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इस भारतीय स्टार्टअप के लिए देश-विदेश के 30 साइंटिस्ट ने अपनी नौकरी क्यों छोड़ दी?

लिथियम-आयन बैटरी बनाने वाले गोदी इंडिया की कहानी कमाल है.

इस भारतीय स्टार्टअप के लिए देश-विदेश के 30 साइंटिस्ट ने अपनी नौकरी क्यों छोड़ दी?

Tuesday October 04, 2022 , 11 min Read

प्रणीता सेल्वारासु की जैसे ही मई 2022 में PhD ख़त्म हुई, उन्होंने GODI में साइंटिस्ट की नौकरी शुरू कर दी. पुडुचेरी विश्वविद्यालय से नैनोसाइंस एंड टेक्नोलॉजी में डिग्री लेने वाली प्रणीता की मां ने सोचा था कि उनकी बेटी इसके बाद टीचिंग के फील्ड में जाएगी.  

"मां को हमेशा लगता था कि मैं प्रफेसर बनूंगी. वो इस बात से घबराती थीं कि महिला होते हुए मैं इंडस्ट्रियल काम कैसे करूंगी. लोगों को लगता है कि औरतें इंडस्ट्रियल काम में अच्छी नहीं होतीं. इस बात में कोई सच्चाई नहीं है. और महिलाओं को आगे आकर इस फील्ड में काम करना चाहिए", प्रणीता कहती हैं.

GODI की रिसर्च एंड डेवलपमेंट (R&D) टीम में कुल 30 डॉक्टरेट हैं, प्रणीता जिनमें से एक हैं. 

हैदराबाद बेस्ड GODI देश की सबसे बड़ी एडवांस्ड सेल और सुपरकैपेसिटेटर बनाने वाली कंपनी है. जो ई-मोबिलिटी और स्टेशनरी स्टोरेज सेक्टर के लिए सप्लाई तैयार करती है. 

GODI इंडिया की डॉक्टरेट टीम 

सामान्यतः कोई भी स्टार्टअप, कम से कम भारतीय स्टार्टअप, शुरुआती दिनों में ही 30 PhD धारकों को हायर नहीं करता. 

मगर GODI इंडिया के फाउंडर महेश गोदी ने ऐसा किया. इन साइंटिस्ट्स को इलेक्ट्रिक व्हीकल्स के लिए ऐसे सेल्स बनाने के लिए लाया गया जो भारतीय कंडीशन के लिए मुफीद हों.

"लोग अक्सर टेक्नोलॉजी हासिल करने के लिए विदेश की ओर देखते हैं. चाहे खरीदकर, इन्वेस्ट कर या जॉइंट वेंचर के रूप में. लेकिन मैं ये सोच बदलना चाहता हूं. मैं चाहता हूं कि हम टेक्नोलॉजी बनाने में खुद सक्षम हों. 

godi india team

गोदी इंडिया की डॉक्टरेट टीम

3 साल पुराने इस स्टार्टअप में काम कर रहे कुछ डॉक्टरेट इस्रेअल, जापान, ऑस्ट्रेलिया और साउथ कोरिया, यूरोप और नॉर्थ अमेरिका जैसी जगहों में काम कर रहे थे. कुछ ऐसे थे जो अपनी रीसर्च बाहर से कर रहे थे. 

शुरुआत 

एनर्जी सेक्टर में कुछ बड़ा करने का आइडिया महेश को तब आया जब वे 17 साल US में काम कर इंडिया लौटे. 2018 में इंडिया की सड़कों की दशा और प्रदूषण का स्तर देखकर उन्होंने इन मसले की तह तक जाने का सोचा.

“मैंने इलेक्ट्रिक वाहनों के बारे में पढ़ना शुरू किया. और इंडिया में एनर्जी और रिन्यूएबल सेक्टर के बारे में जानकारी जुटाते हुए ये देखना शुरू किया कि आगे क्या किया जा सकता है.” 

महेश ने पाया कि रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में इन्वेस्टमेंट बहुत है और इलेक्ट्रिक वाहनों की मैन्युफैक्चरिंग में भी पहले से लोग मौजूद हैं. मगर सेल (cell)  या बैटरी बनाने पर कोई काम नहीं कर रहा है. 

