म्यूजिक इंडस्ट्री हो या मीडिया, कानून से बड़ा तो कोई नहीं
प्रसारण को लेकर लगभग तीन हजार करोड़ का उद्योग बन चुकी म्यूजिक इंडस्ट्री पर मुंबई हाईकोर्ट का फैसला और अरबों के कारोबार का परिक्षेत्र बन चुकी मीडिया इंडस्ट्री से जुड़े चैनल हेड, एडिटर की गिरफ्तारी एक बार फिर लाइसेंस के प्रश्न से रू-ब-रू है। पहले कानून ने, अब कोर्ट ने व्यवस्था दे दी है तो उसका पालन करना ही होगा।
यूपी के चीफ मिनिस्टर पर कथित अपमानजनक प्रसारण के बाद निजी टीवी न्यूज चैनल वॉयर की हेड इशिका सिंह, संपादक अनुज शुक्ला की गिरफ्तारी और मुंबई हाईकोर्ट के एक फैसले के परिप्रेक्ष्य में 'कंटेंट के लिए लाइसेंस' का प्रश्न नेशनल मीडिया और बौद्धिक मंचों की बहस के केंद्र में आ गया है। यद्यपि सीएम पर गलत टिप्पणी और कंटेंट के लिए लाइसेंस दो अलग-अलग विषय दिखते हैं लेकिन आलोचनात्मक और वैधानिक दृष्टि से दोनो का सिरा एक दिखता है। कंटेंट की सत्यता की अनदेखी अथवा उपेक्षा करते हुए टीवी चैनलों पर मनमाना प्रसारण अब आए दिन की बात हो चली है।
गौतम बुद्ध नगर (नोएडा) के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक वैभव कृष्ण कहते हैं- 'सीएम पर तथ्यहीन टिप्पणी से कानून व्यवस्था का सवाल जुड़ा हुआ है। जांच के दौरान खुलासा हुआ है कि चैनल के पास प्रसारण का लाइसेंस ही नहीं है।' इशिका-अनुज की गिरफ्तारी से ठीक एक दिन पहले सीएम पर फोकस एक अन्य आपत्तिजनक पोस्ट को लेकर स्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कनौजिया को मंडावली (दिल्ली) में यूपी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
दोनो-तीनो ताज़ा प्रकरण प्रकारांतर से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सवाल से भी जुड़े हुए हैं। गौरतलब है कि पिछले महीने मई में मुंबई हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति एस जे कथावाला ने रमेश तौरानी की टिप्स इंडस्ट्रीज द्वारा एयरटेल के म्यूजिक ऐप विंक के खिलाफ दायर मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि सहमति के बिना संगीत को स्टोर या उसका उपयोग नहीं किया जा सकता है। कॉपीराइट अधिनियम की धारा 31डी के तत उसे संबंधित पक्ष से स्वीकृति अथवा लाइसेंस लेना होगा। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012 में धारा 31डी इसलिए संस्थापित की गई ताकि म्यूजिक कंपनियों और संगीत के रेडियो/टीवी प्रसारकों के बीच वैधानिक लाइसेंस की व्यवस्था स्थापित हो सके। इसका मकसद उन कलाकारों का संरक्षण था, जो संदिग्ध समझौतों पर हस्ताक्षर कर अपने अधिकार बेच दे रहे थे। इसलिए वर्तमान नियमों के तहत विज्ञापन राजस्व का दो फीसदी हिस्सा रॉयल्टी के रूप में चुकाकर ही सम्बंधित पक्ष की सामग्री का इस्तेमाल कर सकता है।
आज, जबकि इंडियन म्यूजिक इंडस्ट्री लगभग तीन हजार करोड़ का उद्योग बन चुकी है, रॉयल्टी के रूप में मात्र कुल 60 करोड़ रुपए चुकाए जा रहे हैं। यह रॉयल्टी म्यूजिक कंपनी, लेखकों, कंपोजरों और प्रकाशकों के बीच वितरित होती है। टिप्स और विंक के बीच एक नियमित सौदेबाजी भले हाईकोर्ट तक पहुंच गई, अब नजीर दी जा रही है कि भारत से बाहर संगीत के लगभग हर बड़े बाजार में ऐसी सेवाओं के लिए लाइसेंस स्वैच्छिक है।
स्वैच्छिक यानी खरीदार और विक्रेता के बीच मात्र आपसी सहमति क्योंकि भारत की लगभग डेढ़ हजार करोड़ की म्यूजिक इंडस्ट्री एक प्रतिस्पर्धी बाजार है। ऐसे में पारदर्शिता के लिए या तो लाइसेंस स्वैच्छिक होना चाहिए या वैधानिक लाइसेंसिंग के तहत रॉयल्टी की दरें दो फीसदी से बढ़ाकर 10-15 प्रतिशत की जानी चाहिए। उधर, इंटरनेट से मीडिया में जो बदलाव आ रहे हैं, उनका सबसे पहले असर संगीत पर दिख रहा है। विश्व संगीत उद्योग का जो राजस्व 1999 में 225 अरब डॉलर था, वर्ष 2014 आते-आते वह घटकर 14.1 अरब डॉलर रह गया। ऐसे में कोर्ट का फैसला बहुत मायने रखता है।
गहराई से देखा जाए तो पत्रकारों की गिरफ्तारी के मामले में भी कुछ इसी तरह की असंगतियां नजर आती हैं। इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रश्न भले जुड़ा हो, पत्रकारिता की भी समाज के प्रति, प्रतिष्ठित व्यक्तियों अथवा चयनित जनप्रतिनिधियों के प्रति जिम्मेदारी बनती है। कोई किसी के बारे में कुछ भी लिख दे, कुछ भी छाप दे, कह दे, यह उस समाज के लिए कैसे स्वीकार्य हो सकता है, जिसने कानून व्यवस्था देखने के लिए ही ऊंचे पदों पर अपने जनप्रतिनिधियों को चुनकर भेज रखा है।
चुने हुए जनप्रतिनिधि पर आधारहीन टिप्पणियों का संज्ञान लिया जाना भी, संभव है, आगे अदालत का विषय बने क्योंकि मामला दर्ज कर गिरफ्तारियां हुई हैं। प्रकाशन और प्रसारण का लाइसेंस लिए बिना अगर फ्रीलांसर, संपादक, चैनल हेड ने जनप्रतिनिधि के विरुद्ध आधारहीन प्रसारण-प्रकाशन किया है तो इस पर अब कोर्ट का भी रुख जानने की लोगों में उत्सुकता रहेगी क्योंकि म्युजिक इंडस्ट्री से कई गुना बड़ी हो चुकी है मीडिया इंडस्ट्री।