट बदलती खेती के नए तौर-तरीकों का बारीकी से अध्ययन किया है। उनके पिता भी होम अप्लाएंसेज के एक बिजनेस मैन रहे हैं लेकिन वह अपने बेटे को कारोबारी नहीं बनाना चाहते थे। मीर ने अमृतसर (पंजाब) के खालसा कॉलेज से एग्रीकल्चर में बीएससीएजी के बाद एमएससी किया है। उन्होंने एमएससी करने के बाद कुछ साल वीएसटी टिलर्स ट्रैक्टर्स लिमिटेड में नौकरी की, फिर श्रीनगर लौट गए। इस सर्विस के दौरान ही उनकी सेब उत्पादक किसानों से मुलाकातें होती रहीं, जिससे उन्हें अपनी आगे की मंजिल की नई राह मिल गई। उन्होंने अपनी जमा-पूंजी के साथ ही बैंक से कर्ज लेकर एग्री इक्विपमेंट्स के साथ ऑर्गेनिक कीटनाशक और ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर बेचने का कारोबार शुरू किया।
इससे पहले मीर को इस बात की अच्छी तरह जानकारी हो चुकी थी कि उनके राज्य के किसान जागरूक नहीं हैं। कृषि उत्पादन में आ रहे आधुनिक बदलावों से नावाकिफ होने के कारण उन्हें सेब की खेती में अच्छी कमाई नहीं हो पा रही है। इसी बीच उन्हें पता चला था कि दुनिया में ऑर्गेनिक सेब की डिमांड तेजी से बढ़ रही है। यदि वह इसके लिए किसानों को सहमत कर लें तो उनका एक अच्छा बिजनेस खड़ा हो जाएगा। सेब किसान मीर की इस बात से सहमत होने लगे कि कीटनाशकों के ज्यादा इस्तेमाल से उनकी उपज खराब हो रही है।
इसके बाद वह राज्य के सेब उत्पादक किसानों को खेती के उपकरण, कीटनाशक और ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर बेचने लगे। इस बिजनेस से आज वह एक साल में लगभग डेढ़ करोड़ रुपए का कारोबार कर लेते हैं। किसानों के वह बहुत कम प्रॉफिट मार्जिन पर सामान बेचते हैं। मीर बताते हैं कि कश्मीर में कोई इंडस्ट्री नहीं है। इसलिए वह किसानों के काम आने वाले सामान देश के अन्य हिस्सों से खरीदते-बेचते हैं। आज उनका हर महीने का टर्नओवर 12.5 लाख रुपए तक पहुंच चुका है। पांच-छह साल में उनके बिजनेस का सालाना टर्नओवर 1.5 करोड़ रुपए हो गया है।
ऑर्गेनिक सेब का बाजार अन्य गैर रासायनिक उत्पादों की तरह तेजी से छलांग लगा रहा है। दिल्ली के मालचा मार्ग और खेलगांव जैसे पॉश इलाकों में लगने वाले जैविक उत्पादों के बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहे हैं। राजधानी में ही नहीं बल्कि एनसीआर समेत देश के तमाम महानगरों में भी ऐसे बाज़ार अपने पैर फैला रहे हैं। अगर जैविक उत्पादों के लिए लोगों में ललक बढ़ रही है तो उसके पीछे वजह है कि लोग अपने खाने में रासायनिक पैस्टिसाइट्स के असर को समझ रहे हैं।
जैविक खेती वह सदाबहार कृषि पद्धति है, जो पर्यावरण की शुद्धता बरकरार रखती है और आज ग्राहकों का तेजी से जैविक उत्पादों की ओर रुझान बढ़ता जा रहा है। इसीलिए अब रासायनिक उर्वरकों, रासायनिक कीटनाशक और खरपतवार नाशक की बजाय गोबर खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद, बैक्टीरिया कल्चर, जैविक खाद, जैविक कीटनाशक जैसे साधनों से खेती की जा रही है। कश्मीर में आज जैविक सेब पैदा करने वाले किसानों का भविष्य उज्ज्वल है, जिसके लिए वे मीर के बताए रास्ते पर चलकर लीक से हटकर काम कर रहे है। जैविक सेब की खेती के दौरान शुरुआत में उत्पादन में कुछ गिरावट जरूर आई लेकिन अब मीर बताते हैं कि उनकी खेती पटरी पर आने लगी है। किसानों को इसके लिए मानसिक रूप से तैयार करने में उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी है।
यह भी पढ़ें: गांव के स्कूल में पढ़ने वाले 12वीं पास युवा ने बनाए ढेरों ऐप, बनाई अलग पहचान