भिखारियों की जिंदगी बदल रहे हैं नवीन, स्वयंसेवियों के साथ मिलकर ला रहे हैं बड़ा बदलाव
नवीन ने भिखारियों के जीवन को बदलने की कोशिश करने का फैसला तब किया जब उन्होंने देखा कि उनके द्वारा दिये गए पैसों से भिखारी ने शराब खरीदी। भारत में भिखारियों की यथास्थिति को चुनौती देने के लिए नवीन ने एपीजे अब्दुल कलाम और स्वामी विवेकानंद की किताबें पढ़ना शुरू किया।
भारतीय सड़कों और सार्वजनिक स्थानों पर भिखारी दिख जाना बहुत आम हैं। अक्सर, जब हम एक से संपर्क करते हैं, तो हम दो में से एक काम करते हैं- या तो उन्हें अनदेखा कर देते हैं या उन्हें कुछ पैसे दे देते हैं ताकि वो हमें अकेला छोड़ दें। लेकिन, इससे उनकी स्थिति और भारत की बढ़ती गरीबों की समस्या का समाधान नहीं होता, और यही अटचाईम ट्रस्ट के संस्थापक 26 साल के नवीन कुमार भी सोचते हैं।
2014 के बाद से, नवीन के ट्रस्ट ने 4,300 भिखारियों की सफलतापूर्वक काउंसलिंग की और उनमें से 424 के पुनर्वास में सफलता हासिल की। अकेले 2019 में, उन्होंने 104 भिखारियों के पुनर्वास में मदद की।
ट्रस्ट की तमिलनाडु में 18 जिलों में उपस्थिति है और इसे 400 से अधिक स्वयंसेवकों द्वारा चलाया जाता है।
द लॉजिकल इंडियन से बात करते हुए नवीन ने बताया,
"मेरा मुख्य उद्देश्य भिखारी-मुक्त भारत बनाना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, पहला कदम पैसा देकर भीख को प्रोत्साहित नहीं करना है, बल्कि, लोगों को उन्हें रोजगार के अवसर, भोजन, कपड़े देकर उनके लिए सामाजिक की व्यवस्था करना है।"
जेकेकेएन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, कोमलपालयम में सहायक प्रोफेसर पद पर तैनात नवीन कॉलेज में अपनी पूर्णकालिक नौकरी करने के साथ ही ट्रस्ट की देखभाल भी करते हैं।
उनके लिए प्रमुख लक्ष्य बिखरियों के जीवन में नए बदलाव लाना है। एक कमजोर प्रष्ठभूमि से आने के चलते वो इस संघर्ष को बेहतर समझते हैं।
नवीन ने भिखारियों के जीवन को बदलने की कोशिश करने का फैसला तब किया जब उन्होंने देखा कि उनके द्वारा दिये गए पैसों से भिखारी ने शराब खरीदी । भारत में भिखारियों की यथास्थिति को चुनौती देने के लिए नवीन ने एपीजे अब्दुल कलाम और स्वामी विवेकानंद की किताबें पढ़ना शुरू किया।
डेक्कन क्रॉनिकल से बात करते हुए उन्होंने कहा,
"मैंने बुजुर्ग लोगों को सड़कों पर बेसहारा घूमते हुए देखता था और मैं उनके लिए कुछ करना चाहता था, लेकिन मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति के चलते लोगों ने मुझे दूसरों को सुधारने की कोशिश में समय बर्बाद करने के बजाय अपनी पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा। इससे मैं आहत हुआ और उनके जीवन को बदलने का विचार मेरे भीतर घर कर गया।"
नवीन की पहली पुनर्वास परियोजना में उन्हे 60 वर्षीय राजशेखर को सशक्त बनाना था, जिन्होने एक कार दुर्घटना में अपने परिवार को खो दिया था और अपने सभी पहचान पत्र भी खो दिये थे। बिना आईडी के उन्हे नौकरी दिलाना आसान काम नहीं था, लेकिन नवीन ने एक दोस्त की मदद से उनके लिए एक चौकीदार की नौकरी की व्यवस्था की। तब से, नवीन ने लोगों को कपड़े, सफाई किट, भोजन, और चिकित्सा संबधित समान वितरित कर रहे हैं।
ट्रस्ट ऐसे लोगों के लिए स्नान, बाल कटाने और शेव करने की व्यवस्था भी प्रदान करता है, यह काम नर्सिंग टीम द्वारा किया जाता है। ट्रस्ट ने 19 श्रेणियां तैयार की हैं, जिसके आधार पर प्रत्येक भिखारी को वृद्धाश्रम या पुनर्वास केंद्र भेजा जाता है।
नवीन ने लॉजिकल इंडियन से बात करते हुए बताया
"एक भिखारी के पुनर्वास करने के लिए 8,000 से 10,000 रुपये की आवश्यकता होती है। प्रत्येक घर में भिखारियों को स्वीकार करने के लिए अपने अलग मानदंड हैं। उदाहरण के लिए, मानसिक रूप से विकलांग भिखारी को केवल मानसिक रूप से विकलांग लोगों के लिए एक बने घर में भर्ती कराया जा सकता।"