अगर लड़की ने सेक्स के लिए साफ शब्दों में ‘हां’ नहीं कहा तो यह रेप है
स्पेन के नए बिल ‘ओनली येस मीन्स येस’ ने यूरोप में एक नई बहस खड़ी कर दी है. अगर यह स्पष्ट है कि बिना सहमति के कोई भी सेक्सुअल एक्ट रेप है तो यूरोप में सिर्फ 12 देशों में ही यह कानून क्यों.
22 मई, 2022 को स्पेन की संसद के निचले सदन में ‘गारंटी ऑफ सेक्सुअल फ्रीडम’ बिल पास हो गया. बिल का नाम है- “ओनली येस मीन्स येस.” (सिर्फ हां का मतलब हां). यह बिल स्पेन में लंबी चली लड़ाई और विरोध का नतीजा है. 2016 में एक गैंगरेप केस में अदालत के फैसले को लेकर पूरे देश में इतना विरोध हुआ कि आखिरकार सरकार को स्पेन के मौजूदा रेप कानून पर पुनर्विचार करने के लिए कमेटी बनानी पड़ी. उस कमेटी की रिपोर्ट का नतीजा है यह कानून, जो रेप को नए सिरे से और साफ शब्दों में परिभाषित कर रहा है.
यह कानून कह रहा है कि लड़की की ना का मतलब हां नहीं है. लड़की की चुप का मतलब भी हां नहीं है. हां का मतलब तभी हां है, जब मुंह से साफ, स्पष्ट शब्दों में हां कही गई हो. इसके अलावा सभी स्थितियों में सेक्स रेप माना जाएगा.
‘ला मान्दा’ रेप केस और स्पेन की सड़कों पर औरतों का उग्र विरोध
7 जुलाई, 2016 को आधी रात स्पेन के पांपलोना शहर में पांच लड़कों ने एक 18 साल की लड़की का तब रेप किया, जब वो अपनी कार में सोने जा रही थी. लड़के उसे घसीटकर एक बिल्डिंग के डोर-वे में ले गए. वहां सबने रेप किया और उसकी रिकॉर्डिंग भी की. फिर वे उसे वहीं छोड़कर उसका फोन लेकर भाग गए.
रात 3 बजे के आसपास सड़क से गुजर रहे एक कपल की लड़की पर नजर पड़ी. उन्होंने पुलिस को रिपोर्ट की. उसके बाद उन लड़कों की खोज शुरू हुई. उन लड़कों ने ला मान्दा (द वुल्फपैक) नाम के एक व्हॉट्सएप ग्रुप में उस रेप की सात क्लिपिंग्स शेयर की थीं. बाद में पुलिस ने उन वीडियो क्लिपिंग्स पर 200 पन्नों की रिपोर्ट तैयार की, जिसमें कहा गया था कि वो महिला उस दौरान सिर्फ “पैसिव और न्यूट्रल” थी. उसकी तरफ से कोई विरोध नहीं हुआ था.
अदालत ने इसे यौन उत्पीड़न तो माना लेकिन बलात्कार नहीं
अदालत ने अपने फैसले में इस घटना को यौन हिंसा तो माना, लेकिन रेप नहीं माना. लड़कों को 9 साल की सजा हुई, लेकिन अपराध था यौन उत्पीड़न. सवाल यहां कंसेंट का था. चूंकि लड़की मुंह से ना नहीं बोल रही थी तो उसकी चुप्पी को अदालत ने उसकी सहमति की तरह देखा. बावजूद इसके यौन उत्पीड़न की सजा इसलिए दी गई क्योंकि उस वीडियो में पांचों आरोपी साफ तौर पर उसे अब्यूज करते और हिंसक व्यवहार करते दिखाई दे रहे थे.
इस केस में आरोपियों को मामूली सजा हुई, लेकिन स्पेन की सरकार, पुलिस और अदालत के लिए निचली अदालत का ये फैसला लंबी सजा बन गया.
मीटू मूवमेंट का दौर और महिलाओं का आक्रोश
ये पूरी दुनिया में सिर उठा रहे मीटू मूवमेंट का वक्त था. पितृसत्ता, यौन हिंसा और मर्दों के उत्पीड़न के खिलाफ सैकड़ों बरसों से दुनिया भर में औरतों के मन में भर रहा गुस्सा और गुबार ‘मी टू मूवमेंट’ के जरिए फट पड़ा था और कोई भी इसकी जद में आने से बचा नहीं था. पास के देश पोलैंड में लाखों की संख्या में औरतें नए गर्भपात कानून के खिलाफ सड़कों पर उतरी हुई थीं.
सेकेंड वेव फेमिनिस्ट मूवमेंट के बाद इतिहास में यह पहला मौका था, जब इतनी बड़ी संख्या में औरतें सड़कों पर उतरकर बाकायदा सरकार और न्यायालय को ललकार रही थीं. वो नाम लेकर अपने पिता, भाई, मामा, चाचा, काका के काले कारनामे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रही थीं.
मेरे साथ भी रेप हुआ और मैं भी चुप रही
‘द वुल्फपैक’ रेप केस के खिलाफ सड़कों पर उतरी औरतों के हाथों में बड़े-बड़े बैनर थे, जिस पर स्पेनिश में लिखा था- “cuéntalo” मतलब “tell it (बोलो).”
