गुजराती 'स्पैरो मैन' जगत किंखाबवाला के फैन हैं पीएम नरेंद्र मोदी
चारो तरफ शोरगुल, पशुखोर, चिड़ीमार इस वक़्त में गुजरात के एक लोकप्रिय शख्स ऐसे भी हैं जगत किंखाबवाला, जिन्हे लोग 'स्पैरो मैन' कहते हैं। वह अब तक गौरैयों के लिए एक लाख, दस हजार आशियाने बना चुके हैं। 'मन की बात' में इस शख्सियत का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी जिक्र कर चुके हैं।
गुजरात में स्पैरो मैन के नाम से मशहूर जगत पैंसठ वर्षीय जगत किंखाबवाला पिछले एक दशक से गौरैया बचाने की मुहिम में लगे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके इस मिशन के कायल हैं। जगत बताते हैं कि गौरैया गायब हो रही हैं क्योंकि उन्हे घोंसले बनाना नहीं आता है। वे हमेशा कुछ पल सुस्ताने के लिए ठिकाने खोजती रहती हैं। उनके मन मुताबिक ठिकाना बनाना कोई कठिन काम नहीं है। इसीलिए वह अब तक गौरैयों के लिए 1,10,000 से अधिक घोंसले बना चुके हैं। ऐसे किसी भी स्थान पर मामूली सी कोशिश से उनके लिए घोंसले बनाए जा सकते हैं, जहां आहट कम होती हो। जगत किंखाबवाला को अपने एकला चलो जैसे इस मिशन की सीख अपने ननिहाल में बचपन की यादों से मिली है, जब नानी के आंगन में भोर की आंख खुलते ही गौरैये चहचहाया करते थे।
जगत किंखाबवाला बताते हैं कि वह सन् 2007-8 का साल रहा होगा, जब पहली बार एक दिन उनके मन में कुछ ऐसा जुनून समाया कि ऑफिस से लौटकर गौरैयो की दुनिया आबाद करने में जुट गए। गत्तों से रंगीन घोंसले बनाने लगे। इस काम में उन्हें मजा आने लगा। और इसके साथ ही उनका 'मिशन गौरैया' शुरू हो गया। मिट्टी के सकोरों घर लाकर दाना-पानी रखा जाने लगा। हर सुबह आंख खुलते ही गौरैयों का बेसब्री इंतजार होने लगा। आखिर वो दिन आ ही गया, जब गौरैयों के जोड़े उनके सकोरों के इर्द-गिर्त फुदकते, चहचहाते हुए नाच-नाचकर दाने चुगने लगे। घर के बगीचे में और भी कई तरह के, लगभग दो दर्जन प्रजातियों के पक्षियों का बसेरा होने लगा।
अब तो 'मिशन गौरैया' ही जगत किंखाबवाला की जिंदगी का पहला और आखिरी मकसद बन कर रह गया है। अब वह स्कूलों में जाकर गौरैया वर्कशॉप में बच्चों को गत्तों से रंगीन घोंसले बनाना सिखाने लगे। ऐसे वर्कशॉप में धीरे धीरे बड़ी उम्र के लोग भी आने लगे। इस समय तो वह ऑनलाइन भी घोंसले भेजने लगे हैं। नौकरी के सात-घंटे बीतने के बाद उनके पास और कोई काम नहीं होता है। जागते रहने तक पूरा वक़्त पक्षियों के संग-साथ। अब उन्हे लोग 'स्पैरो मैन' नाम से जानते हैं। एक वर्कशॉप के समय यह नाम भी उन्हे एक बच्चे ने दिया था। हुआ यूं कि, वर्कशॉप शुरू होने से पहले एक स्कूल में प्रिंसिपल ने बच्चों से पूछा कि इन्हें जानते हो, तभी एक बच्चे के मुंह से निकल गया- स्पैरो मैन।
एक इसी तरह के बुजुर्ग गौरेया प्रेमी है कानपुर के चिरंजी लाल खन्ना, जो पिछले अठारह वर्षों से लकड़ी के छोटे-छोटे घोंसले बनाकर लोगों को मुफ़्त में बांट रहे हैं। शुरू-शुरू में उन्होंने कुछ लकड़ी के खूबसूरत घोंसले बनाकर अपने घर पर रखे। गौरैये उनमें अपना बसेरा बनाने लगे। फिर वह घोंसले बनाकर दोस्तों के घरों में रखने लगे। जुनून बढ़ता गया। हजारों घोंसले उन्होंने बांट डाले। अपने घर में उन्होंने तमाम घोंसले लगा रख रखे हैं, जैसे गौरैयों की पूरी बस्ती। सभी में गौरैया परिवारों की बसावट है। कच्चे माल के तौर पर सेब की पेटियां ख़रीदकर एक घोंसला बनाने में उनको आठ घंटे का समय लगता है। वह कहते हैं, जब ये काम शुरू किया था तो पता नहीं था कि इतने लोग उनके साथ जुड़ते चले जाएंगे। 'मैं अकेला ही चला था जानिबे मंज़िल मगर लोग साथ आते गए, कारवां बनता गया। जगत की तरह वह भी बच्चों को घोंसला बनाना सिखाते हैं।