मिलिए महिला आंत्रप्रेन्योर दीपा कुमार से, जिनके पास है ‘पीरियड पैंटी’ का पेटेंट
शिक्षा और पेशे से इंजीनियर दीपा कुमार ने प्रेग्नेंसी और पीरियड से जुड़ी महिलाओं की खास जरूरतों को पूरा करने के लिए लाइफस्टाइल ब्रांड ‘यशराम’ की शुरुआत की.
आज से 14 साल पहले 2007 में जब बंगलुरू की 31 वर्षीय दीपा कुमार ने नौकरी छोड़कर अपना बिजनेस शुरू करने का फैसला किया तो उसके पीछे सिर्फ आंत्रप्रेन्योर बनने और पैसे कमाने का इरादा भर नहीं था. यशराम लाइफस्टाइल का पहला प्रोडक्ट था ब्रेस्टफीडिंग कुर्ता. बाहर से किसी दूसरे कुर्ते की तरह दिखने वाला सुंदर, फैशनेबल, स्टाइलिश कुर्ता, लेकिन ब्रेस्टफीडिंग की खास जरूरत को पूरा करने वाला.
तब से लेकर आज तक यशराम ऐसे 200 से ज्यादा प्रोडक्ट लांच कर चुका है, जो हर उम्र की लड़कियों और महिलाओं की खास जरूरतों को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया है.
कहानी पहले ब्रेस्टफीडिंग कुर्ते की
2006 में दीपा पहली बार मां बनीं. उनका शरीर बहुत सारे आंतरिक और बाहरी बदलावों से गुजर रहा था. उस समय भारतीय परिवारों में महिलाएं प्रेग्नेंसी के समय और डिलिवरी के बाद रोजमर्रा के कपड़े ही पहना करती थीं. फर्क सिर्फ इतना होता कि उसका साइज बड़ा हो जाता. दीपा वर्किंग प्रोफेशनल थीं. अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में घर और ऑफिस के जीवन को फास्ट, ईजी और फंक्शनल बनाए रखना उनकी प्रोफेशनल ट्रेनिंग का हिस्सा था. उन्हें यह कपड़े बेहद असुविधाजनक लगे. इन कपड़ों में बार-बार बच्चे को फीड करना आसान काम नहीं था.
प्रेग्नेंसी के अनुभव से गुजरते हुए दीपा को लगा कि भारत में महिलाओं की इस जरूरत के लिहाज से पोशाक हैं ही नहीं. ब्रेस्ट फीडिंग की जरूरत को पूरा करने के लिए कोई पोशाक नहीं थी. बस वो एक ढीली-ढाली बेढ़ब आकार की नाइटी होती थी, जिसमें सामने जिप लगी रहती थी. उसे पहनना और इस्तेमाल करना दोनों ही बेहद असुविधाजनक था.
दीपा कहती हैं, “मैंने टेलीकम्युनिकेशंस में इंजीनियरिंग की है. हमारा काम है प्रॉब्लम का सॉल्यूशन खोजना. प्रॉब्लम की शिकायत करना नहीं. मेरे सामने एक प्रॉब्लम थी. मुझे उसका हल खोजना था.”
और इस तरह महिलाओं की तमाम समस्याओं के हल के रूप में 2007 में शुरुआत हुई यशराम लाइफ स्टाइल की.
दसवीं पास मां की आंत्रप्रेन्योर बेटी
1976 में बंगलुरू के एक बेहद कंजरवेटिक दक्षिण भारतीय परिवार में दीपा का जन्म हुआ. पिता का ऑटोमोबाइल्स पार्ट बनाने का बिजनेस था, जो मेरे दादाजी ने शुरू किया था. मां हाउसवाइफ थीं, लेकिन उनका सारा जोर मुझे घर के काम सिखाने से ज्यादा पढ़ाई पर होता था. दो बड़े भाई थे और मैं सबसे छोटी.