सिर्फ स्कूल, कॉलेज, दफ्तरों और घरों वाली साधारण लड़कियों ने ही नहीं, नामी पत्रकारों, लेखकों, कलाकारों और सेलिब्रिटी महिलाओं ने भी बोलना शुरू कर दिया. सबने खुलकर अपनी कहानी सुनानी शुरू की. उन्होंने नाम लेने से भी परहेज नहीं किया.
‘द वुल्फपैक’ रेप केस में जो कोर्ट ने कहा था कि “लड़की कुछ बोली नहीं, इसलिए यह रेप नहीं है,” इसके खिलाफ औरतों ने 20-20 साल पुरानी कहानियां सुनानी शुरू कहीं, जब उनके साथ भी ऐसा हुआ था और वो कुछ नहीं बोलीं.
(हम यहां उन लड़कियों की लिखी कहानियां नहीं सुना रहे क्योंकि उनके ग्राफिक डीटेल काफी तकलीफदेह हैं. लेकिन वो कहानियां इंटरनेट पर मौजूद हैं. आप हैशटैग cuéntalo के नाम से सर्च कर पढ़ सकते हैं.)
रेप कानून बदलने के लिए सरकार पर दबाव
शायद यह टाइमिंग ही थी, जो कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ औरतें बैनर-पोस्टर लेकर सड़कों पर उतर आई थीं, वरना स्पेन के कानून के इतिहास में ऐसा अजीबोगरीब फैसला कोई नई बात नहीं थी. स्पेन का रेप लॉ कंसेंट को ढंग से परिभाषित भी नहीं करता था. जैसे भारत का कानून नहीं करता. ज्यादा पुरानी बात तो नहीं, जब एक हाई प्रोफाइल रेप केस में भारत के उच्च न्यायालय ने यह कहकर रेप के आरोपी को बरी कर दिया था कि लड़की की ना कमजोर ना (फीबल नो) थी.
स्पेन में इस बार विरोध की आवाज इतनी तेज और बुलंद थी कि सरकार चाहकर भी उसकी अनदेखी नहीं कर सकती थी. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को उलटते हुए इसे रेप करार दिया और पांचों आरोपियों को 15 साल कैद की सजा सुनाई. एक आरोपी को अतिरिक्त दो साल की सजा क्योंकि उसने लड़की का मोबाइल चुरा लिया था.
सरकार इस फैसले से अपना दामन साफ करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन इतने से काम चला नहीं. सरकार पर दबाव बना कि रेप कानून बदला जाए. सरकार ने एक पैनल बनाया, पैनल की रिपोर्ट के बाद गारंटी ऑफ सेक्सुअल फ्रीडम बिल निचले सदन में पास हो गया.
सदन में कुल 201 सांसद थे और 140 वोट इस बिल के पक्ष में पड़े. अब यह बिल सीनेट में पेश होगा और वहां पास होने के बाद यह कानून बन जाएगा.
रेप कानूनों में सहमति को कैसे परिभाषित करेंगे ?
दुनिया भर के अधिकांश रेप कानूनों में 70 के दशक तक सहमति या कंसेंट को लेकर कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं थी. रेप वही माना जाता, जिसमें विक्टिम के साथ जोर-जबर्दस्ती या हिंसा की गई हो. कानून की भाषा में साफ शब्दों में ‘चुप्पी’ को सहमति तो नहीं कहा गया था, लेकिन रेप के अनगिनत मामलों में उसे रेप नहीं माना गया क्योंकि लड़की चुप थी या उसके शरीर पर घावों और चोट के निशान नहीं थे.
भारत में 1972 का मथुरा रेप केस इसकी सबसे बड़ी बानगी है, जहां महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में पुलिस थाने में एक 16 साल की आदिवासी लड़की का रेप हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने उसकी चुप्पी और शरीर पर कोई चोट का निशान न होने को लड़की की सहमति बताते हुए आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया.
यह ऐतिहासिक केस भारत में पहली बार रेप कानूनों में बदलाव की पूर्वपीठिका बना.
जोर-जबर्दस्ती से सहमति तक
1981 में पहली आयरलैंड ने अपने रेप कानून में सहमति या कंसेंट शब्द को परिभाषित किया. कानून में स्पष्ट शब्दों में यह कहा गया कि “कोई भी सेक्सुअल एक्ट, जिसमें दूसरे पक्ष की साफ शब्दों में सहमति न हो, वह बलात्कार है.”
उसके बाद यूके, बेल्जियम, स्कॉटलैंड, इंग्लैंड, तुर्की, जर्मनी, आइसलैंड, साइप्रस, स्वीडन, डेनमार्क, स्लोवेनिया और लक्जमबर्ग ने अपने रेप कानूनों में सहमति को स्पष्ट शब्दों में परिभाषित किया गया.
ईयू (यूरोपियन यूनियन) में रेप से जुड़े कुछ आंकड़े चौंकाने वाले हैं-
- यूएन के मुताबिक ईयू में हर साल 15 साल की उम्र से तकरीबन 90 लाख लड़कियां रेप की शिकार होती हैं.
- इस्तांबुल कन्वेंशन के बाद भी यूरोप के सिर्फ 12 देशों का रेप कानून सहमति को स्पष्ट शब्दों में परिभाषित करता है.
- एमनेस्टी इंटरनेशनल की रेप की परिभाषा को 22 यूरोपीय देशों में स्वीकृति नहीं मिली है. इन देशों का कानून अभी भी बिना सहमति के सेक्स को रेप नहीं मानता.