जैविक खेती से लोगों की सेहत का खयाल रख रही हैं महिला किसान रमा भारती, लेखन की दुनिया में भी कर चुकी हैं कमाल
मिलें 'रमैय्या बास्केट’ की फाउंडर रमा भारती से...
लोगों को जैविक तरीकों से उगाई गईं सब्जियां उपलब्ध कराने के साथ ही साहित्य के साथ जुड़कर रमा भारती बेहतरीन संतुलन के साथ काम कर रही हैं। रमा ने दिल्ली-एनसीआर के लोगों के लिए 'रमैय्या बास्केट’ की शुरुआत की है, इसी के साथ रमा की कविताओं के संग्रह किताबों के रूप में लगातार प्रकाशित होती रहते हैं।
रमा भारती जविक खेती और साहित्य के बीच एक बेहतरीन तालमेल बिठाकर दोनों ही क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रदर्शन कर रही हैं। रमा भारती जैविक खेती को लेकर मुहिम चला रही हैं, जिसके तहत वे दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में लोगों को कीटनाशक मुक्त सब्जियाँ और अन्न उपलब्ध करा रही हैं, इसी के साथ वे साहित्य की ओर भी लगातार सजग हैं। अब तक रमा द्वारा लिखी व संपादित की गईं कई किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।
एक फौजी परिवेश में पलीं-बढ़ीं रमा को खेती और कविताओं से बचपन से ही लगाव था, जिसके बाद आगे बढ़ते हुए उन्होने इन दोनों को ही अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया।
इस बारे में रमा भारती बताती हैं,
“पापा के फौज में होने के चलते हमें देश के कई हिस्सों में रहने का मौका मिला, जहां हम अपने घर पर ही सब्जियाँ उगाने का काम करते थे। किसान परिवार से होने के कारण खेती का हुनर जैसे हमें विरासत में मिला। फौजी परिवार से होने के नाते हमें बाहर जाने का मौका कम ही मिलता था, इसलिए हमारा अधिक समय पेड़ों के आस-पास ही बीतता था।”
साहित्य के बारे में अपनी रुचि के बारे में बात करते हुए रमा कहती हैं,
“मुझे बचपन से ही कविता लिखने और पढ़ने का शौक था, जो आगे लगातार बढ़ता चला गया। मैंने अपने अनुभवों को कविताओं के रूप में उतारना शुरू कर दिया, जिसने आगे चलकर किताब की शक्ल ले ली।”
रमा ने जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से प्लांट रीडिंग में एमएससी की पढ़ाई की, जिसके बाद उन्होने कल्सटेंसी फर्म किया, हालांकि शादी के बाद नौकरी और परिवार के बीच संतुलन बनाना काफी मुश्किल हो गया, जिसके चलते उन्हे नौकरी छोड़नी पड़ी।
आगे बढ़ा अभियान
नौकरी से अलग होने के बाद रमा ने 'एसोशिएशन फॉर प्रोटेक्शन एंड प्रमोशन ऑफ एनवायरनमेंटल रिसोर्सेस' नाम की एक संस्था भी शुरु की, जिसके तहत उन्होने जैविक खेती की दिशा में अपने कदम बढ़ा दिये। रमा जैविक खेती के लिए नई पद्धतियों जैसे ज़ीरो बजट फ़ार्मिंग, नेचुरल फ़ार्मिंग, मोनो क्रॉप्स का उपयोग फसल उपजाने के लिए कर रही हैं।वो कहती हैं,
"दिल्ली एनसीआर जैसे क्षेत्र में भी अभी भी लोगों के बीच जैविक सब्जियों का उतना चलन नहीं है, आज भी लोग कई दिनों से फ्रिज में रखी सब्जियों का इस्तेमाल करते हैं।”
रमा कहती हैं,
"पहले ऐसा कम ही होता था कि लोगों के बीच कैंसर जैसी बीमारियाँ जन्म लेती थीं, लेकिन आज के केमिकल की मदद से उपजी फसलों के सेवन के चलते हर तीसरे व्यक्ति को गंभीर बीमारियाँ हो रही हैं।"
रमा ने इसी बीच फ़रीदाबाद के पास जमीन का एक टुकड़ा लीज पर लिया, जिसमें उन्होने जैविक खेती प्रारम्भ की। इस मुहिम में रमा के साथ बड़ी संख्या में किसान भी जुड़ रहे हैं, जिन्हे वो प्रशिक्षण भी दें रही हैं, जिसके बाद ये किसान जैविक खेती की तरफ अपना रुख कर रहे हैं।
'रमैय्या बास्केट' हुई प्रचलित
रमा ने लोगों के बीच जैविक सब्जियों के प्रचालन को बढ़ाने के लिए उन्होने ’रमैय्या बास्केट’ की शुरुआत की है। इसके तहत रमा 40 प्रतिशत छूट के साथ लोगों को उनकी मनपसंद सब्जियाँ उनके घर पर डिलीवर कर रही हैं। रमा इस काम को और आगे ले जाने के लिए अब वेबसाइट की भी शुरुआत करने जा रही हैं। रमा किसानों को प्रशिक्षण देने के साथ ही अपने इस काम को आगे ले जाने की ओर कदम बढ़ा रही हैं।
लोगों को यह बास्केट पहले से ऑर्डर करने के बाद ही उपलब्ध कराई जाती है। आज हालात ये हैं कि रमा के पास कई दिनों आगे तक के ऑर्डर उपलब्ध हैं। इस तरह दिल्ली-एनसीआर में जैविक खेती की मांग को पूरा करने के लिए रमा बेहतरीन काम कर रही हैं।
साहित्य से गहरा लगाव
रमा ने साहित्य से लगातार अपना नाता बनाकर रखा हुआ है। रमा ने 'अंदर की आग' नाम की एक किताब का सम्पादन किया, जिसके बाद उनकी कविताओं से संबन्धित किताबों के प्रकाशित होने का सिलसिला शुरू हो गया। इनमें 'चनाब', ‘चाँद रात’ और ‘मैं ये, मैं वो, मैं वो’ समेत कई किताबें शामिल हैं।
नए लेखकों को टिप्स देते हुए रमा कहती हैं,
“जो भी नए लेखक हैं या लेखका बनना चाहते हैं, वे कहीं छपने के उद्देश्य से न लिखें। जो उनके मन में है उसे लिखें। बेहतर लिखने के लिए जरूरी है कि वो जितना पढ़ सकते हैं समय निकाल कर पढ़ें।”
रमा कहती हैं,
“आप कितना भी पढ़ें-लिखें हैं, लेकिन आपके पास जमीन का छोटा सा भी हिस्सा है तो आप जैविक खेती से भी जुड़ें। जरूरी नहीं है कि आप व्यवसाय करें, लेकिन आप जविक तरीकों से अपनी जरूरत की सब्जियाँ उगाएँ। पेड़ पौधों के सानिध्य में रहना खासा जरूरी है, इससे शारीरिक और मानसिक दोनों ही सेहत बेहतर रहती हैं।”