National Aids Awareness Day: क्या एड्स दुनिया से खत्म हो गया है ?
आज 7 फरवरी को देश भर में नेशनल एड्स अवेयरनेस डे मनाया जाता है.
दिसंबर, 2018 में विश्व एड्स दिवस की 30वीं वर्षगांठ पर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस बीमारी पर एक लंबा रिसर्च आर्टिकल छापा. इस आर्टिकल में उन्होंने चिंता जाहिर की कि HIV वायरस को हराना आसान नहीं है. इस बीमारी का इलाज ढूंढ लेने और टीका खोज लिए जाने के बाद आज भी प्रतिवर्ष तकरीबन दस लाख लोग इस वायरस के कारण मृत्यु का शिकार होते हैं. उन्हें समय रहते पता ही नहीं चल पाता कि उनके शरीर में HIV वायरस है या फिर उनका इलाज जब तक शुरू होता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक एक ओर तो हमने वर्ष 2030 तक HIV वायरस को दुनिया से खत्म करने का लक्ष्य रखा है, वहीं वर्ष 2017 में पूरी दुनिया में 1.8 मिलियन लोग इस वायरस से संक्रमित हुए. अकेले भारत में वर्ष 2022 तक 24 लाख लोग HIV वायरस से संक्रमित थे.
हालांकि हाल ही में वैज्ञानिकों ने चूहों में इस वायरस को पूरी तरह समाप्त करने में सफलता प्राप्त की है, लेकिन मनुष्यों में इस वारयस का पूरी तरह खात्मा अभी दूर की कौड़ी है.
HIV वायरस की शुरुआत कब और कैसे हुई
ह्यूमन इम्यूनो डिफिशिएंसी वायरस (Human Immunodeficiency Viruses) या HIV वायरस तो प्रकृति में तकरीबन 200 सालों से मौजूद है. मुख्यत: बंदरों में पाए जाने वाले इस वारयस के इंसानों में मौजूदगी का पता वैज्ञानिकों ने 2014 में लगाया. इसके पहले वैज्ञानिकों में इस बात को लेकर संशय था कि HIV वायरस का पहला केस कब और कहां मिला होगा.
वैज्ञानिकों के मुताबिक मनुष्यों में HIV वायरस की शुरुआत डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कॉन्गो की राजधानी किन्शासा शहर से हुई. 1984 में इस शहर में एड्स के शुरुआती मामले सामने आए थे. वैज्ञानिक HIV वायरस के जेनेटिक कोड का विश्लेषण करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचे.
मुख्य रूप से बंदर, गुरिल्ला आदि के जरिए यह वायरस मनुष्य के शरीर में आया कि क्योंकि उन इलाकों में इन जानवरों का मीट खाए जाने की परंपरा थी. इसके अलावा संक्रमित सूइयों का इस्तेमाल, वेश्यावृत्ति आदि ने इस वायरस को तेजी से पूरी दुनिया में फैलाने का काम किया.
80 के दशक की शुरुआत में पहली बार अमेरिका में मनुष्य के शरीर में इस वायरस की मौजूदगी का पता चला. इसे लेकर तमाम तरह के भ्रम, शंकाएं और गलत अवधारणाएं लंबे समय तक लोगों में फैली रहीं. जैसेकि अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की रिपोर्ट यह कहती थी कि यह वायरस समलैंगिक संबंधों के कारण फैलता है. ऐसा मानने की वजह यह थी कि अमेरिका में मिले HIV वायरस के शुरुआती दो मामले समलैंगिकों में पाए गए थे.
![national aids awareness day history of aids in india and the world](https://images.yourstory.com/cs/12/f6e35340d1bd11ec993bb701a097a52d/INSIDEAids-1675681323651.jpg?fm=png&auto=format&w=800)
कहानी भारत में मिले पहले HIV वायरस केस की
अमेरिका में तेजी ये मिल रहे HIV वायरस केसेज के बाद वहां इसे लेकर गंभीरता और जागरूकता दोनों ही फैल रही थी. हालांकि दुनिया के बाकी देशों में और खासतौर पर दक्षिण एशिया के देशों में अभी भी कोई ऐसा तरीका नहीं था, जिससे किसी संभावित मरीज में इस वायरस का शिनाख्त की जा सके.
