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World Soil Day के मौके पर जानिए मिट्टी को उपजाऊ बनाने के कारगर तरीके

हर साल पूरी दुनिया 5 दिसंबर को वर्ल्ड सॉइल डे मनाती है. इसे मिट्टी की अहमियत और इसके फायदे लोगों के बीच बताने के इरादे से शुरू किया गया था. इसे सबसे पहले 2002 में शुरू किया गया था.

World Soil Day के मौके पर जानिए मिट्टी को उपजाऊ बनाने के कारगर तरीके

Monday December 05, 2022 , 5 min Read

हर साल पूरी दुनिया 5 दिसंबर को वर्ल्ड सॉइल डे मनाती है. इसे मिट्टी की अहमियत और इसके फायदे लोगों के बीच बताने के इरादे से शुरू किया गया था. इसे सबसे पहले 2002 में शुरू किया गया था.

इस बार सॉइल डे की थीम, 'Soil: Where Food Begins' रखी गई है. आइए जानते हैं भारत में कितने तरह की मिट्टियां पाई जाती हैं और मिट्टी को उपजाऊ बनाने के कुछ कारगर तरीकों के बारे में.......

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार भारत में 8 प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैंः

  1. पर्वतीय मृदा
  2. जलोढ़ मृदा
  3. काली मृदा
  4. लाल मृदा
  5. लैटेराइट मृदा
  6. पीट और दलदली मृदा
  7. लवणीय और क्षारीय मृदा

1. जलोढ़ मृदा

  • इसे कॉप मिट्टी या कछारी मिट्टी भी कहा जाता है. यह उत्तर भारत के मैदान में सतलज के मैदान से ब्रह्मपुर के मैदान तक पाई जाती है. तटीय क्षेत्र में यह पूर्वी तट पर महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी के डेल्टा क्षेत्र में. केरला और गुजरात में कुछ क्षेत्रों में भी पाई जाती है.
  • जलोढ़ मृदा 2 प्रकार की होती है.
  • खादर- नदी के पास में बाढ़ क्षेत्र में पाई जाती है. इसे नदी द्वारा प्रतिवर्ष इसका नवीकरण कर दिया जाता है अतः इसे नई जलोढ़ भी कहा जाता है. ये अधिक उपजाऊ मृदा है.
  • बांगर- नदी से दूर वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं. ये हर वर्ष नदी द्वारा नवीकृत नहीं हो पाती अतः इसे पुराना जलोढ़ कहा जाता है. अपेक्षाकृत कम उपजाऊ है.
  • जलोढ़ मृदा भारत में पाR जाने वाली सभी मृदा से सबसे उपजाऊ मिट्टी है.

2. लाल मृदा

  • भारत में दूसरे नंबर पर सबसे अधिक पाई जाने वाली मिट्टी है लाल मृदा. कुल 18% क्षेत्र में पाई जाती है. आयरन ऑक्साइड के कारण इसका रंग लाल होता है.
  • यह मिट्टी दक्षिण भारत में पठारी भाग में पूर्वी तरफ पाई जाती है. इसका विस्तार तमिलनाडु, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, पूर्वी मध्य प्रदेश, झारखण्ड में है. पूर्वोत्तर भारत में भी पाई जाती है. सर्वाधिक क्षेत्रफल तमिलनाडु में.

3. काली मृदा

  • इसे कपासी मृदा या रेगुर मृदा या लावा मृदा के नाम से भी जाना जाता है. यह लावा चट्टानों के टूटने से बनी मृदा है. यह उत्तरी कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात के अलावा उत्तर प्रदेश में पाई जाती है. झांसी और ललितपुर में भी पाई जाती है और वहां इसे करेल मृदा कहा जाता है.
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे चेरनोजेम भी कहा जाता है. बाहरी देशों में यूक्रेन और USA में ग्रेटलेक्स के पश्चिम में पाई जाती है. भारत में यह सबसे अधिक महाराष्ट्र में पाई जाती है. इस मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता अधिक होती है.

