Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

वह महिला, जिसकी वजह से लड़कियों को मिला परिवार की पैतृक संपत्ति में कानूनी हक

अपने छह दशक लंबे कॅरियर में कई अप्रतिम काम करने वाली लीला सेठ हाईकोर्ट की पहली महिला जज भी थीं.

वह महिला, जिसकी वजह से लड़कियों को मिला परिवार की पैतृक संपत्ति में कानूनी हक

Thursday October 20, 2022 , 5 min Read

आज लीला सेठ की पांचवी पुण्‍यतिथि है. लीला सेठ, जिनके खाते में कई क्षेत्रों में पहली महिला होने का रिकॉर्ड दर्ज है. लीला सेठ किसी भी स्‍टेट हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस बनने वाली पहली भारतीय महिला थीं. वह दिल्‍ली हाईकोर्ट जज बनने वाली भी पहली भारतीय महिला थीं. वह सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के द्वारा सीनियर काउंसिल के पद पर नियुक्‍त की जाने वाली पहली महिला वकील थीं. इस तरह देखा जाए तो अपने छह दशक से ज्‍यादा लंबे कॅरियर में लीला सेठ ने कई अप्रतिम प्रतिमान दर्ज किए हैं.

उपरोक्‍त सभी क्षेत्रों में अव्‍वल होने के अलावा उनके खाते में दर्ज उपलब्धियों की फेहरिस्‍त बहुत लंबी है. 1958 में वह लंदन बार की परीक्षा में टॉप करने वाली पहली महिला थीं. वह विक्रम सेठ के उपन्‍यास ए सुटेबल बॉय की 19 साल की नायिका लत भी थीं, जिनकी मां अपनी बड़ी होती बेटी के विवाह के लिए फिक्रमंद है. वह लंदन से कानून की पढ़ाई कर हिंदुस्तान लौटी वो महिला वकील भी थीं, जिन्‍होंने फैमिली कोर्ट में प्रैक्टिस करने से इनकार कर दिया था.

साल 2003 में लीला सेठ की आत्‍मकथा प्रकाशित हुई थी 'On Balance', जिसकी भूमिका उनके बेटे और अंग्रेजी के नामी लेखक विक्रम सेठ ने लिखी है. किताब की भूमिका में विक्रम लिखते हैं कि इसके पहले हमने मां के हाथों की लिखी कुछ कविताएं, कुछ चिट्ठियां, कुछ भाषण, कुछ लेक्‍चर और कुछ न्‍यायिक फैसले पढ़े थे, लेकिन उनमें से कुछ भी हमें इस गहन और विराट अनुभव के लिए तैयार नहीं कर पाया, जो इस किताब को पढ़ते हुए हम महसूस करने वाले थे. यूं तो हम उनसे अकसर कहा करते थे कि उन्‍हें अपनी आत्‍मकथा लिखनी चाहिए, लेकिन ये लिखने का मन वो तब तक नहीं बना पाईं, जब तक उनके पहले ग्रैंड चाइल्‍ड का जन्‍म नहीं हो गया.

लीला अपनी आत्‍मकथा लिखने की वजह कुछ यूं बयां करती हैं, “मैं 73 की हो गई हूं और एक बार पलटकर अपनी जिंदगी को देखना चाहती हूं.”

20 अक्‍तूबर, 1930 को लखनऊ के एक उच्‍च-मध्‍यवर्गीय परिवार में लीला सेठ का जन्‍म हुआ था. पिता रेलवे में थे. लीला अपनी आत्‍मकथा में लिखती हैं, “उस जमाने में बेटियों का पैदा होना बहुत खुशी की बात नहीं होती थी. हर किसी को बेटे का ही अरमान होता. लेकिन मेरे माता-पिता, जो पहले से ही दो बेटों के पैरेंट थे, बड़ी बेसब्री से एक बेटी के जन्‍म की कामना कर रहे थे. जब मैं पैदा हुई तो मेरे पिता ने अस्‍पताल में ही मानो जोर से सबको सुनाते हुए चिल्‍लाकर ये घोषणा की, मैं मेरी बेटी के लिए दहेज नहीं जुटाऊंगा. उसे बड़े होकर अपने पैरों पर खड़े होना होगा.”

