'किलांबल से राष्ट्रपति भवन'- नैशनल टीचर्स अवॉर्ड के पैसे अपने स्कूल को देंगे रामचंद्रन
सर्वश्रेष्ठ शिक्षक का राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले तमिलनाडु के शिक्षक के रामचंद्रन ने कहा कि सरकारी स्कूल गरीबी की निशानी नहीं हैं, बल्कि उपलब्धियां हासिल करके गर्व महसूस करने वाली जगह हैं. उन्होंने अपनी स्कूल यूनिफॉर्म में राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त कर सभी को चौंका दिया.
इस शिक्षक दिवस पर 'नैशनल टीचर्स अवॉर्ड 2022' लेने एक टीचर खुद स्कूल यूनिफॉर्म में पहुंचे, जिसने सबका ध्यान अपनी तरफ खींचा है. तमिलनाडु के कडाकोडी जिले के रामनाथपुरम में किलाम्बल पंचायत यूनियन प्राइमरी स्कूल के टीचर रामचंद्रन स्कूल में भी यूनिफॉर्म पहनकर और कंधे पर बच्चों की तरह ही बैग रखकर आते हैं. यही उनकी पहचान बन चुकी है. शिक्षक दिवस 2022 पर रामचंद्रन ने योरस्टोरी तमिल के साथ अवॉर्ड पाने की खुशी साझा की. वो कहते हैं ‘मैं 2022 का सर्वश्रेष्ठ टीचर का पुरस्कार पाकर बहुत खुश हूं. मैंने सरकारी स्कूलों को लेकर एक टारगेट तय किया था, मेरी योजना के हिसाब से उसे हासिल करने में दस साल लगते. लेकिन, इस पुरस्कार से मिली प्रेरणा ने मुझे उम्मीद दी है कि यह टारगेट पांच साल के भीतर हासिल किया जा सकता है.'
कौन हैं रामचंद्रन?
रामचंद्रन रामनाथपुरम जिले के सेंबोंगुडी में एक साधारण खेतिहर मजदूर परिवार से थे. उनके परिवार में कोई पढ़ा लिखा नहीं था. उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा सेम्बोंगुडी प्राइमरी स्कूल में की. उसके बाद, तिरुवरंगा के एक सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल में छठी से बारहवीं तक पढ़ाई की. 12वीं कक्षा में स्कूल टॉपर रहे रामचंद्रन ने जिला शिक्षक शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान में दाखिला लेने की कोशिश की लेकिन उन्हें जगह नहीं मिली. रामचंद्रन कहते हैं, ‘उस समय मैंने टीचर बनाने के बारे में नहीं सोचा था, और यह बहुत अप्रत्याशित रूप से हुआ. हालांकि, एक शिक्षक बनकर, मैं अपने जैसे वंचित परिवारों के बच्चों की भलाई कर सकता हूं और उन्हें सही रास्ता दिखा सकता हूं. इसलिए मैं शिक्षक प्रशिक्षण में शामिल हो गया क्योंकि शिक्षण एक धर्मार्थ कार्य है.’
रामचंद्रन ने अपने टीचिंग करियर के बारे में साझा करते हुए बताया कि 2002 में टीचर की ट्रेनिंग पूरी करने और ढाई साल इंतजार करने के बाद 2005 में मुझे सरकारी नौकरी मिल गई. पहले मैं तिरुवदानई के बाद थोंडीपट्टनम यूनियन गवर्नमेंट स्कूल में, फिर 2006 में चेव्वूर गवर्नमेंट स्कूल में और 2008 से किलाम्बल पंचायत यूनियन गवर्नमेंट स्कूल में काम कर रहा हूं. मैंने सरकारी सेवा में शामिल होने के बाद ही बीएससी मैथ्स, एमएससी मैथ्स, बी.एड की पढ़ाई कीकिलाम्बल प्राइमरी स्कूल में पहली से पांचवीं तक के छात्र पढ़ते हैं. वैसे तो रामचंद्रन को तीसरी कक्षा तक के क्लास लेने के लिए ही रखा गया है, मगर वो पांचवीं कक्षा के छात्रों को भी पढ़ाते हैं. इतना ही नहीं वह लगातार 6वीं से 12वीं तक के उन छात्रों की प्रगति पर नजर रख रहे हैं. रामनाथपुरम जिला शैक्षिक रूप से पिछड़ा जिला है लेकिन नीति आयोग का कहना है कि ऐसे में छात्रों को उत्साह के साथ स्कूल लाने के लिए अतिरिक्त ध्यान देना जरूरी है. छात्रों और शिक्षकों के बीच संबंध अच्छे होने चाहिए. मैं अपने स्कूल के छात्रों के साथ यही करता हूं. वे छात्र नहीं हैं, मेरे बच्चे हैं. हमारे बीच ऐसा ही रिश्ता है, इसलिए मैं उनकी तरह ही स्कूल में वर्दी पहनता हूं.
सर नहीं मामा कहकर बुलाते हैं बच्चे
कोई मुझे सर नहीं बुलाता, वे मुझे प्यार से सिथप्पा, मामा, दादाजी कहते हैं. एक अपनापन होने के कारण छात्र गलती करते भी हैं तो हमारे दिमाग उन्हें पनिशमेंट देकर नहीं बल्कि सहानुभूति के साथ सुधारने का विचार आता है. रामचंद्रन का कहना है कि पिछले दो सालों से कोरोना वायरस के चलते स्कूल ने जो कई बदलाव किए हैं उनमें से एक यूनिफॉर्म भी है.
