अमेरिकी बैंक डूबने से याद आ रही 2008 की मंदी, जानिए उस वक्त कैसे मुसीबतों से बाहर निकला था भारत
हाल ही में अमेरिका का सिलिकॉन वैली बैंक डूब गया. उसके बाद भी कई अमेरिकी बैंक डूबे. अब खबर ये है कि क्रेडिट सुइस पर भी डूबने का खतरा मंडरा रहा है. ये सब देखकर लोगों को 2008 की मंदी याद आ रही है.
हाइलाइट्स
हाल ही में अमेरिका का सिलिकॉन वैली बैंक डूब गया.
उसके बाद भी कई अमेरिकी बैंक डूबे.
अब खबर ये है कि क्रेडिट सुइस पर भी डूबने का खतरा मंडरा रहा है.
ये सब देखकर लोगों को 2008 की मंदी याद आ रही है.
पिछले कुछ दिनों में कई अमेरिकी बैंकों के डूबने की खबर आई है. इसकी शुरुआत हुई सिलिकॉन वैली बैंक के डूबने (Silicon Valley Bank Collapse) से. 2008 में वॉशिंगटन म्यूचुअल के डूबने (Washington Mutual Collapse) के बाद पहली बार इतना बड़ा बैंक अमेरिका में डूबा है. इसे अमेरिका में रिटेल बैंक के डूबने का दूसरा सबसे बड़ा मामला माना जा रहा है. वहीं अब संकट क्रेडिट सुइस (Credit Suisse) तक जा पहुंचा है. ये बैंकिंग संकट देखते ही लोगों को 2008 की मंदी (Recession) याद आ रही है, जिसकी सबसे बड़ी वजह थी बैंकिंग सिस्टम का फेल (Banking System Fail) हो जाना. सवाल ये है कि आखिर 2008 की मंदी क्यों और कैसे आई थी? साथ ही लोग ये भी जानना चाह रहे हैं कि आखिर भारत उस मंदी से बाहर कैसे निकला?
पहले जानिए 2008 में क्या हुआ था
वो दिन था 29 सितंबर 2008 का. जैसे ही अमेरिका बाजार खुले, देखते ही देखते गिरावट के सारे रेकॉर्ड टूट गए. डाऊ जोन्स 7 फीसदी गिरा, एसएंडपी 500 इंडेक्स 8.8 फीसदी गिर गया और नेस्डेक 9 फीसदी गिर गया. 1987 के बाद अमेरिकी बाजार में इतनी बड़ी गिरावट देखी गई थी. एक ही दिन में 1.2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ. इस आर्थिक मंदी की सबसे बड़ी वजह था लीमैन ब्रदर्स बैंक. 2002-04 के बीच होम-लोन बहुत सस्ता था, जिसके चलते लोग लोन लेकर प्रॉपर्टी खरीदने लगे और घरों के दाम बढ़ गए.
ये सब देखकर लीमैन ब्रदर्स ने लोन देने वाली 5 कंपनियों को ये सोचकर खरीद लिया कि आने वाले दिनों में उसे खूब फायदा होगा. खैर, प्रॉपर्टी के दाम बढ़ने की वजह से कई सारे डिफॉल्ट भी होने लगे. कई लोगों को बिना किसी गारंटी के ही लोन दे दिया था, उनका पुराना रेकॉर्ड तक चेक नहीं किया था, इससे भी लोन डिफॉल्ट हुए. नतीजा ये हुआ कि मार्च 2008 में अमेरिका की दूसरी सबसे बड़ी होम लोन कंपनी स्टर्न्स डूब गई. 17 मार्चै को लीमैन के शेयर 48 फीसदी तक टूट गए. 15 सितंबर को बैंक ने दिवाला के लिए आवेदन कर दिया. 29 सितंबर को इस मंदी का असली असर देखने को मिला, जो अगले करीब एक दशक तक देखा गया. इस मंदी से पूरी दुनिया पर असर पड़ा.
भारत कैसे बचा 2008 की मंदी से?
आर्थिक मंदी के उस दौर में सरकार ने ये सुनिश्चित किया कि बाजार में पर्याप्त मात्रा में लिक्विडिटी बनी रहे और बैंकों को कोई संकट ना आए. इसके लिए 3 महीने में सरकार ने करीब 1.86 करोड़ रुपये के 3 राहत पैकेज जारी किए. वहीं रिजर्व बैंक ने रेपो रेट घटा दिया, जिसके चलते कर्ज सस्ता हो गया. सरकार के इस कदम की वजह से बाजार में पर्याप्त लिक्विडिटी रही और बैंकों पर संकट नहीं आया. वहीं कुछ सरकारी नीतियों की वजह से एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिला, जिससे भारत को मजबूत बने रहने में मदद मिली.
2008 की मंदी या यूं कहें कि किसी भी ग्लोबल मंदी का भारत पर असर बाकी देशों के तुलना में थोड़ा कम ही रहता है. अमेरिका, यूके जैसे विकसित देशों की तुलना में भारत मंदी से आसानी से लड़ पाता है. 2008 में भी भारत मंदी से आसानी से लड़ा. उसकी एक बड़ी वजह थी ग्रामीण भारत की बचत व्यवस्था और हर घर में अच्छा-खासा सोना होना. अमेरिका में मंदी आने से सबसे बुरा असर शेयर बाजार और एक्सपोर्ट-इंपोर्ट पर पड़ा. वहीं भारत में बहुत ही कम लोग शेयर बाजार से जुड़े थे. वहीं दूसरी ओर इंपोर्ट की चीजों की वजह से नुकसान हुआ, लेकिन एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिला. भारत पर मंदी का असर ज्यादा ना होने की एक बड़ी वजह ये भी है कि यहां घरेलू बाजार ही काफी बड़ा है. ऐसे में अगर यहां एक्सपोर्ट-इंपोर्ट का बहुत ज्यादा योगदान नहीं भी रहता है तो भी घरेलू बाजार से तगड़ी मांग आती रहती है. यहां लोग सोने-चांदी में खूब निवेश करते हैं और ज्वैलरी बनवाकर रखते हैं, वह भी मुसीबत की वक्त में काम आने वाली चीज साबित हुई.