लेकिन अमेरिका से लेकर अफ्रीका के देशों तक के साथ भारत के आवाजाही के संबंध थे, जिन देशों में यह वायरस तेजी के साथ फैल रहा था. ऐसे में भारत के तमिलनाडु राज्य की दो महिला डॉक्टरों में इस वायरस को लेकर जिज्ञासा पैदा हुई. वह जानना चाहती थीं कि क्या इस वायरस का प्रकोप भारत तक भी फैल चुका है.
चूंकि बाकी वारयस की तरह यह वायरस हवा के जरिए नहीं फैलता था और इससे संक्रमित होने के लिए असुरक्षित यौन संबंध बनाना, संक्रमित इंजेक्शन का इस्तेमाल आदि जरूरी था तो यह पता लगाना मुश्किल था कि कौन, कहां और कैसे इस बीमारी की चपेट में आ रहा है. यौन संबंधों को लेकर खुलकर बात करना तब हमारे देश में भी एक बड़ा टैबू था.
भारत में HIV वायरस की पड़ताल में जुटीं उन दो महिला डॉक्टरों के नाम थे डॉ. सुनीति सोलोमन और डॉ. सेल्लप्पन निर्मला. डॉ. सुनीति सोलोमन माइक्रोबॉयोलॉजिस्ट थीं और लंबे समय तक विदेश में रहकर भारत लौटी थीं. डॉ. निर्मला डॉ. सुनीति की स्टूडेंट रह चुकी थीं.
भारत आने के बाद डॉ. सुनीति सोलोमन मद्रास मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर हो गईं. 1981 में जब पहली बार HIV वायरस का पता चला, तभी से वह इस वायरस की रिसर्च में जुट गईं.
1986 में डॉ. सुनीति सोलोमन और डॉ. सेल्लप्पन निर्मला ने चेन्नई की सेक्स वर्कर महिलाओं के बीच जाकर HIV वायरस के बारे में उन्हें जागरूक बनाना शुरू किया. उन्होंने उन महिलाओं के बीच 200 से ज्यादा ब्लड सैंपल एकत्रित किए. चेन्नई में उस वक्त HIV वायरस के जांच की सुविधा नहीं थी तो उन्होंने इन ब्लड सैंपल्स को वेल्लूर भेजा.
वेल्लूर की प्रयोगशाला में जांच के बाद पता चला कि 200 में से 6 ब्लड सैंपल में HIV वायरस पाए जाने की पुष्टि हुई है. यह चौंकाने वाली खबर थी. इसका अर्थ था कि भारत तक भी यह वायरस पहुंच चुका था. लेकिन इस मामले में पूरी तरह सुनिश्चित होने के लिए उन्होंने यह ब्लड सैंपल दोबारा अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी की एक प्रयोगशाला को भेजे.
जॉन हॉपकिन्स से आई रिपोर्ट ने एक बार फिर उन ब्लड सैंपल में HIV वायरस होने की पुष्टि कर दी.
यह एक बड़ा ब्रेकथ्रू था. यह जानलेवा वायरस अब भारत तक भी पहुंच चुका था. पूरे देश में मेडिकल एलर्ट जारी हो गया. राजीव गांधी उस वक्त देश के प्रधानमंत्री थे. HIV वायरस और एड्स की बीमारी को लेकर देश भर में जागरूकता अभियान शुरू हुआ. बड़े पैमाने पर जांच की गई और 90 का दशक आते-आते पता चला कि एड्स भारत में बहुत बड़े पैमाने पर फैल चुकी बीमारी थी.
आज की तारीख में देश में 24 लाख लोग HIV वायरस से संक्रमित हैं. हालांकि समय रहते इस वायरस का पता चल जाए और इलाज शुरू हो जाए तो यह बीमारी अब जानलेवा नहीं रह गई है. एड्स को लेकर चलाए गए जागरूकता अभियान का यह नतीजा है कि आज हरेक वयस्क इस बीमारी के कारण और इसके खतरों से वाकिफ है.
लेकिन फिर भी अभी इस बीमारी को पूरी तरह जड़ से खत्म कर पाना दूर का सपना ही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2030 तक का लक्ष्य तय किया है, लेकिन यह तो वक्त ही बताएगा कि इस मंजिल को पाने में हम कितने कामयाब होंगे.
Edited by Manisha Pandey