अब शायद कभी ‘बड़े शहर के स्कूल’ में नहीं पढ़ सकेंगे इन प्रवासी कामगारों के बच्चे
इस लॉकडाउन के दौरान ना सिर्फ श्याम बल्कि नीरज का भी सपना टूटा है, अब वह घर नहीं जाना चाहता है, उसका मन है कि यही रुकें और स्कूल खुलने पर वापस पढ़ाई करे।
गुड़गांव, 24 मई (भाषा) कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान दाने-दाने को मोहताज हो गए श्याम बाबू का अपने बेटे को बड़े शहर के स्कूल में अच्छी शिक्षा दिलाने का सपना अब शायद पूरा नहीं हो पाएगा, क्योंकि भुखमरी से बचने लिए वह अपने परिवार के साथ गृहस्थी समेट कर बिहार लौट रहे हैं।
बिहार के चेवड़ा गांव के रहने वाले श्याम का कहना है कि पिछले दो महीने से ठीक से भोजन भी नहीं मिल रहा है।
पिछले आठ साल की अच्छी स्मृतियों, जब वह गुड़गांव आए थे, को दोहराते हुए श्याम ने कहा कि अब जाकर उनके आठ साल के बेटे नीरज का यहां के स्कूल में दाखिला हुआ था। इस लॉकडाउन के दौरान ना सिर्फ श्याम बल्कि नीरज का भी सपना टूटा है, अब वह घर नहीं जाना चाहता है, उसका मन है कि यही रुकें और स्कूल खुलने पर वापस पढ़ाई करे।
उसे डर है कि अब वह कभी गुड़गांव नहीं लौट सकेगा और अब उसे गांव के स्कूल में ही पढ़ना पड़ेगा।
श्याम ने पीटीआई-भाषा को बताया,
‘‘मैं आठ साल से गुड़गांव में हूं। कई भवन निर्माण परिसरों में मजदूरी की है। मैं हमेशा से चाहता था कि मेरा बेटा बड़े शहर के स्कूल में पढ़े क्योंकि गांव के स्कूल अच्छे नहीं हैं।’’
उन्होंने बताया,
‘‘नीरज को यहां सरकारी स्कूल में दाखिला मिल गया था। उसकी फीस और खाने का इंतजाम हो गया था, हम खुश थे कि उसे अच्छी शिक्षा मिलेगी और बड़े होकर उसे मेरी तरह मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी।’’
माता-पिता के यूं अचानक पूरी गृहस्थी समेट कर गांव लौटने से दुखी नीरज का कहना है, ‘‘मुझे यहां का स्कूल अच्छा लगता है। काश सबकुछ सामान्य होने पर मैं वापस आ सकूं। अगर वे मेरे पिताजी को मकान बनाने देंगे तो मैं भी यहां आऊंगा।’’
बिहार के शेखपुरा निवासी रिक्शाचालक तीरथ कुमार के लिए भी बड़े शहर के स्कूल का सपना बड़ी बात है।
कुमार कहते हैं,
‘‘रिक्शा चलाने वाला, कहीं भी रिक्शा चला सकता है, लेकिन हम बड़े शहर में काम करते हैं ताकि हमारे बच्चे यहां पढ़ सकें। अगर आपका बच्चा बड़े शहर के स्कूल में पढ़ता है तो यह बहुत बड़ी बात है। हमारे यहां भी यही सरकारी स्कूल हैं लेकिन शहर के स्कूलों में पढ़ाई अच्छी होती है।’’
वह कहते हैं, ‘‘मुझे अच्छा लगता है जब मेरी बेटी अंग्रेजी बोलती है। वह गांव के अपने दोस्तों से गणित में भी अच्छी है।’’
कुमार, हालात सामान्य होने पर गुड़गांव लौटने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वह कहते हैं, ‘‘मैं वापस आऊंगा और देखूंगा कि क्या हम यहां रह सकते हैं। अगर हां, तो मैं अपने परिवार को साथ ले आऊंगा। वरना मेरी बेटी को भी गांव के स्कूल मे ही पढ़ना पड़ेगा। यहां उसकी पढ़ाई मुश्किल नहीं है क्योंकि आंगनवाड़ी केन्द्र से मदद मिल जाती है, लेकिन हम क्या खाएंगे? कहां रहेंगे?’’
श्याम बाबू और तीरथ कुमार दोनों ही अपने-अपने परिवार के साथ इसी सप्ताह श्रमिक स्पेशल ट्रेन से बिहार लौट गए हैं।