ट्विटर पर महिला अधिकारों का समर्थन करने के लिए इस औरत को मिली 34 साल जेल की सजा
यूके की यूनिवर्सिटी में मेडिसिन पढ़ाने वाली और दो छोटे बच्चों की मां सलमा को कुछ ट्विटर अकाउंट फॉलो करने और रीट्वीट करने की सजा मिली है- 34 साल की जेल.
क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि एक महिला को ट्विटर पर महिला अधिकारों का समर्थन करने, एक्टिविस्टों को फॉलो करने और उनके ट्वीट को रीट्वीट करने के लिए 34 साल के लिए सलाखों के पीछे डाल दिया जाए. सऊदी अरब में कुछ ऐसा ही हुआ है. 34 साल की सलमा अल शेहाब को सऊदी सरकार ने 34 साल जेल की सजा सुनाई है क्योंकि वो सरकार की मर्दवादी और स्त्री विरोधी नीतियों की आलोचना करने वाले लोगों को ट्विटर पर फॉलो करती थीं और उनकी ट्वीट रीट्वीट करती थीं. मानवाधिकार संगठनों का समर्थन करती थीं.
सलमा ने डेंटल मेडिसिन की पढ़ाई की है. वर्तमान में वे प्रिंसेट नॉरा यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हैं और साथ ही यूके की लीड्स यूनिवर्सिटी से पीएचडी भी कर रही हैं. सलमा विवाहित हैं और दो बच्चों की मां हैं.
पिछले साल 15 जनवरी को उन्हें गिरफ्तार किया गया, जब वह छुट्टियों में घर आई हुई थीं. यूके वापस लौटने की तारीख से 15 दिन पहले पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया.
सलमा पर टेररिस्ट कोर्ट में मुकदमा हुआ. उन पर आरोप था कि उन्होंने देश विरोधी विचारधारा और लोगों का समर्थन किया है. ऐसा करके उन्होंने राष्ट्र को तोड़ने और अशांति का माहौल बनाने की कोशिश की है. पहले स्पेशल कोर्ट ने उन्हें 3 साल जेल की सजा सुनाई थी, लेकिन बाद में ऊपरी अदालत ने फैसले को रिव्यू करते हुए 3 साल जेल को 34 साल जेल की सजा में बदल दिया.
पूरी दुनिया में मानवाधिकार संगठन और कार्यकर्ता जैसे ह्यूमन राइट्स फाउंडेशन, द फ्रीडम इनीशिएटिव, यूरोपियन सऊदी ऑर्गेनाइजेशन फॉर ह्यूमन राइट्स, सऊदी सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं. सबने सलमा को तुरंत रिहा किए जाने की मांग की है. उनका कहना है कि मानवाधिकार और स्त्री अधिकार कार्यकर्ताओं का समर्थन करना कोई अपराध नहीं है. कोई सरकार फॉलो और रीट्वीट करने के लिए किसी को जेल में नहीं डाल सकती.
सलमा खुद कोई एक्टिविस्ट और कार्यकर्ता भी नहीं हैं. ट्विटर पर उनके 2597 फॉलोवर हैं और वो 159 लोगों को फॉलो करती हैं. इस वक्त उनका ट्विटर अकाउंट डीएक्टिवेट कर दिया गया है.
सलमा ट्विटर पर उन महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का समर्थन कर रही थीं, जो सऊदी के मेल गार्जियनशिप कानून को खत्म किए जाने की मांग कर रही हैं. साथ ही उन्होंने लुजिन अल हथलोल की गिरफ्तारी और सजा का भी विरोध किया था.
कौन हैं लुजिन अल हथलोल
लुजिन सऊदी की स्त्री अधिकार कार्यकर्ता हैं. लुजिन उन महिलाओं में से एक हैं, जिनकी कोशिश और लड़ाई का नतीजा है कि तीन साल पहले सऊदी अरब ने महिलाओं को ड्राइविंग लाइसेंस देना शुरू किया. इसके पहले वहां महिलाओं का ड्राइविंग करना प्रतिबंधित था. लुजिन को सऊदी पुलिस ने 1 दिसंबर, 2014 को गिरफ्तार कर लिया था, जब वह अपनी कार खुद ड्राइव करके यूएई से सऊदी अरब बॉर्डर पर पहुंची. सरकार ने उन्हें 73 दिन जेल में रखा. अपराध सिर्फ ये था कि वो अपनी गाड़ी खुद चला रही थीं.
