13 कीमो और 31 रेडिएशन के बाद बदल जाती है शरीर और मन की दुनिया
विभा रानी हिंदी की लेखिका, स्टेज आर्टिस्ट होने के साथ-साथ ब्रेस्ट कैंसर सरवाइवर भी हैं.
2013 में पहली बार पता चला कि मुझे ब्रेस्ट कैंसर है. मेरे बाएं स्तन में कैंसर की एक छोटी सी गांठ पिछले दो-तीन सालों से थी. जब पता चला तो वह सेकेंड स्टेज में थर्ड डिग्री का कैंसर बन चुका था.
ऐसा नहीं कि उस जगह गांठ होने का आभास मुझे पहले नहीं हुआ था. मैंने चेन्नई और मुंबई में कई डॉक्टरों को दिखाया. चेन्नई में अपोलो हॉस्पिटल ने तो मुझे टेस्ट का पूरा पैकेज ही थमा दिया, लेकिन मेमोग्राफी की सलाह नहीं दी. डॉक्टरों ने कहा कि अरे, 40 के बाद इस तरह की गांठ होना सामान्य बात है. यह कुछ खास नहीं, निश्चिंत रहो. डॉक्टरों की बात सुनकर मैं भी शांत हो गई. आखिरकार वो गांठ चुपचाप ही तो बैठी थी एक कोने में. न दुखती थी, न परेशान करती थी. मुझे उसके होने से कोई परेशानी नहीं थी.
आज मैं जानती हूं कि सही समय पर सही डॉक्टर के पास न जाकर मैंने कितनी बड़ी गलती की. आज मैं अपने आसपास की सारी महिलाओं और लड़कियों को ये सलाह देती हूं कि कोई मामूली सा भी लक्षण दिखे तो उसे नजरंदाज न कहें.
उन दिनों मैं मुंबई आई हुई थी. थोड़ी तबीयत नासाज हुई तो किसी ईएनटी को दिखाने के लिए मैं कोकिलाबेन हॉस्पिटल गई. वहां जाकर सोचा कि क्यों न इस गांठ के बारे में भी एक बार और राय ले ली जाए. जब वहां मौजूद डॉक्टर से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि आप ऑन्कोलॉजिस्ट (कैंसर स्पेशलिस्ट) को दिखाइए. वही आपको सही सलाह दे पाएंगे.
पहली मैमोग्राफी और बायोप्सी
तब पहली बार ऐसा हुआ कि मैं किसी ऑन्कोलॉजिस्ट के पास गई. पहली बार मैमोग्राफी और बायोप्सी हुई. टेस्ट करवाकर मैं घर लौट आई और भूल भी गई. दो दिन बाद ऑफिस के काम से मुझे भोपाल जाना था. भोपाल में ही थी, जब पता चला कि सारी रिपोर्ट पॉजिटिव आई हैं. मुझे ब्रेस्ट कैंसर था. सच पूछो तो मुझे कोई बहुत सदमा या झटका सा नहीं लगा. पहले कभी बीमार नहीं पड़ी थी, जबकि हमेशा बीमार-बीमार सी दिखती थी. लगा, चलो कुछ तो हुआ. मजाक को जाने दें, तो भी किसी अनिश्चिंतता या दुविधा की स्थिति में रहने से बेहतर था सच का पता चल जाना. अब चूंकि पता था कि कैंसर है तो ये भी पता था कि आगे करना क्या है.
मुंबई लौटते ही अगले दिन से इलाज की प्रक्रिया शुरू हो गई. 10-11 महीने ट्रीटमेंट चला. डॉक्टर ने तीन चीजें बताईं. सर्जरी, कीमोथैरेपी और रेडिएशन. लंप चूंकि आकार में छोटा था तो डॉक्टर ने पहले सर्जरी की सलाह दी. उसके बाद यह तय किया जाता है कि मुझे कीमोथैरेपी और रेडिएशन की जरूरत है या नहीं.
कैंसर लिंफनोड तक फैल चुका था
सर्जरी होने के बाद जब डॉक्टरों ने सैंपल टेस्ट के लिए भेजा तो पता चला कि कैंसर लिंफनोड तक फैल चुका था. अब कीमोथैरेपी होनी थी. मेरे कीमो के 16 सेशन हुए. डॉक्टरों ने गर्दन में दाहिनी ओर एक जगह कीमोपोर्ट बना दिया था. वहीं पूरे दिन कीमो की दवाई शरीर में इंजेक्ट की जाती.
कीमोथैरेपी से पहले मरीज की काउंसिलिंग की जाती है. दो-तीन हफ्ते गुजरते-गुजरते कीमो अपना असर दिखाना शुरू कर देता है. सबसे पहले बाल गिरते हैं. सिर्फ सिर के बाल नहीं, बल्कि पल्कों के बाल, हाथ-पैरों के रोएं. शरीर एकदम सफेद पड़ने लगता है और बहुत कमजोर हो जाता है. कीमो की दवाई इतनी स्ट्रांग होती है कि खतरनाक कोशिकाओं के साथ-साथ हेल्दी कोशिकाओं को भी मारना शुरू कर देती है.
