Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

फरिश्ते की तरह अंगदान के लिए 43 देशों में 73 हजार लोगों को प्रेरित कर चुके अनिल-दीपाली

फरिश्ते की तरह अंगदान के लिए  43 देशों में 73 हजार लोगों को प्रेरित कर चुके अनिल-दीपाली

Tuesday January 21, 2020 , 5 min Read

अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के कपल अनिल श्रीवास्तव और दीपाली जीवन दान देने वाले फरिश्तों की तरह पूरी दुनिया का चक्कर लगा रहे हैं। पिछले एक साल से इनकी जिंदगी सड़कों पर बीत रही है। अनिल का यह सफर 2014 में अपने भाई अर्जुन को खुद की किडनी दान करने से शुरू हुआ है। अब तक वे 43 देशों में 73 हजार लोगों को मोटिवेट कर चुके हैं।


क

अनिल श्रीवास्तव और दीपाली



अमेरिका में रह रहे भारतीय मूल के अनिल श्रीवास्तव और उनकी पत्नी दीपाली ने अंगदान के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए बीते साल, सवा साल से एक वैश्विक मुहिम सी छेड़ रखी है। इस दौरान यह कपल 43 देशों का एक लाख किलोमीटर का सफर कर तय कर चुके हैं। वह जगह-जगह रुककर लगभग 73 हजार लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित कर चुके हैं।


अनिल 2014 में अपने भाई अर्जुन श्रीवास्तव को खुद की किडनी दान कर चुके हैं। सबसे पहले उनके भाई का प्यार ही इस अभियान की पहली वजह बना। अंगदान किसी को भी फरिश्ता बना देता है। उनका अभियान लाइव होता है। पत्नी कार में ही खाना पकाती हैं, बेड तैयार करती हैं। इस तरह वे दोनो एक साल से सड़कों पर वक्त बिता रहे हैं।


अनिल और दीपाली अब तक तमाम स्कूल, कॉलेजों, रॉटरी क्लब, सामुदायिक केंद्रों और दफ्तरों में अंगदान को लेकर मोटिवेशन स्पीच दे चुके हैं। वह लोगों को नैतिक और कानूनी रूप से अंगदान के मुद्दे पर भी जागरूक करते हैं। अनिल1997 से 2006 तक रेडिया टॉक शो के लिए लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। वह मार्च 2020 से 'गिफ्ट ऑफ लाइफ एडवेंचर' नाम से अपनी अगली यात्रा न्यूयॉर्क से अर्जेटीना की शुरू करने जा रहे हैं।


न्यू जर्सी (अमेरिका) में रह रहे अनिल श्रीवात्सव ने पांच साल पहले अपने भाई को एक किडनी दान की थी। वह भारत में सबसे बड़ी कॉरपोरेट डिजिटल ऑडियो कंपनी रेडियोवाला के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी भी हैं। वह अब तक कई तरह की बाधाओं का सामना कर चुके हैं।


जब उन्होंने अपने भाई को अपनी किडनी दान करने का निर्णय लिया तो उन्हें भारतीय कानूनी प्रक्रिया के साथ-साथ अपने व्यक्तिगत जीवन में भी कई मुश्किलों को पार करना पड़ा। अपनी और अपने भाई की सफल किडनी प्रत्यारोपण सर्जरी के बाद उन्होंने अपना अगला मिशनरी लक्ष्य 'गिफ्ट ऑफ लाइफ एडवेंचर' की वैश्विक पहल की है।





अनिल के भाई अर्जुन श्रीवास्तव को एक न्यूरोसर्जन से 1991 में क्रोनिक किडनी रोग का पता चला था, लेकिन उन्होंने अपनी बीमारी के बारे में अनिल को तब तक नहीं बताया, जब तक कि 2009 में उनकी किडनी फेल नहीं होने लगी। वह बताते हैं कि उस समय मेरे सामने बहुत सारे सवाल थे।


अनिल कहते हैं कि इस तरह की सूचना किसी के भी जीवन में आसानी से सहमत हो सकने वाली बात नहीं होती है लेकिन भाई को किडनी देने के प्रति उनके मन में कोई संदेह नहीं रहा। वह दृढ़ प्रतिज्ञ रहे कि वह ऐसा करेंगे ही। जब उन्होंने अपने भाई को एक किडनी दान करने का निर्णय लिया तो उन्हें एहसास हुआ कि ऐसा करने के रास्ते में कितने अवरोध हैं।


भारत में, एक जीवित अंग दाता को पहले परामर्श सत्र के लिए डॉक्टर के पास बैठना होता है और जीवित दान से जुड़े जोखिमों पर चर्चा करनी पड़ती है। हमे जीवन में ना नहीं सुनने की पहले से आदत रही है। यद्यपि मेरे सामने ना कहने का बड़ा सीधा सा अवसर था। उन्होंने बड़े आराम से डॉक्टर के सवालों का सामना कर लिया।


अनिल कहते हैं कि हमारे ऊपर कई तरह के सामाजिक और पारिवारिक दबाव होते हैं। कभी-कभी, लोगों को एक अंग दान करने के लिए मजबूर किया जाता है। यही कारण है कि ट्रांसप्लांटेशन के लिए डॉक्टरों के पास ये परामर्श सत्र निजी तौर पर होते हैं। वे यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि क्या वह व्यक्ति वास्तव में अंगदान का इच्छुक है या किसी दबाव में ऐसा कर रहा है।

क

अनिल श्रीवास्तव

उन्होंने डॉक्टर को साफ साफ बता दिया कि वह अपने भाई की जिंदगी बचाना चाहते हैं। इसके बाद उनकी दोहरी नागरिकता का सवाल आड़े आया। वह भारत और अमेरिका, दोनो देशों के नागरिक हैं। इसीलिए उन्हें नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करना आवश्यक था। इस प्रक्रिया में किडनी की काला बाजारी का भी हस्तक्षेप जुड़ा हुआ है। प्रत्येक जीवित अंगदाता को अपने किसी अंग को दान करने के लिए भारत सरकार की प्रत्यारोपण अनुमोदन समिति से भी सहमति लेनी पड़ती है। मतलब कि एक काम के लिए कई तरह की कागजी कार्यवाही से गुजरना होता है।


जीवित अंगदाता के लिए इस प्रक्रिया में सबसे बड़ी अड़चन तो घर के भीतर होती है। मां, पिता, पत्नी, बच्चों, अथवा जीवन साथी, सबकी लिखित सहमति पर ही अंगदान संभव हो पाता है। भाई के लिए किडनी दान करने के समय उन्हे इन तरह तरह के अनुभवों से गुजरना पड़ा है। वह ऐसे हर चैलेंज से लड़ चुके हैं।