ई-कॉमर्स कंपनियों की ओर से दी जाने वाली भारी छूट चिंता का विषय: अध्ययन
कई ऐसे उदाहरण है कि मार्केटप्लेस मंचों पर कुछ उत्पादों का दाम खुदरा दुकानदारों के पास उस उत्पाद के लागत मूल्य से भी कम होता है। खुदरा दुकानदारों का कहना है कि उन्हें आनलाइन पर दी जाने वाली छूट के समान ही रियायत की पेशकश करनी पड़ती है। देश में मोबाइल फोन की कुल बिक्री में आनलाइन की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है।
बड़ी ऑनलाइन कंपनियों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं पर दी जाने वाली भारी छूट या रियायत पर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) के एक अध्ययन में चिंता जताई गई है।
सीसीआई ने बुधवार को इस अध्ययन के साथ अपने निष्कर्ष भी जारी किए। अध्ययन में विशेष रूप से मोबाइल फोन पर दी जाने वाली छूट का उल्लेख किया गया है। प्रतिस्पर्धा आयोग ने कहा है कि वह बाजार में अपनी दबदबे की स्थिति का लाभ उठाने वाले सभी मामलों की जांच करेगा।
सीसीआई ने कहा कि अध्ययन में उठाए गए मुद्दों के हल को मार्केटप्लेस मंचों को स्वयं नियमन के उपाय करने चाहिए। इसके अलावा उन्हें छूट या डिस्काउंट पर स्पष्ट और पारदर्शी नीतियां लानी चाहिए।
नियामक ने ‘भारत में ई-कॉमर्स का बाजार अध्ययन’ विषय पर अध्ययन अप्रैल, 2019 में शुरू किया था। इसका मकसद भारत में ई-कॉमर्स कंपनियों के कामकाज तथा उसके बाजार और प्रतिस्पर्धा पर पड़ने वाले असर को बेहतर तरीके से समझना है।
अध्ययन में कहा गया है कि मंच निरपेक्षता की कमी, अनुचित प्लेटफार्म से कारोबार अनुबंध, आनलाइन मार्केटप्लेस और विक्रेताओं-सेवाप्रदाताओं के बीच विशिष्ट करार, मंच पर मूल्य समानता की कमी और भारी छूट की वजह से प्रतिस्पर्धा पर प्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष तरीके से असर पड़ रहा है।
प्रतिस्पर्धा के मुद्दों का उल्लेख करते हुए सीसीआई ने कहा कि कई ऐसे उदाहरण है कि मार्केटप्लेस मंचों पर कुछ उत्पादों का दाम खुदरा दुकानदारों के पास उस उत्पाद के लागत मूल्य से भी कम होता है। खुदरा दुकानदारों का कहना है कि उन्हें आनलाइन पर दी जाने वाली छूट के समान ही रियायत की पेशकश करनी पड़ती है।
अध्ययन में कहा गया है कि विशेषरूप से मोबाइल फोन के मामले में ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं। देश में मोबाइल फोन की कुल बिक्री में आनलाइन की हिस्सेदारी 40 प्रतिशत है।
(Edited by रविकांत पारीक )