कांटो भरी है कैंसर की राह
शरीर और मन की दुनिया अचानक बदल जाती है. रातोंरात आप वो नहीं रहते, जो थे. मनोवैज्ञानिक रूप से यह यात्रा किसी भी मरीज के लिए आसान नहीं होती. मेरे लिए भी नहीं थी, लेकिन फिर भी मैं भीतर से बहुत मजबूत हूं और तार्किक भी. मुझे पता था कि मुझे कैंसर है और कैंसर के इलाज का ये रास्ता जो मैंने चुना है, वो कांटों भरा है. अगर इस बीमारी से मुक्ति पानी है तो इस मुश्किल भरी राह से तो गुजरना ही पड़ेगा.
भीतर-बाहर बदलाव होते गए और मैं उन बदलावों को स्वीकार करके उनके साथ-साथ ढलती गई. डॉक्टर ने जितनी सलाहें दी, मैंने आंख मूंदकर उनकी सारी बात मानी. डॉक्टर ने कहा था कि घर से बाहर मत निकलना, ज्यादा लोगों से मिलना-जुलना मत और डायरेक्ट हीट या आग के संपर्क में मत जाना. मैं 10 महीने न घर से बाहर निकली, न रसोई में गई.
इलाज के साथ प्यार और सहयोग भी
मैं खुशकिस्मत हूं कि मेरे आसपास ऐसा सपोर्ट सिस्टम है. ज्यादातर महिलाओं को यह सपोर्ट भी हासिल नहीं होता. औरत 10 महीने तक खाना ही नहीं बनाएगी, ऐसा कैसे हो सकता है. मैं कितने ऐसे केसेज जानती हूं, जिसमें कीमो और रेडिएशन के दौरान भी महिलाएं रोज रसोई में जाकर खाना बनाती रही हैं.
कैंसर के इलाज में एक भूमिका डॉक्टर की होती है और दूसरे परिवार की. एक औरत के लिए जितना जरूरी है इलाज, उतना ही जरूरी है प्यार और सपोर्ट, लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि हमारे आसपास महिलाओं को आमतौर पर यह सपोर्ट नहीं मिलता.
कीमोथैरेपी खत्म होने के बाद रेडिएशन की प्रक्रिया शुरू हुई. रेडिएशन के कुल 31 सेशन हुए. डॉक्टर इस बात का ख्याल रखते कि बाएं ब्रेस्ट के अलावा शरीर का और कोई हिस्सा रेडिएशन के संपर्क में न आए. रेडिएशन की किरणें काफी खतरनाक होती है और शरीर को डैमेज भी कर सकती हैं.
रेडिएशन के साइड इफेक्ट
कीमो और रेडिएशन के बहुत सारे साइड इफेक्ट भी होते हैं, जैसेकि उल्टी, बुखार वगैरह. रेडिएशन से स्किन जल जाती है. गर्दन में घाव और छाले हो जाते हैं. गर्दन और छाती के पास का हिस्सा लाल पड़ जाता है.
कैंसर का इलाज कांटों भरी राह है, लेकिन इस राह पर चलना ही होता है. 8 साल हो चुके हैं. अब मैं बिलकुल ठीक हूं. हालांकि दवा अब भी खानी होती है. डॉक्टर ने कहा है कि 10 साल तक दवाई खानी होगी. पहले हर छह महीने में एक बार फॉलोअप के लिए बुलाते थे, अब साल में एक बार आने को कहा है. इसका अर्थ है कि अब सब ठीक है.
मैं अपने अनुभव से ये कह सकती हूं कि सिर्फ ब्रेस्ट कैंसर ही नहीं, शरीर में किसी भी तरह के बदलाव और असामान्य लक्षण को कभी नजरंदाज नहीं करना चाहिए. महिलाओं को प्रजजन अंगों से जुड़ी बीमारियों और कैंसर को लेकर भी सजग और सावधान रहने की जरूरत है. यदि पीरियड्स में किसी भी तरह का असामान्य बदलाव हो, ब्लीडिंग कम या ज्यादा हो या पेट में ज्यादा दर्द हो तो इग्नोर न करें. तुरंत किसी गाइनी से संपर्क करें.
और हां, कैंसर का इलाज बहुत खर्चीला है. कोई नहीं जानता कि अच्छी-खासी हंसती-खेलती जिंदगी में कब बीमारी का हमला हो जाए. इसलिए हेल्थ इंश्योरेंस जरूर लें.
(जैसा विभा रानी ने मनीषा पांडेय को बताया.)
Edited by Manisha Pandey