4. लैटेराइट मृदा

  • इस मृदा के निर्माण हेतु 2 प्रमुख परिस्थितियों की जरूरत होती है. 200सेमी. से अधिक वार्षिक वर्षा और अधिक गर्मी  की आवश्यकता होती है. ये परिस्थितियां भारत में 3 जगह पाई जाती हैं- पश्चिमी तट पर, ओड़िशा तट पर, शिलांग पठार पर. सर्वाधिक क्षेत्रफल केरल में पाया जाता है उसके बाद महाराष्ट्र में.
  • ईंट बनाने के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी है. हालांकि इसमें ह्यूमस, नाइट्रोजन, फॉसफोरस और पोटास की कमी पाई जाती है. खाद्यान के लिए अनउपयुक्त मृदा है. चाय कॉफी, मसाले, काजु, सिनकोना आदि उगाए जाते हैं.

5. मरुस्थलीय मृदा

  • इसका विस्तार भारत के पश्चिमी भाग वाले शुष्क क्षेत्र में देखा जाता है. दक्षिणी पंजाब, दक्षिणी हरियाणा, राजस्थान, गुजरात का कच्छ क्षेत्र में यह पाई जाती है. इनमें खाद्यान उगाना संभव नहीं इसलिए ज्वार, बाजरा, मोटे अनाज और सरसों की खेती की जाती है.

6. पर्वतीय मृदा

  • हिमालय के साथ-साथ पाई जाती है. जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती है. ह्यूमस की अधिकता होने के कारण इसके अंदर अम्लीय गुण आ गए हैं. इसलिए पर्वतीय ढालों पर सेब, नाशपाती और चाय की खेती की जाती है.

7. पीट और दलदली मृदा

  • पीट मृदा केरल और तमिलनाडु के तटों पर जल जमाव के कारण पाई जाती है. पीट मृदा का विकास गिली भूमि पर वनस्पतियों के सड़ने से हुआ है. इसलिए इसमें ह्यूमस की मात्रा अधिक पाई जाती है. दलदली मिट्टी सुंदर वन वाले क्षेत्र में पाई जाती है. दलदली मिट्टी ज्वार वाले क्षेत्र में पाई जाई है.

8. लवणीय और क्षारीय मृदा

  • अधिक सिंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है. अधिकांश हरित क्रांति वाला क्षेत्र, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी राजस्थान. इसे रे और कल्लर नाम से भी जाना जाता है.

क्षेत्रफल के हिसाब से भारत में मुख्यतः चार मिट्टियां पाई जाती हैं- जलोढ़ मृदा(43%), लाल मृदा(18%), काली मृदा(15%), लैटेराइन मृदा(3.7%).

अगर आप भी खेती करते हैं और मिट्टी में खराब उपजाऊपन की समस्या का सामना कर रहे हैं तो नीचे दिए कुछ तरीके आपके काम आ सकते हैं.......

1. अपनी मिट्टी में खाद मिलाएं- खाद में नाइट्रोजन की ज्यादा मात्र होती है और आपकी मिट्टी के लिए एक आवश्यक पोषक तत्व है. खाद को मिट्टी में मिलाना ही काफी नहीं है उसे फावड़ा और टिलर के साथ मिट्टी में मिलाना ज्यादा जरूरी है. आप अपने घर में तैयार खाद का इस्तेमाल कर सकते हैं या बाजार से भी खरीद सकते हैं.

2. गाय या घोड़े की खाद अपनी मिट्टी में इस्तेमाल करें. इस खाद में नाइट्रोजन कि प्रचुर मात्रा होती है, जो पौधों में हरी पत्तियों के विकास को प्रोत्साहित करती है. नीम, सरसों की खली भी मिट्टी को उपजाऊ बनाने में काम आ सकती है.

3. रोग मुक्त मिट्टी के लिए कटे हुए पत्ते भी मिटटी में मिला दें. यह ध्यान रहे की इन पत्तों में सड़ांध या कवक शामिल नहीं हो, अन्यथा यह मिट्टी को ख़राब कर सकते हैं. एक फावड़े से इन पत्तों को मिट्टी में मिला सकते 

हैं.

4. ज्यादा गीली या ज्यादा सूखी मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ मिलाने से बचें. तब तक मिट्टी में कुछ नहीं मिलाएं जब तक कि वह भुरभुरी न हो जाए.


Edited by Upasana