विदेश मंत्री एस जयशंकर क्यों कृष्ण और हनुमान को मानते हैं सबसे महान कूटनीतिज्ञ?
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर बताते हैं कि कैसे रामायण और महाभारत कूटनीति के मूल्यवान सबक देती है.
हाइलाइट्स
- विदेश मंत्री एस जयशंकर का मानना है कि रामायण और महाभारत से बहुत कुछ सीखने को मिलता है.
- उनका मानना है कि शासन कला को इन महाकाव्यों से सीखा जा सकता है और निर्णय लेने में लागू किया जा सकता है.
- मंत्री की किताब ' Why Bharat Matters' रामायण में भगवान राम के परीक्षणों और कष्टों की कहानी से प्रेरणा लेती है.
- उनकी दूसरी किताब, ' The India Way', महाभारत और भगवान कृष्ण और अर्जुन के बीच विश्वास संकट के दौरान हुए संवाद से प्रेरित है.
निर्णय लेना कभी आसान काम नहीं होता. विचार करने के लिए कई कारक हैं, प्रत्येक निर्णय का प्रभाव, पक्ष और विपक्ष, और विशेष निर्णय के कारण.
भारत के विदेश मंत्री के तौर पर एस जयशंकर को अंतरराष्ट्रीय मामलों में रोजाना ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है. और जब संदेह होता है, तो मंत्री भारत के महानतम महाकाव्यों की ओर रुख करते हैं.
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने YourStory की फाउंडर और सीईओ श्रद्धा शर्मा के साथ एक साक्षात्कार में कहा, “रामायण और महाभारत जीवंत महाकाव्य हैं जहां निरंतर व्याख्याएं की जाती रहती हैं. मैंने हमेशा महसूस किया है कि इन महाकाव्यों में हर किसी के लिए कुछ न कुछ है. लोगों को उन्हें पढ़ने, समझने और उनसे जुड़ने का कुछ प्रयास करना चाहिए.”
अपनी किताब, Why Bharat Matters में, मंत्री ने रामायण से प्रेरणा ली है, यह महाकाव्य बुराई पर अच्छाई की जीत के बारे में मूल्यवान शिक्षा प्रदान करता है. कुछ उदाहरण जिनका उल्लेखनीय उल्लेख मिलता है उनमें बाली और सुग्रीव के बीच युद्ध में भगवान राम का हस्तक्षेप और लंका में भगवान राम के दूत के रूप में हनुमान की भूमिका शामिल है.
विदेश मंत्री कहते हैं, “दो सबसे महान कूटनीतिज्ञ श्री कृष्ण और हनुमान हैं. मैंने कई मौकों पर इसके बारे में बात की और मेरे विचार लोगों के बीच छा गए.”
मंत्री के विचार तब प्रासंगिक हो जाते हैं जब पश्चिम संस्कृति, पर्यटन, रक्षा, विनिर्माण और सेवाओं जैसे क्षेत्रों में रणनीतिक साझेदारी बनाने के लिए भारत की ओर तेजी से देख रहा है. दुनिया भारत की परंपराओं और इसकी ऐतिहासिक जड़ों में रुचि रखती है. मंत्री जयशंकर का मानना है कि यह भारतीयों के लिए महान महाकाव्यों को गहराई से जानने और उनके मूल संदेशों को फैलाने का उपयुक्त समय है.
बचपन में महाकाव्यों से मिली सीख
राजनीति और शासन कला पारंपरिक रूप से पश्चिमी दर्शन और साहित्य जैसे Homer की The Iliad या Niccolo Machiavelli की The Prince पर निर्भर रही है. मंत्री जयशंकर अपनी किताबें लिखते समय भारत से रणनीति और कूटनीति के उदाहरण खोजने के इच्छुक थे.
उनकी पहली किताब, The India Way, महाभारत से प्रेरित है और भगवान कृष्ण के विचारों से सीखी जाने वाली सीख है. दूसरी ओर, Why Bharat Matters, रामायण और भगवान राम की नैतिकता, न्याय और समानता के प्रति दृढ़ पालन से प्रेरणा लेती है.
मंत्री ने ये विचार अपने शुरुआती दिनों से लिए थे. एस जयशंकर का बचपन भारतीय महाकाव्यों की कहानियों को याद करते हुए बीता. उनके दादाजी रामायण की कहानियाँ सुनाते थे कि भगवान राम ने कठिन परिस्थितियों में क्या किया और कुछ निर्णय क्यों लिए गए.
उन्होंने आगे कहा, “मेरे पिता की भी भूमिका थी. उन्होंने हमसे सवाल करने और हमें यह सोचने पर मजबूर करने के लिए लगातार महाभारत की उपमाओं का इस्तेमाल किया कि इसमें कुछ निर्णय क्यों लिए गए.”
ये कहानियाँ मंत्री की पुस्तकों में निर्बाध रूप से अपना स्थान बनाती हैं. उदाहरण के लिए, महाभारत में, अर्जुन और उनके प्रतिद्वंद्वी चचेरे भाई दुर्योधन को कुरुक्षेत्र युद्ध से पहले भगवान कृष्ण की सेना या बिना हथियारों के उनकी भागीदारी के बीच चयन करने के लिए कहा गया था. अर्जुन ने विचार और दूरदर्शिता की स्पष्टता के मूल्य को पहचानते हुए, भगवान कृष्ण की भागीदारी को चुना. इस उदाहरण को राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर लागू किया जा सकता है ताकि लीक से हटकर सोच कर प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाई जा सके.
महाकाव्यों को वैश्विक स्तर पर ले जाना
मंत्री का मानना है कि जो बात भारतीय महाकाव्यों को अद्वितीय बनाती है, वह यह है कि आज भी उनके कई संस्करण प्रकाशित होते हैं.
उन्होंने हाल ही में एमटी वासुदेवन नायर के मलयालम उपन्यास रैंडमूज़म (Randamoozham) का अनुवाद पढ़ा, जिसमें भीम के नजरिए से महाभारत का वर्णन है. इसी तरह, उन्होंने चित्रा बनर्जी दिवाकरुनी के एक अंग्रेजी पौराणिक उपन्यास द पैलेस ऑफ इल्यूजन्स (The Palace of Illusions) का उल्लेख किया है, जो द्रौपदी की आंखों से देखे गए महाभारत का वर्णन करता है.
मंत्री कहते हैं, “आप एक राजनेता, व्यवसायी या पत्रकार हो सकते हैं. मैं चाहता हूं कि आप महाकाव्य पढ़ें और ऐसे अंश खोजें जो आपके लिए प्रासंगिक हों. इसे अपनी शब्दावली और अपनी सोच का हिस्सा बनाएं.”
लेकिन केवल इसके सिद्धांतों को पढ़ना और उनका पालन करना ही पर्याप्त नहीं है. एक कदम आगे बढ़ाते हुए, विदेश मंत्री चाहते हैं कि भारतीय इसका प्रचार करें और इस पर गर्व करें. वह चाहते हैं कि महाकाव्य वैश्विक हों.
(Translated by: रविकांत पारीक)