पिता तो ज्यादातर घर से बाहर ही होते थे. मेरी मां दसवीं पास भी नहीं हैं, लेकिन उनके लिए दुनिया की सबसे कीमती चीज शिक्षा थी. पहली शिक्षा और दूसरा अनुशासन. मां की नजर इतनी पैनी थी कि मुमकिन ही नहीं कि उनसे छिपकर हम कुछ और कर लें. हमारा झूठ वो एक सेकेंड में पकड़ लेतीं. पढ़ाई में कोई छूट नहीं मिलती थी. हम तीनों भाई-बहन पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहे और हम तीनों ने इंजीनियरिंग की. सच कहूं तो इसका सारा श्रेय मेरी मां को ही जाता है. पिता तो हमेशा अनुपस्थित ही रहे.
पहली ट्रेनिंग, पहली नौकरी
1993 में बंगलुरू इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से टेलीकम्युनिकेशंस में इंजीनियरिंग करने के बाद पहले कुछ समय दीपा ने अपने पिता की कंपनी में काम किया. वो काम का थोड़ा अनुभव लेना चाहती थीं. करीब छह महीने वहां काम करने के बाद उन्होंने पिता की कंपनी छोड़ दी और दूसरी सॉफ्टवेअर और टेलीकम्युनिकेशंस कंपनियों में जॉब शुरू की. उन्होंने माइक्रोकॉन, ऑर्बिटई और आस्था जैसी सॉफ्टवेअर कंपनियों के साथ काम किया. 2005 में वह आस्था कंपनी में कैपेसिटर्स बनाने वाली यूनिट को हेड कर रही थीं. कैपेसिटर का इस्तेमाल एसी, टीवी, गाडि़यों आदि में होता है. कॅरियर एसी, एलजी और TVS जैसी कंपनियां आस्था की क्लाइंट थीं.
2005 में नौकरी छोड़कर वह वापस अपने पिता की कंपनी में काम करने लगीं. एक साल बाद उनके पहले बच्चे का जन्म हुआ, यशराम की शुरुआत हुई और उसके बाद तो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
महिलाओं की खास जरूरतों का ख्याल
दीपा कहती हैं कि प्यूबर्टी के बाद लड़कियों में एक बार जो बाहरी और आंतरिक शारीरिक बदलावों की शुरुआत होती है तो मीनोपॉज तक यह चलती ही रहती है. सिर्फ प्रेग्नेंसी और डिलिवरी ही नहीं, उसके अलावा पीरियड, इंफेक्शन और हाइजीन की कितनी समस्याएं होती हैं महिलाओं के साथ. महिलाओं की जरूरतें दूसरे जेंडर से अलग हैं. उन जरूरतों के लिहाज से हमें खास तरह के इनरविअर की भी जरूरत पड़ती है.
दीपा कहती हैं कि कंपनियां फैशन, स्टाइल और बाहरी अपीयरेंस से जुड़ी रिसर्च में जितना इंवेस्ट करती हैं, उतना इंवेस्टमेंट इस बात में नहीं होता कि महिलाओं के इनरविअर को ज्यादा हाइजीनिक और इंफेक्शन प्रूफ कैसे बनाया जाए.
पहली पीरियड पैंटी
2009 में यशराम ने पहला ‘सैनिटरी अंडरगारमेंट’ बनाया. इसके पहले और किसी कंपनी के पास ऐसा प्रोडक्ट नहीं था. दीपा कुमार ने इस प्रोडक्ट को पेटेंट करवाया. आज भारत और अमेरिका में इसका पेटेंट है. प्रोडक्ट का नाम है ‘पीरियड पैंटी’. तीन पैंटी सेट की कीमत 913 रुपए या इससे ज्यादा है.
दीपा अपनी प्यूबर्टी के दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि पीरियड के समय हमेशा मेरी फ्रॉक में दाग लग जाता था, चाहे मैं कितनी भी सावधानी क्यों न रखूं.
पीरियड में स्टेन लगने की यह समस्या सिर्फ किशारियों की नहीं है. बड़ी उम्र में भी तमाम कोशिशों के बावजूद कई बार कपड़ों में स्टेन लग ही जाता है. दीपा कहती हैं, “कम उम्र लड़कियों को इसकी वजह से कितना तनाव और शर्मिंदगी होती है. अगर कोई ऐसा प्रोडक्ट हो, जिससे परीक्षा के दौरान कोई लड़की तीन घंटे निश्चिंत होकर बैठ सके, बिना ये चिंता किए कि कहीं उसके कपड़े में दाग न लग जाए.”