मई, 2018 में उन्हें दर्जन भर और महिलाओं के साथ दोबारा गाड़ी चलाने के लिए गिरफ्तार किया गया और इस बार वे 32 महीने तक जेल में रहीं. इस बार जेल में उन्हें तमाम यातनाएं दी गईं. पेट, पीठ और तलवों पर कोड़े मारे गए. इलेक्ट्रिक शॉक दिया गया. एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक जब उनके माता-पिता जेल में उनसे मिलने गए तो उनकी दोनों जाघों पर काले-नीले निशान थे. वह ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थीं.
उस वक्त पूरी दुनिया के मानवाधिकार कार्यकर्ता लुजिन की रिहाई की मांग कर रहे थे. सलमा भी उन लोगों में से एक थीं, जो सरकार की आलोचना कर रही थीं. लेकिन ये काम वह सिर्फ सोशल मीडिया पर ही कर रही थीं. वह आधिकारिक रूप से कभी किसी मानवाधिकार संगठन का हिस्सा नहीं रहीं और न ही सऊदी अरब में या देश के बाहर कभी किसी आंदोलन में हिस्सा लिया. यह बात उनके मुकदमे के फैसले में भी साफ तौर पर कही गई है.
इस वक्त हर वह स्त्री सऊदी सरकार के निशाने पर है, जो वहां के मेल गार्जियनशिप कानून का विरोध कर रही है.
क्या है मेल गार्जियनशिप कानून
ईरान, कुवैत, कतर, मिस्र, बहरीन और सऊदी अरब समेत बहुत से इस्लामिक देशों में आज भी मेल गार्जियनशिप का कानून है. इस कानून के मुताबिक कोई भी स्त्री अकेली नहीं रह सकती. उसका कोई न कोई पुरुष अभिभावक होना जरूरी है. पिता, पति, भाई या और कोई भी पुरुष रिश्तेदार. पुरुष अभिभावक की अनुमति के बिना स्त्रियां नौकरी नहीं कर सकतीं, कॉलेज में एडमिशन नहीं ले सकतीं, बैंक अकाउंट नहीं खुलवा सकतीं, यात्रा नहीं कर सकतीं, ड्राइविंग लाइसेंस नहीं बनवा सकतीं और प्रॉपर्टी नहीं खरीद सकतीं. ऐसे हरेक फॉर्म में मेल गार्जियन यानि पुरुष अभिभावक का हस्ताक्षर अनिवार्य है.
दिसंबर, 2016 को सऊदी अरब की 14000 महिलाओं ने एक पिटीशन पर हस्ताक्षर किया था, जिसमें वहां के किंग से मेल गार्जियनशिप के कानून को खत्म करने की मांग की गई थी. कानून तो खत्म नहीं हुआ, सरकार ने लुजिन को जरूर 4 जून, 2017 को दम्मम के किंग फहद इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर डीटेन कर लिया.
आज की तारीख में सऊदी की जेलों में कितनी स्त्री अधिकार कार्यकर्ता बंद हैं, इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा एमनेस्टी इंटरनेशनल के पास भी नहीं हैं. लुजिन या सलमा जैसे कुछ लोगों की कहानी सार्वजनिक हो जाती है, जिसकी वजह यह है कि वो यूरोप, लंदन, अमेरिका में रह रही हैं.
उनके अलावा देश के भीतर ऐसी कितनी स्त्रियां हैं, जो सऊदी की जेलों में सालों से पड़ी हैं क्योंकि उन्होंने सरकार से थोड़े हक, थोड़ी आजादी और थोड़ी बराबरी की मांग की, कोई नहीं जानता.