"बैटरियां किसी भी इलेक्ट्रिक वाहन का 50% दाम तय करती हैं. मुझे लगा इंडस्ट्री में ये एक गैप है जिसे भरा जा सकता है", महेश बताते हैं. 2019 आते आते महेश ने तय कर लिया था कि वो सेल्स (cells) बनाएंगे. 

टैलेंट की खोज

टेक्नोलॉजी को शुरू से बनाना कोई छोटा काम नहीं है. इंडिया में ऐसी इंडस्ट्री पहले से नहीं थी. जिसके चलते ज्यादा अनुभवी लोग मौजूद नहीं थे. 

महेश ने अपने कॉन्टेक्ट्स का इस्तेमाल कर विदेशी यूनिवर्सिटीज में पता करना शुरू किया. साथ ही IIT और IIM के प्रफेसर्स के रास्ते पता करना शुरू किया कि उनके कौन से स्टूडेंट्स हैं जो विदेशों में बैटरी सेक्टर में काम कर रहे हैं. 

उन्होंने PhD धारकों की एक कोर टीम तैयार की. जिसका काम रिसर्च एंड डेवलपमेंट का था. जनवरी 2020 तक 15 साइंटिस्ट जुड़ चके थे. आने वाले डेढ़-दो साल में बाकी की जॉइनिंग हुई. 

महेश सबकुछ देख रहे थे–कि जॉइन करने वाले कैंडिडेट्स ने किस तरह के पर्चे लिखे और छपवाए हैं, उनके नाम कैसे पेटेंट्स हैं, वगैरह. 

महेश के मुताबिक उन्होंने लिंक्डइन पर जॉब ओपनिंग डाली जिसके जवाब में उन्हें 4-5000 एप्लीकेशन आए. वो कहते हैं, "इतने एप्लीकेशन के बीच कैंडिडेट्स खोजना बहुत मुश्किल था क्योंकि मेरे पास कोई HR टीम नहीं थी. मैं इस एरिया का एक्सपर्ट भी नहीं था इसलिए मुझे इस फील्ड में काम कर रहे कुछ दोस्तों की मदद लेनी पड़ी. 

एक कैंडिडेट का औसतन चार से पांच राउंड में इंटरव्यू संभव हो पाया. 

पुष्पेंद्र सिंह, जो 30 साइंटिस्ट्स की टीम का हिस्सा हैं, बताते हैं कि जॉब पोस्ट में नौकरी के रोल और, काम का प्रोफाइल और भविष्य की संभावनाएं, सब बेहद अच्छे तरीके से बताई गई थीं. 

"यहां मैंने बहुत कुछ सीखा है. क्योंकि यहां हमें ढेर सारी चुनौतियां मिलीं, मटीरियल से लेकर डिवाइस तक के मामले में", पुष्पेंद्र बताते हैं. पुष्पेंद्र ने खुद IIT रुड़की से PhD पूरी कर फुलब्राइट-नेहरु डाक्टरल रिसर्च फेलोशिप प्राप्त की और फिर अमेरिका की ड्रेक्सेल यूनिवर्सिटी से डिग्री पूरी की. 

महेश ने हायरिंग के लिए IIT के प्रफेसर दोस्तों को भी अप्रोच किया. एक बार उन्हें कुछ PhD होल्डर मिल गए, उसके बाद उनके रेफरेंस से और लोग जुड़ते गए. 

"मैंने एक-एक कैंडिडेट को खुद चुना है. उनसे लंबी बातें करने और ये समझने के बाद कि वे अपने करियर में क्या चाहते हैं, वो इंडिया आकर क्या करना चाहते हैं और वो इस तरह की कंपनी क्यों जॉइन करना चाहते हैं. 

देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग आएं, ये भी महेश की इच्छा थी. फ़िलहाल उनकी टीम में केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, असम, बिहार, दिल्ली और राजस्थान के लोग हैं. उनके मुताबिक वो देश के सभी फ्लेवर्स को जोड़ना चाहते थे. 

