यूपी का पैडमैन: महिलाओं को मुफ्त में सैनिटरी पैड देने के लिए शुरू किया 'पैडबैंक'
बीते साल आई अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था। अरुणाचलम मुरुगनाथम के जीवन पर बनी इस फिल्म ने समाज में पीरियड्स से जुड़ी भ्रांतियों को सामने लाने का काम किया था। अरुणाचलम ने ग्रामीण इलाके में कम दाम में सैनिटरी पैड्स बनाने की मशीन तैयार की थी। अब इस फिल्म से प्रभावित होकर बरेली में रहने वाले 26 साल के चित्रांश सक्सेना ने पैडबैंक खोलने का काम किया है।
समाज की पिछड़ी और गरीब महिलाओं को मुफ्त में सैनिटरी पैड्स उपलब्ध कराने के लिए चित्रांश ने बीते साल 4 जून 2018 तो पैडबैंक की स्थापना की थी। यह पैडबैंक कुछ युवाओं का एक ग्रुप है जो ग्रामीण इलाकों में पीरियड्स से जुड़ी भ्रांतियों को मिटाने का काम करता है। इस ग्रुप में लगभग 15 लोग हैं जिसमें स्टुडेंट्स से लेकर नौकरीपेशा वाले लोग शामिल हैं।
चित्रांश बताते हैं, 'सोशल वर्क करने से पहले मैं आईटी की पढ़ाई कर रहा है। मैं हमेशा से लोगों की भलाई के लिए कुछ करना चाहता था। मैं चाहता था कि इस समाज को कुछ दूं। पैडमैन फिल्म देखने के बाद लगा कि मुझे कुछ करना चाहिए। अरुणाचलम मुरुगनाथम की कहानी ने मुझे खासा प्रभावित किया और मुझे लगा कि समाज में पीरियड्स से जुड़ी भ्रांतियों को मुझे हटाना होगा।'
पैडबैंक की टीम में एना खान, शिल्पी सक्सेना, राशि उदित, अनिल राज, अमान, इमैन्युएल सिंह ऐश्वर्या लाल, जेनिफर और सहर चौधरी शामिल हैं। ये सारे दोस्त अपनी पॉकेट मनी से बचे पैसों का इस्तेमाल पैड्स खरीदने में करते हैं। चित्रांश ने योरस्टोरी से बात करते हुए बताया कि शुरू में उन्हें थोड़ी मुश्किल भी हुई थी। उन्होंने कहा, 'कई इलाकों में लोग नहीं चाहते कि पीरियड्स के बारे में बात करते वक्त लड़के वहां रहें, इसलिए हम वहां से हट जाते हैं और हमारी दोस्त जो इस ग्रुप की सदस्य हैं वे जाकर लड़कियों और महिलाओं को समझाती हैं।'
चित्रांश ने गांव की महिलाओं और लड़कियों को पीरियड्स के बारे में जागरूक करने और उन्हें पैड मुहैया कराकर एक स्वस्थ जिंदगी प्रदान करने को अपना मकसद बना लिया। उनके इस पैडबैंक में कोई भी सैनिटरी पैड्स दान कर सकता है। लोग पैसे भी दान करते हैं जिनकी मदद से सैनिटरी पैड्स खरीदे जाते हैं। चित्रांश अपनी पहल को अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ ही उनके परिवार और दोस्तों का भी उन्हें पूरा साथ मिलता है।
पैडबैंक अधिकतर गांव के स्कूलों का दौरा करता है। वहां किशोरों को वर्कशॉप के जरिए पीरियड्स के बारे में जागरूक करता है। वर्कशॉप के बाद उन बालिकाओं की पहचान की जाती है जो सैनिटरी पैड्स खरीदने में सक्षम नहीं हैं। इसके बाद उन्हें एक पासबुक दी जाती है जो कि पैडबैंक की अनोखी पासबुक होती है। इसके जरिए वे मुफ्त में सैनिटरी पैड्स पा सकती हैं। हर महीने उन बालिकाओं तक आठ सैनिटरी पैड्स पहुंचाए जजाते हैं। अभी तक 148 लड़कियों को इस पैडबैंक से जोड़ा जा चुका है।
ग्रुप की सदस्य शिल्पी सक्सेना ने बताया, 'गांव में अधिकतर महिलाएं और किशोरियां सैनिटरी पैड्स की जगह गंदे कपड़े का इस्तेमाल करती हैं, जिससे उन्हें गंभीर बीमारी फैलने का खतरा रहता है। लेकिन हमारी पहल से काफी जागरूकता आई है और अब वे सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करने लगी हैं।' शिल्पी कहती हैं कि उन्हें पैडबैंक का हिस्सा बनकर कापी खुशी है। उन्होंने कहा, 'हम लोगों को यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि पीरियड्स का होना एक बेहद प्राकृतिक और आम बात है। इसमें किसी भी तरह की शर्म या हीनभावना नहीं होनी चाहिए। मुझे खुशी होगी अगर लड़कियां अपनी मां की जगह अपने पिता से सैनिटरी पैड्स खरीदने के पैसे मांगें।'
यह ग्रुप अब पुरुषों में पीरियड्स को जागरूकता फैलाने के मिशन पर लगा हुआ है। उन्होंने इसके लिए 'लेट्स टॉक अबाउट पीरियड्स' नाम से एक अभियान शुरू किया है। यह एक सोशल मीडिया कैंपेन है जिसकी मदद से लोगों को 30 सेकेंड्स का वीडियो बनाकर डालना होता है औऱ उन्हें बताना होता है कि वे पीरियड्स के बारे में क्या जानते हैं। चित्रांश कहते हैं कि जब उन्होंने इस काम को शुरू किया था तो लोगो उन पर हंसते थे, लेकिन अब वही लोग उनके ग्रुप का हिस्सा बनना चाहते हैं, यही उनकी सफलता है।
अगर आप इन युवाओं की मदद कर समाज के लिए कुछ योगदान करना चाहते हैं तो पैडबैंक की वेबसाइट पर जाकर मदद कर सकते हैं। चित्रांश से 8449997778 पर संपर्क किया जा सकता है।
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