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हर साल बिजली बचाने को क्यों कहती है सरकार?

घरेलू स्तर पर 70 फीसदी एनर्जी फॉसिल फ्यूल से बनाई जाती है, जो सीमित मात्रा में ही मौजूद हैं. इसके अलावा यूक्रेन युद्ध के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजारों में एनर्जी की कीमतें बढ़ी हैं. उससे एनर्जी का आयात करना सरकार के लिए इकॉनमी के मोर्चे पर और भारी साबित हो रहा है. इसलिए ऊर्जा संरक्षण बेहद जरूरी है.

हर साल बिजली बचाने को क्यों कहती है सरकार?

Wednesday December 14, 2022 , 3 min Read

पूरी दुनिया में एनर्जी की खपत रेकॉर्ड स्तर पर हो रही है और भारत इससे अछूता नहीं है. इंडिया की जीडीपी पढ़ने के साथ इसकी आबादी भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है लिहाजा यहां एनर्जी की डिमांड भी कई गुना रफ्तार से बढ़ रही है.

इतने बड़े पैमाने पर एनर्जी की डिमांड पूरा करने के लिए सरकार इंपोर्ट का सहारा लेती है. लेकिन यूक्रेन युद्ध की वजह से जिस तरह अंतरराष्ट्रीय बाजारों में एनर्जी की कीमतें बढ़ी हैं उसमें एनर्जी का आयात करना भारत सरकार के लिए इकॉनमी के मोर्चे पर और भारी साबित हो रहा है.

सरकार घरेलू स्तर पर एनर्जी उत्पादन बढ़ाने की हर संभव कोशिश कर रही है देने पर है, लेकिन एनर्जी के मामले में इतनी जल्दी आत्मनिर्भर बनना आसान नहीं नजर आता. ऐसे में ये जरूरी हो जाता है कि उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ मौजूदा एनर्जी के कनजर्वेशन पर भी उतनी ही तत्परता के साथ काम किया जाए.

इसी मकसद के साथ पूरा देश हर साल 14 दिसंबर को नैशनल एनर्जी कनजर्वेश डे के तौर पर मनाता है. इसे 31 साल पहले ऊर्जा संरक्षण के प्रति लोगों को जागरुक बनाने के मकसद से शुरू किया गया था.

इधर सरकार ने भी एनर्जी कनजर्वेशन को बढ़ावा देने के लिए सोमवार को राज्य सभा में एनर्जी कनजर्वेशन (संशोधन) बिल, 2022 को मंजूरी दी है.

यह कानून सरकार को एक डोमेस्टिक कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग स्कीम लाने की और बड़ी पावर कंज्यूमर कंपनियों के लिए एनर्जी जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा रिन्यूएबल सोर्सेज से पूरा करने की अनिवार्यता पेश करने की इजाजत देगा.

गौतम सोलर प्राइवेट लिमिटेड के एमडी गौतम मोहनका का कहना है कि 100Kw या उससे ज्यादा की एनर्जी खपत करने वाले ऑफिस और रेजिडेंशियल बिल्डिंग्स इस कानून के दायरे में आएंगी. इससे देश में ग्रीन एनर्जी की खपत को बढ़ावा मिलेगा.

आपको बता दें कि इंडिया दुनिया में तीसरे नंबर पर एनर्जी का सबसे बड़ा कंज्यूमर है. भारत अपनी एनर्जी जरूरतों का 70 फीसदी फॉसिल फ्यूल से पूरा करता है, जो बेहद सीमित हैं. जिस हिसाब से हमारी डिमांड बढ़ रही है जल्द ही ये सीमित भंडार भी खत्म हो जाएंगे.

WAE लिमिटेड के फाउंडर और डायरेक्टर अनुपम वी जोशी बताते हैं कि ग्रामीण इलाकों में लगभग 50 फीसदी और शहरी इलाकों में 23 फीसदी घरों में नियमित रूप से बिजली जाती है. ये बताता है कि देश में इलेक्ट्रिसिटी डिमांड के मुकाबले कितनी कम है.  


जोशी के अनुसार, '2022 में इंडिया में 623 मिलियन यूनिट पावर की कमी दर्ज की गई थी, जो अविश्वनीय है. फॉसिल फ्यूल के संसाधन हमारे पास सीमित हैं. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एनर्जी की कीमतें वैसे ही आसमान छू रही हैं. ऐसे हालात में और जरूरी हो जाता है कि एनर्जी का बेहद विवेकपूर्ण तरीके से इस्तेमाल हो. ताकि प्राकृतिक संसाधनों को बचाया जा सके.'


हालांकि भारत के लिए अच्छी बात ये है कि यहां रिन्यूएबल एनर्जी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में नॉन-फॉसिल फ्यूल से एनर्जी की हिस्सेदारी बीते 7 सालों में 25 फीसदी बढ़ी है. इसमें सबसे ज्यादा योगदान सोलर पावर एनर्जी का है. जिसमें सालाना आधार पर 34 फीसदी का इजाफा हुआ है.

ये सभी उपाय तो औद्योगिक स्तर पर एनर्जी के कनजर्वेशन के लिए हो रहे हैं. लेकिन बतौर नागरिक आप भी एनर्जी के कनजर्वेशन में अपना योगदान दे सकते हैं, जो आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुखद भविष्य बनाने में मददगार साबित हो सकता है.

एनर्जी एफिशिएंट डिवाइसेज, इक्विपमेंट्स का इस्तेमाल करके आप एनर्जी बचा सकते हैं. ट्यूबलाइट्स की जगह सीएफएल या LED लाइट्स का इस्तेमाल करें. जब जरूरत न हो तब इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को बंद कर दें.