मरियप्पन थंगावेलू : मुश्किलों को अपनी हिम्मत से मात देने वाला ‘खेल रत्न’
नयी दिल्ली, बेहद गरीब परिवार में जन्मे मरियप्पन थंगावेलू ने पांच वर्ष की आयु में एक दुर्घटना में अपना एक पैर गंवा दिया, उसके पिता परेशानियों से घबराकर घर छोड़ गए और मां ने जमाने भर की मुश्किलें झेलकर उनकी परवरिश की, लेकिन इन तमाम दुष्वारियों में कुदरत की हर चोट उनके हौंसलों को गढ़ती रही और फिर एक दिन उन्होंने अपनी मेहनत से खुद को तराशकर ‘रत्न’ बना दिया।
तमिलनाडु के मरियप्पन ने वर्ष 2016 के रिओ पैरालंपिक खेलों में पुरूषों की ऊंची कूद स्पर्धा के टी42 वर्ग में स्वर्ण पदक जीतकर देश का गौरव बढ़ाया। खेलों में उनके योगदान को सम्मान देने के लिए उन्हें 2017 में देश के चौथे शीर्ष राष्ट्रीय सम्मान पद्मश्री से नवाजा गया। 2017 में ही उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा खेल सम्मान अर्जुन अवार्ड प्रदान किया गया और हाल ही में उन्हें देश का सर्वोच्च खेल पुरस्कार ‘खेल रत्न’ देने की घोषणा की गई। वह यह सम्मान हासिल करने वाले देश के तीसरे पैरा एथलीट हैं।
सेलम जिले से 50 किलोमीटर के फासले पर स्थित पेरियावादमगट्टी गांव में 28 जून 1995 को जन्मे मरियप्पन के शुरूआती बरस बहुत मुश्किल हालात में गुजरे। पांच साल की उम्र में एक दुर्घटना में उनकी दाईं टांग घुटने के नीचे से बेकार हो गई। उनके इलाज के लिए तीन लाख रूपए का कर्ज लिया गया, जिसे चुकाया न जा सका। परेशानियों से घबराकर उनके पिता घर छोड़कर चले गए और मां सरोजा ने कुछ बरस मजदूरी करके और फिर सब्जी बेचकर अपने छह बच्चों को पाला।
इस दुर्घटना के बावजूद मरियप्पन ने सामान्य बच्चों के साथ अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की और इस दौरान वह वॉलीबॉल खेलने लगे। इसी दौरान स्कूल के प्रशिक्षक ने उन्हें ऊंची कूद में अभ्यास करने को कहा। 14 वर्ष की आयु में मरियप्पन ने सामान्य बच्चों की प्रतियोगिता में भाग लिया और ऊंची कूद में दूसरे स्थान पर रहे। उनकी इस उपलब्धि पर उन्हें स्कूल प्रशासन से बहुत शाबाशी मिली।
2013 का वर्ष मरियप्पन के जीवन का निर्णायक वर्ष रहा, जब इंडियन नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उनके मौजूदा कोच सत्यनारायण ने उन्हें देखा और उनकी प्रतिभा को संवारने का बीड़ा उठाया। 2015 में वह मरियप्पन को आगे की कोचिंग के लिए बेंगलुरू ले गए। इसके बाद मरियप्पन कदम दर कदम अपने अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने की कोशिशों में लग गए।
मार्च 2016 में ट्यूनिशिया में आईपीसी ग्रां प्री में टी42 स्पर्धा में 1.78 मीटर की छलांग लगाकर मरियप्पन ने रियो दी जेनेरियो में होने वाले पैरालंपिक खेलों में भाग लेने का हक हासिल किया। इस मौके पर ही मरियप्पन ने भरोसा दिलाया था कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो वह देश के लिए सुनहरी सफलता हासिल कर सकते हैं।
सितंबर 2016 में हुई इस प्रतियोगिता में मरियप्पन ने पूरे विश्वास के साथ कुछ डग भरे और फिर 1.89 मीटर की छलांग लगाने के बाद गद्दे पर गिरे तो वह जानते थे कि वह एक बड़े कारनामे को अंजाम दे चुके हैं। खड़े होते-होते उनके दोनों हाथ हवा में ऊपर उठ गए और चंद सेकंड बाद विजेता के रूप में उनके नाम का ऐलान होते ही उनके चेहरे पर स्वर्णिम आभा चमकने लगी।
शरीर से लाचार होने पर लोग हिम्मत हार बैठते हैं, लेकिन मरियप्पन ने अपनी कमजोर टांग को ही अपनी ताकत बना लिया और देश के लिए अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भी सफलता हासिल की। वह कहते हैं कि दुर्घटना के बाद उनकी टांग का कुछ हिस्सा छोटा ही रह गया, लेकिन उनके पैर का अंगूठा कुछ ज्यादा बढ़ गया, जिससे उन्हें छलांग लगाने में अतिरिक्त मदद मिलने लगी। मरियप्पन अपने इस अंगूठे को अपना भगवान मानते हैं और उनके इसी भगवान ने उनकी हर मुश्किल को आसान कर दिया।
(सौजन्य से- भाषा पीटीआई)