GODI इंडिया की हायरिंग रंग लाई है. स्टार्टअप एक अच्छी दिशा में आगे बढ़ रहा है. और लिथियम-आयन सेल मैन्युफैक्चरिंग के फील्ड में ऐसा काम कर रहा है जिसका प्रभाव यहां काम कर रहे साइंटिस्ट भी देख पा रहे हैं. 

"मैं जब अकेडमिया का हिस्सा थी तो सोचती थी कि जो पर्चे हम सब छापते हैं उनका क्या होता है. बेशक, वो आपको 'गूगल स्कॉलर' पर मिल जाते हैं. पर असल सवाल ये है कि क्या उन रिसर्च को असल ज़िन्दगी में अप्लाई किया जा रहा है", प्रणीता कहती हैं. प्रणीता फ़िलहाल 'रियल प्रॉब्लम' के हल की ओर काम करने को लेकर काफी उत्साहित हैं. 

शशिधराचारी कम्मारी नाम के एक और साइंटिस्ट इस बात की तस्दीक करते हैं. साउथ कोरिया में पोस्ट-डॉक करने के बाद उनके पास वहां मौके थे. लेकिन उन्होंने इंडिया लौटना चुना. 

टेक्नोलॉजी 

इस साल जनवरी में GODI इंडिया ने अपने कमर्शियल ग्रेड 21700 सिलिंड्रिकल NMC811 लिथियम-आयन सेल का पहला बैच हैदराबाद से निकाला.

महेश बताते हैं कि उनकी कंपनी देश में पहली है जो खुद ही डिज़ाइन और डेवलपमेंट के बाद, स्वदेशी टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से लिथियम-आयन सेल बनाती है.

महेश के मुताबिक GODI इंडिया पहली कंपनी है जिसे ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) से अपनी 21700 सिलिंड्रिकल NMC811 लिथियम-आयन सेल के लिए सर्टिफिकेशन प्राप्त है. इस सर्टिफिकेशन के लिए टेस्टिंग TUV ने की थी, जो एक बड़ी सर्टिफिकेशन कंपनी है. 

godi india cell

GODI इंडिया पहली कंपनी है जिसे ब्यूरो ऑफ़ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) से अपनी 21700 सिलिंड्रिकल NMC811 लिथियम-आयन सेल के लिए सर्टिफिकेशन प्राप्त है

"सेल मैन्युफैक्चरिंग के लिए कैथोड, एनोड, बाइंडर और सेपरेटर जे जुड़ी कई टेक्नोलॉजी उपलब्ध हैं. इन साइंटिस्ट्स ने ऐसी हर चीज की पढ़ाई की हुई है और इनपर काम किया हुआ है", महेश बताते हैं. 

GODI के सेल्स भारतीय परिस्थितियों में फिट बैठते हैं. महेश बताते हैं कि बैटरीज को भारत के हिसाब से ऑप्टिमाइज़ करने में 6 महीने लगे. 

बताते चलें कि इंडिया में लिथियम आयन बैटरी बनाने के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध नहीं हैं. देश में लिथियम की कमी है और इसलिए वाहनों की बतीरी के लिए इंडिया चीन पर निर्भर रहता आया है.

बैटरी बनाने के पहले कोर टीम ने भारतीय परिस्थितियों का मुआयना किया. जैसे यहां की सड़कें कैसी हैं, यहां लोग वाहनों का इस्तेमाल कैसे करते हैं (उदाहरण के लिए टू सीटर पर भी तीन लोग बैठे देखे जाते हैं या फिर टू व्हीलर पर ही अक्सर भारी चीजें लादकर ले जाते हैं). इसके साथ ही इंडिया के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग मौसम और तापमान का भी ध्यान रखा गया. महेश समझाते हैं, "देखिए अगर वाहन पर भारी सामान लदा हो या वो स्पीड ब्रेकर्स और गड्ढों से होता हुआ जा रहा हो, तो बैटरी ऐसी होनी चाहिए कि इसे बर्दाश्त कर ले जाए."

इसके साथ महेश के लिए ईको फ्रेंडली सेल बनाना भी ज़रूरी था. 

"हम नहीं चाहते कि आने वाले दिनों में हम प्रदूषण में इजाफा करें. इसलिए हमने पानी की मदद से टॉक्सिक केमिकल्स का खात्मा किया और प्रोसेस को और बेहतर बनाते गए. हमारा लक्ष्य है सबसे सस्टेनेबल और रीसायकल होने वाले सेल बनाना", महेश कहते हैं. 