लीला अपनी आत्‍मकथा में लिखती हैं कि मेरे पिता वेस्‍टर्न कल्‍चर से काफी प्रभावित थे. वे ब्रिटिश सरकार की इंपीरियल रेलवे सर्विस में थे. मां भी मिशनरी स्‍कूल से पढ़ी थीं. दोनों पर ही सांस्‍कृतिक रूप से भारतीयता का उतना बोझ नहीं था. पिता ने बेटी को स्‍वतंत्र होकर सोचना, जीना और आत्‍मनिर्भर होना सिखाया.

पिता बहुत आजादख्‍याल थे, लेकिन लीला के सिर पर पिता का साया ज्‍यादा दिनों तक नहीं रहा. वो सिर्फ 11 साल की थीं, जब पिता का निधन हो गया. पिता के न रहने पर परिवार को काफी आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा. लेकिन उनकी मां ने बेटी की पढ़ाई रुकने नहीं दी. लोरेटो कॉन्‍वेंट, दार्जिलिंग से स्‍कूली शिक्षा पूरी करने के बाद लीला कोलकाता में बतौर स्‍टेनोग्राफर काम करने लगीं. वहीं उनकी मुलाकात प्रेम सेठ से हुई, जिनसे बाद में उनका विवाह हुआ.

विवाह के समय लीला की की उम्र सिर्फ 20 साल थी. शादी के बाद वो अपने पति प्रेम सेठ के साथ लंदन चली गईं, जो उस वक्‍त बाटा में नौकरी करते थे. लंदन में जाकर वह अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करना चाहती थीं. उन्‍होंने लॉ पढ़ने का फैसला किया. इसकी वजह ये थी कि बाकी कोर्स की तरह लॉ की पढ़ाई में रोज क्‍लास अटेंड करने की जरूरत नहीं थी. उनकी गोद में छोटा बच्‍चा था. उन्‍होंने घर-गृहस्‍थी और बच्‍चे की जिम्‍मेदारी संभालने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी.

1958 में वह लंदन बार की परीक्षा में बैठीं और टॉप किया. उस वक्‍त वह सिर्फ 27 साल की थीं. उसी साल उन्‍होंने आईएएस की परीक्षा दी और वह भी पास कर ली. इस परीक्षा में टॉप करने वाली वह पहली महिला थीं.

जब लंदन बार की परीक्षा का रिजल्‍ट आया तो लंदन के अखबारों में लीला सेठ की फोटो छपी. उनकी गोद में एक और छोटा बच्‍चा था, जो परीक्षा के कुछ ही महीने पहले पैदा हुआ था. लोगों को अचंभा इस बात का था कि 580 मर्दों के बीच ये एक शादीशुदा और बच्‍चों वाली औरत कैसे परीक्षा में अव्‍वल आ गई.

उसके बाद वो और उनका परिवार हिंदुस्‍तान लौट आया और लीला सेठ पटना हाईकोर्ट में प्रैक्टिस करने लगीं. 10 साल वहां प्रैक्टिस करने के बाद 1972 में वह दिल्‍ली हाईकोर्ट आ गईं. 1978 में वह दिल्‍ली हाईकोर्ट की जज नियुक्‍त हुईं. 1991 में वह हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस नियुक्‍त होने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.

लीला सेठ कई महत्‍वूपूर्ण कमीशनों का हिस्‍सा रहीं. वह 2012 में निर्भया गैंगरेप के बाद भारत में रेप कानूनों में बदलाव के लिए बनाई गई जस्टिस वर्मा कमेटी की सदस्‍य थीं. वह भारत के पंद्रहवें लॉ कमीशन की भी सदस्‍य थीं. भारत के उत्‍तराधिकार कानून में साल 2020 में जो बदलाव हुए, जिसके तहत विरासत में मिलने वाली पैतृक संपत्ति में भी लड़कियों को बराबर का हिस्‍सा दिया गया, उस कानूनी बदलाव का पूरा श्रेय भी लीला सेठ को जाता है. अपने जीवन काल में लड़ी गई लीला सेठ की लंबी लड़ाई का नतीजा था ये कानून.