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चाय की दुकान से गरीब बच्चों को पढ़ाने वाले प्रकाश राव को मिला पद्मश्री

 चाय की दुकान से गरीब बच्चों को पढ़ाने वाले प्रकाश राव को मिला पद्मश्री

Tuesday January 29, 2019 , 3 min Read

प्रकाश राव

वैसे तो दूसरों की मदद करने या समाज के लिए कुछ अच्छा करने की तमन्ना तो हर किसी के दिल में होती है। लेकिन अधिकतर लोग लायक बनने का इंतजार करते हैं। जैसे कुछ लोग सोचते हैं कि वे समाज सेवा तो करेंगे लेकिन नौकरी मिल जाने के बाद, करियर सेटल हो जाने के बाद, चिंतामुक्त हो जाने के बाद, इत्यादि। लेकिन सच्चाई यही है कि ऐसे लोग सिर्फ मौके के इंतजार में सारी जिंदगी गुजार देते हैं और जिन्हें समाज सेवा करनी होती है वो बिना संसाधनों के बल पर ही सब कर जाते हैं। ऐसे ही हैं ओडिशा के देवरापल्ली प्रकाश राव जिन्हें हाल ही में पद्मश्री अवॉर्ड से नवाजा गया। 


ओडिशा के कटक में बख्शीबाजार इलाके में चाय की दुकान चलाने वाले प्रकाश राव की कहानी बेहद दिलचस्प है। उम्र के 60वें पड़ाव पर पहुंच चुके प्रकाश अपनी छोटी सी चाय की दुकान से थोड़ी बहुत जो कमाई करते हैं उसे गरीब बच्चों की पढ़ाई में लगा देते हैं। वे अपनी आय से 80 बच्चों की मदद कर रहे हैं। इस उम्र में मदद का इतना बड़ा जज्बा रखने वाले प्रकाश हर रोज सुबह 4 बजे उठते हैं और दुकान के लिए सारी तैयारी करते हैं। वे रात 10 बजे तक दुकान पर ही रहते हैं।


प्रकाश गरीब बच्चों के लिए एक छोटा सा स्कूल चलाते हैं। उनकी दिलचस्पी हमेशा पढ़ने लिखने में ही रही लेकिन हालात की वजह से उन्हें चाय की दुकान खोलनी पड़ी। उनके पिता चाहते थे कि वह स्कूल जाने की बजाय खेती में उनकी मदद करें। इसलिए प्रकाश को दसवीं के बाद स्कूल छोड़ना पड़ा। इससे उन्हें अफसोस हुआ और आज वे गरीब बच्चों को पढ़ाकर अपने सपने को पूरे कोशिश कर रहे हैं।


पिता के देहांत के बाद प्रकाश को चाय की दुकान संभालनी पड़ी। उन्होंने कई सपने देखे थे जिन्हें उस मौके पर भूल जाना बेहतर लगा। लेकिन उनके भीतर हमेशा एक आग जलती रही। आखिरकार सन 2000 में उन्होंने अपने सपने को पूरा करने की ठानी और एक छोटा सा स्कूल खोला जिसका नाम रखा, 'आशा ओ आश्वासन', इस स्कूल में स्लम इलाके के बच्चों को प्रवेश मिला। इस स्कूल में बच्चों को सिर्फ तीसरी कक्षा तक पढ़ाया जाता है। इसके बाद उन्हें सरकारी स्कूल में दाखिल कर दिया जाता है।


इतना ही नहीं सात साल की उम्र से काम कर रहे राव बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद भी किसी भी तरह की मदद के लिए कभी पीछे नहीं हटते। उन्होंने 1978 से करीब दो सौ बार रक्तदान किया और सात बार प्लेटलेट्स दान किए। इन्हीं सब वजहों से उन्हें बीते 25 जनवरी को देश के तीसरे सबसे बडे़ पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया। प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात में भी प्रकाश की प्रशंशा की थी।


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