रामचंद्रन ने अपने स्कूल के छात्रों के लिए अपने खर्च पर एंड्रॉयड सेल फोन, टच बोर्ड, वर्चुअल कैमरा खरीदा. उन्होंने यह सुनिश्चित किया है कि छात्र आईसीटी (इन्फॉर्मेशन कम्यूनिकेशन टेक्नोलॉजी) के जरिए अध्ययन करने के लिए आवश्यक सुविधाएं बच्चों के पास मौजूद रहें और वो सीखने में पीछे न रहें. रामचंद्रन के लगन को देखकर शहर के लोग भी स्कूल को स्मार्ट क्लासरूम वाला विश्वस्तरीय स्कूल बनाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने टैबलेट और लैपटॉप उपयोग, पियानो बजाना, झांझ, पेंटिंग, अबेकस, थिरुक्कुरल पढ़ना, टाइपराइटिंग के प्रैक्टिस जैसे अनूठे टैलेंट को बाहर लाने के लिए ट्रेनिंग देकर छात्रों को निरंतर प्रोत्साहन दिया है.
उन्होंने स्कूल परिसर को हरा-भरा रखने के लिए जड़ी-बूटी का बगीचा लगाया है. एकीकृत शैक्षिक क्षमताओं के विकास की दिशा में अपने प्रयासों को देखते हुए स्कूल को यूके संस्थान द्वारा आईएसओ गुणवत्ता प्रमाणन से सम्मानित किया गया है. छात्र आमतौर पर सोचते हैं कि वे स्कूल से घर कब जाएंगे. लेकिन, हमारे स्कूल के छात्र ऐसे नहीं हैं और शाम के 5 बज चुके होते हैं और माता-पिता मुझे फोन करके बच्चों को घर भेजने के लिए कहते हैं. आप समझ सकते हैं कि बच्चे किस हद तक स्कूल से जुड़े हुए हैं.
हम शाम 4 बजे के बाद ही पढ़ाई से अलग की गतिविधियों को पढ़ाते हैं क्योंकि हम स्कूल के घंटों के दौरान अन्य प्रशिक्षण नहीं ले सकते. साथ ही इसे सीखने की कोई बाध्यता नहीं है. वे जो चाहें प्रशिक्षण ले सकते हैं. इस तरह की गतिविधियों से छात्रों की स्कूल के प्रति रुचि बढ़ी है. सप्ताहांत में भी छात्र जागरूकता अभियान के लिए मेरे साथ आते हैं. रामचंद्रन इस बात से खुश हैं कि जल निकायों के पास के क्षेत्रों में ताड़ के पेड़ लगाने के लिए नशा विरोधी और पैरवी जैसे कार्यक्रमों में भाग लेकर छात्र अपनी सामाजिक जिम्मेदारी का एहसास कर रहे हैं.
प्रिंसिपल और अधिकारियों ने दिया साथ
मेरे इस प्रयास में मेरे परिवार का बहुत सहयोग है. पत्नी ने 12वीं तक पढ़ाई की है और हमारे दो बेटे हैं. मैं उनके साथ जो समय बिताता हूं वह उनके लिए काफी होता है. मैं स्कूल के दिनों में रोजाना शाम 7 बजे तक स्कूल में हूं. सप्ताहांत में भी मैं जागरूकता अभियानों में जाता हूं. इस अवॉर्ड को पाने में छात्रों के प्रति मेरी प्रतिबद्धता की उनकी समझ भी मेरे लिए जरूरी है. इसके बाद प्रिंसपल गीतांजलि ने मुझे स्कूल में अपने मनचाहे बदलाव करने और स्कूल के समय के बाद शाम 7 बजे तक स्कूल को खुला रखने की इजाजत दी. रामचंद्रन कहते हैं. मेरी एक्टिविटीज को छात्रों तक ले जाने में जिला शिक्षा अधिकारी ने मेरा साथ दिया.
कई लोग तो अपने परिवार के सदस्यों को भी पुरस्कार समारोह में लेकर आए, मैं जिला शिक्षा अधिकारी को लेकर गया. यह उनके समर्थन को लेकर मेरा एक छोटा सा तरीका था. मैं आगे भी अपने पूरे करियर में छात्रों के लिए वर्दी में ही काम करूंगा जो मेरी पहचान बन गया है. उन्होंने कहा कि अवॉर्ड में मुझे अवॉर्ड में 50,000 रुपये मिले उसका इस्तेमाल मैं सरकारी स्कूल के छात्रों के नशीली दवाओं के प्रति जागरूकता के लिए करने की सोच रहा हूं.
मेरी भविष्य की योजना रामनाथपुरम जिले के सरकारी स्कूल के छात्रों के समग्र शैक्षणिक प्रदर्शन में सुधार करना है. मेरा लक्ष्य आवासीय क्षेत्रों में वीईजी (ग्राम शिक्षा गाइड) केंद्र को धीरे-धीरे लागू करना है ताकि छात्रों के लेखन कौशल को प्रोत्साहित किया जा सके, स्कूल पत्रिका प्रकाशित की जा सके. 3 साल की उम्र से लेकर जीवन में अच्छी स्थिति में आने तक उनका मार्गदर्शन किया जा सके. एक बार जह इंसान को फोन की आदत लग जाती है उसके बाद हम छात्रों को नियंत्रित नहीं कर सकते. लेकिन, अगर उन्हें कम उम्र में ही सिखाया जाए कि उनके फोन पर क्रिएटिव ऐप्स का उपयोग कैसे किया जाए, तो उनके भटकने की संभावना कम होती है.
Edited by Upasana