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महाराष्ट्र के भोर प्रखंड ने प्लास्टिक कचरे को खत्म करने की दिशा में कायम की मिसाल

ग्रामीण इलाकों सहित देश में बढ़ते प्लास्टिक कचरे और उसकी चुनौतियों को देखते हुये स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के दूसरे चरण की परियोजना बिलकुल समय पर शुरू की गई है।

महाराष्ट्र के भोर प्रखंड ने प्लास्टिक कचरे को खत्म करने की दिशा में कायम की मिसाल

Tuesday February 08, 2022 , 4 min Read

महाराष्ट्र के पुणे जिले में भोर प्रखंड की सासेवाड़ी ग्राम पंचायत ने प्लास्टिक कचरे को खत्म करने की दिशा में एक स्वस्थ मिसाल कायम की है। साथ ही प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के लिये अभिनव, सस्ती और संकुल स्तरीय प्रणाली के जरिये स्वच्छता हासिल कर ली है।

ग्रामीण इलाकों सहित देश में बढ़ते प्लास्टिक कचरे और उसकी चुनौतियों को देखते हुये स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण के दूसरे चरण की परियोजना बिलकुल समय पर शुरू की गई है।

पायलट परियोजना के लिये चार ग्राम सभाओं – सासेवाड़ी, शिन्देवाड़ी, वेलु और कसूरदी को चुना गया था। इन चारों ग्राम सभाओं के अधीन आने वाले इलाके में कई छोटे उद्योग चलते हैं। साथ ही कई होटल और रेस्त्रां भी मौजूद हैं। इन सबके कारण बड़े पैमाने पर लोगों का आना-जाना लगा रहता था। इसके अलावा, सभी ग्राम सभाओं में प्लास्टिक कचरे को खुले में फेंक देना या उन्हें जलाने की गतिविधियां चलती रहती थीं, जिसके कारण माहौल खराब होता था। तब पंचायती राज संस्थानों को महसूस हुआ कि ऐसे कचरे को फौरन निपटाने की व्यवस्था करना जरूरी है।

स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण (SBM-G), चरण-दो के तहत, खुले में शौच से मुक्त दर्जे के आगे की हैसियत प्राप्त करने के लिये प्लास्टिक कचरा प्रबंधन बहुत महत्‍वपूर्ण है। साथ ही, संचालन दिशा-निर्देशों के अनुसार भी प्लास्टिक कचरा प्रबंधन, प्रखंड/जिले की जिम्मेदारी है। इसके आधार पर भोर के प्रखंड विकास अधिकारी (बीडीओ) वीजी तानपुरे ने मुम्बई-बेंगलुरु राजमार्ग पर पुणे के निकट स्थित गांवों के लिये एक संकुल स्तरीय प्लास्टिक कचरा प्रबंधन प्रणाली की योजना बनाई। इस इलाके में प्लास्टिक कचरा बड़ी मात्रा में जमा होता था।

Plastic Waste Management

सभी ग्राम सभाओं में बैठकें की गईं, ताकि समुदायों को समझाया जा सके की प्लास्टिक के कचरे का निपटान कितना जरूरी और महत्‍वपूर्ण है तथा खुले में शौच से मुक्त दर्जे से आगे की स्थिति प्राप्त करने में उसकी क्या भूमिका है। तय किया गया कि प्लास्टिक री-साइकिल करने वाली निजी कंपनियों के साथ समझौता किया जाये, जो प्लास्टिक जमा करके उनका प्रसंस्करण करे, प्लास्टिक को एक प्रकार के कच्चे तेल में परिवर्तित करे और उस तेल को उद्योगों में जलाने के काम में लाया जाये। चुनी गई कंपनी ने गांवों के एक किलोमीटर दायरे में एक संयंत्र स्थापित किया। इस संयंत्र में आसानी से कचरा पहुंचाया जाने लगा। कचरा पहुंचाने के काम का खर्च भी कम रखा गया।

सासेवाड़ी गांव में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन प्रणाली

सासेवाड़ी गांव पहला ऐसा गांव था, जहां यह प्रणाली स्‍थापित की गई। प्लास्टिक को जमा करने, छांटने और उसे ले जाने की व्यवस्था की गई। साथ ही उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल संभव बनाया गया। शुरुआत में प्रस्तावित केंचुआ खाद संयंत्र को संसाधन बहाली केंद्र में बदल दिया गया, जहां जमा किये जाने वाले प्लास्टिक को रखने के लिये एक छोटी सी जगह दे दी गई। उसके बाद, स्वच्छता कर्मचारी को रखा गया, जो प्लास्टिक जमा करके उसकी छंटाई करता था। दूसरा मजदूर उस कचरे को कंपनी तक ले जाता था। कंपनी तक कचरा ले जाने का शुल्क बहुत मामूली था।

पहले तो लोग कचरे की छंटाई ठीक से नहीं करते थे। बहरहाल, लगातार बातचीत करने के बाद, लगभग सभी घरों के लोगों ने इसे गंभीरता से लिया और प्रणाली से जुड़ गये।

कंपनी आठ रुपये प्रति किलो के हिसाब से प्लास्टिक कचरा खरीदती है। ग्राम सभा इस आय को प्रणली के रखरखाव और संचालन में खर्च करती है। प्लास्टिक संयंत्र प्लास्टिक को साफ करने और धूल-मिट्टी हटाने की प्रणाली से भी लैस है। वहां प्लास्टिक को बराबर आकार में काटने के लिये कटाई-मशीन भी लगाई गई है।

प्लास्टिक प्रसंस्करण संयंत्र के दो बड़े लाभ

वहां प्रसंस्करण के लिये हर तरह का प्लास्टिक कचरा लिया जाता है तथा जो सहायक-उत्पाद (कार्बन के टुकड़े, गैस उत्सर्जन और तेल व गैस) वह पैदा करता है, वह पर्यावरण के लिये हानिकारक नहीं है। वास्तव में, तेल के साथ निकलने वाली गैस का इस्तेमाल संयंत्र की मशीनों को चलाने में किया जाता है। साथ ही, जो उत्सर्जन होता है, वह भी महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा तय सीमा से कम है।

सासेवाड़ी में परियोजना के सफल क्रियान्वयन के बाद, योजना तैयार की गई है कि अन्य तीन गांवों को भी इस प्रणाली से जोड़ने की समान प्रक्रिया शुरू की जाये। प्रखंड के बाकी गांवों में भी प्लास्टिक कचरे का निपटान करने के लिये यही प्रक्रिया जल्द अपनाई जायेगी, जिसके तहत यही अनोखी, पर्यावरण अनुकूल और सस्ती प्रणाली का पालन किया जायेगा।


Edited by Ranjana Tripathi