अब पेट्रोल-डीजल के निर्यात पर देना होगा टैक्स, घरेलू कच्चे तेल पर भी अतिरिक्त कर
एक अलग सरकारी अधिसूचना में कहा गया कि सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की ऊंची कीमतों से उत्पादकों को होने वाले अप्रत्याशित लाभ के एवज में घरेलू रूप से उत्पादित कच्चे तेल पर 23,230 रुपये प्रति टन का अतिरिक्त कर लगाया है.
यूक्रेन संकट के कारण देश में पेट्रोलियम ईंधन की कमी के बावजूद भारी मात्रा में निर्यात को देखते हुए सरकार ने पेट्रोल और एटीएफ के निर्यात पर 6 रुपये प्रति लीटर की दर से कर लगाया है और डीजल के निर्यात पर 13 रुपये प्रति लीटर का कर लगाया गया है.
एक अलग सरकारी अधिसूचना में कहा गया कि सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की ऊंची कीमतों से उत्पादकों को होने वाले अप्रत्याशित लाभ के एवज में घरेलू रूप से उत्पादित कच्चे तेल पर 23,230 रुपये प्रति टन का अतिरिक्त कर लगाया है.
निर्यात पर कर तेल रिफायनरी विशेषकर निजी क्षेत्र के लिए है जिन्हें यूरोप और अमेरिका जैसे बाजारों में ईंधन का निर्यात करने पर खासा लाभ मिलता है.
वहीं, घरेलू स्तर पर कच्चे तेल का उत्पादन करने पर लगाया गया कर स्थानीय उत्पादकों के लिए है जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से अप्रत्याशित लाभ मिल रहा है.
अकेले कच्चे तेल पर कर से सरकार को घरेलू स्तर पर उत्पादित 29 मिलियन टन कच्चे तेल पर सालाना 67,425 करोड़ रुपये मिलेंगे. राज्य के स्वामित्व वाली ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) और ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) और निजी क्षेत्र के वेदांत लिमिटेड एवं केयर्न ऑयल एंड गैस द्वारा होने वाली रिकॉर्ड कमाई के बाद सरकार को कच्चे तेल पर कर से ही सबसे अधिक कमाई होती है.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद यूरोप और अमेरिका जैसे तेल की कमी से जूझने वाले क्षेत्रों में भारी मात्रा में तेल रिफाइनर विशेष रूप से रिलायंस इंडस्ट्रीज और रोसनेफ्ट-समर्थित नायरा एनर्जी द्वारा भारी मात्रा में की जा रही निर्यात को देखते हुए ये कर लगाए गए हैं.
निर्यात पर प्रतिबंध का उद्देश्य पेट्रोल पंपों पर घरेलू आपूर्ति को बढ़ाना भी है क्योंकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे कुछ राज्यों में पेट्रोल-डीजल की कमी हो गई है क्योंकि निजी रिफाइनर स्थानीय स्तर पर बेचने की तुलना में ईंधन का निर्यात करना पसंद कर रहे हैं.
निजी रिफाइनरों ने निर्यात को इसलिए भी प्राथमिकता दी है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र के प्रमुख खुदरा विक्रेताओं द्वारा खुदरा पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लागत से कम दरों पर सीमित कर दिया गया है.
इसका मतलब यह हुआ कि बाजार हिस्सेदारी के 10 प्रतिशत से कम को नियंत्रित करने वाले निजी खुदरा विक्रेता या तो नुकसान पर ईंधन बेचते हैं या यदि वे उच्च लागत पर बेचते हैं तो बाजार में हिस्सेदारी खो देंगे.