सिर्फ प्रोडक्ट नहीं, टैबू को तोड़ने की कोशिश
दीपा के लिए ये सिर्फ प्रोडक्ट भर नहीं हैं. यह समाज में व्याप्त टैबू और पूर्वाग्रहों को तोड़ने की कोशिश भी है. दीपा कहती हैं, “पीरियड हमारे समाज में इतना बड़ा टैबू है. कोई इसके बारे में खुलकर बात नहीं करता. यह आज भी डर और शर्मिंदगी की वजह है. ऐसे में लड़कियां कभी खुलकर बता भी नहीं पातीं कि उनकी समस्या क्या है और जरूरतें क्या.”
पीरियड पैंटी को इस तरह डिजाइन किया गया है कि यह पूरी तरह लीक प्रूफ है. कई बार महिलाएं पूछती हैं कि तो क्या इस पैंटी के साथ पैड इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं. दीपा कहती हैं कि पैड इस्तेमाल करने की जरूरत है, लेकिन इसकी डिजाइन ऐसी है कि खेलने, कूदने, दौड़ने, सोने या किसी भी अवस्था में बैठने से यह लीक नहीं होगा.
यशराम ब्रांड के उत्पादों में मॉर्फ मैटरनिटी (मैटरनिटी विअर), आदिरा (पीरियड पैंटी, स्टार्टर ब्रा, कैमिसोल, शेपर्स, स्लीप विअर) आदि शामिल हैं.
दीपा के प्रोडक्ट्स में एक विशेष प्रोडक्ट हाइजीन और UTI प्रूफ पैंटी का भी है. दीपा कहती हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं को UTI (यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन) का खतरा बहुत बढ़ जाता है. यशराम के कुछ प्रोडक्ट खासतौर पर इन जरूरतों को ध्यान में रखकर डिजाइन किए गए हैं. उन्हें बनाने में एंटी फंगल, एंटी माइक्रोबायल कपड़े का इस्तेमाल हुआ है.
50 की उम्र के बाद कई बार महिलाएं Urinary incontinence की समस्या से भी गुजरती हैं. ब्लैडर पर से कंट्रोल कम होने लगता है और कई बार यूरिन निकल जाता है. ऐसे में फंगल और बैक्टीरियल इंफेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. यशराम की प्रोडक्ट सीरीज आदिरा में ऐसे हाइजीनिक पैंटी प्रोडक्ट हैं, जो उम्रदराज महिलाओं की इन जरूरतों को ध्यान में रखकर डिजाइन किए गए हैं.
यशराम की शुरुआत 2007 में हुई, जब ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया का कोई वजूद नहीं था. उनके प्रोडक्ट ज्यादातर रीटेल में ही बिकते थे. आज प्रतिस्पर्द्धा बढ़ गई है. बाजार में ढेरों ब्रांड और प्रोडक्ट आ गए हैं, लेकिन जिस चीज ने अब भी यशराम को बाजार में टिकाकर रखा है, वो है उनके इनोवेशन. इस ब्रांड के पास हर उम्र की लड़की और महिला की खास जरूरतों के लिए प्रोडक्ट्स हैं.
यशराम का सालाना टर्नओवर 10 करोड़ का है. कंपनी की दो मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट्स हैं. एक बंगलुरू में और दूसरी आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में. इन यूनिट्स में हर महीने 60,000 से ज्यादा यूनिट्स बनते हैं. 80 फीसदी सेल ऑनलाइन और बाकी B2B ऑर्डर के जरिए होती है.
दीपा कहती हैं, “मैंने जब अपना बिजनेस शुरू किया, तब स्टार्टअप्स और आंत्रप्रेन्योर्स को लेकर इतना सकारात्मक माहौल नहीं था. बिजनेस में महिलाएं बहुत कम थीं. आज तो इतने मौके हैं. मुझे लगता है कि यदि आप अपना कुछ करना चाहते हैं तो आज से बेहतर कोई और समय नहीं हो सकता.”