उनके मुताबिक, अगर कोई बैटरी इंडिया की सड़कों पर काम कर गई तो वो कहीं भी काम कर जाएगी.  

GODI के सेल "100% सस्टेनेबल और रीसायकलेबल" हैं. इस स्टार्टअप ने एमेज़ॉन और ग्लोबल ऑप्टिमिज्म द्वारा 2019 में को-फाउंडेड क्लाइमेट प्लेज पर भी दस्तख़त किए हैं. इसपर दस्तख़त करने वाली कंपनियों का लक्ष्य है 2040 तक नेट जीरो कार्बन एमिशन वाली कंपनियां बनना. 

godi india cell

महेश ने पाया कि रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में इन्वेस्टमेंट बहुत है और इलेक्ट्रिक वाहनों की मैन्युफैक्चरिंग में भी पहले से लोग मौजूद हैं. मगर सेल (cell)  या बैटरी बनाने पर कोई काम नहीं कर रहा है. 

GODI इंडिया के मुताबिक उनके पास कुल तीन केटेगरी मटीरियल(10) प्रोसेसेस(10) और डिज़ाइन(पांच) मिलाकर 25 पेटेंट हैं. कुछ पेंडिंग हैं या रिव्यू प्रक्रिया के अधीन हैं. ये पेटेंटेड टेक्नोलॉजी सेल्स की अलग अलग लेयर जैसे कैथोड, एनोड, ऐडिटिव, इलेक्ट्रोलाइट, सॉल्वेंट और सेपरेटर कवर करती हैं.  

स्टार्टअप का लक्ष्य है कि लिथियम आयन बैटरी बनाने की टेक्नोलॉजी का नए सिरे से आविष्कार किया जा सके. 

महेश के मुताबिक, टीम की कोशिश है कि इंडस्ट्रियल अवन्स (भट्टियां) की भूमिका को ख़त्म किया जा सके जिससे कम एरिया में अधिक प्रोडक्शन हो सके. 

साथ ही, GODI इंडिया कुछ इक्विपमेंट बनाने वाली कंपनियों के साथ भी ऐसा एपरेटस बनाने की ओर काम कर रहा है जिससे वे खुद ही सेल्स बना सकें.

चुनौतियां 

महेश के मुताबिक, जनवरी 2020 में स्थापना के बाद कंपनी ने ग्रोथ की ओर एक लंबी चढ़ाई चढ़ी है. उन्होंने सप्लाई चेन के मामले में एक बड़ी चुनौती का सामना किया, खासकर शुरुआती दिनों में. उदाहरण के लिए, वो कुछ ऐसे ज़रूरी सामान जुटाने में असफल रहे थे जिनकी ज़रूरत इंडिया में रिसर्च करने के लिए थी. 

स्टार्टअप के लिए सबसे ज़रूरी था भरोसा पैदा करना. अपने साइंटिस्ट्स की जानकारी और अनुभव के चलते वो ऐसा कर सका और कुछ कंपनियों को अपने साथ साझेदारी करने और मटीरियल सप्लाई करने के लिए राज़ी कर सका. 

GODI इंडिया फ़िलहाल दुनियाभर के 60 सप्लायर्स के साथ काम कर रहा है जिनमें जर्मनी, जापान, कोरिया और चीन शामिल हैं. 

godi hyderabad facility

हैदराबाद फैसिलिटी.

स्थापना के तीन महीने बाद ही GODI को दो बार अपने काम पर लॉकडाउन के चलते ब्रेक लगाना पड़ा. चूंकि R&D के लिए साइंटिस्ट्स का फैसिलिटी में मौजूद रहना आवश्यक था, काम को आगे बढ़ाना मुश्किल हो गया था. 

महेश बताते हैं कि उन्होंने हैदराबाद प्राधिकरण से ख़ास इजाज़त लेकर फैसिलिटी में जाने की व्यवस्था शुरू की. 

फंडिंग और कारोबार 

महेश बताते हैं कि उनके स्टार्टअप को 20 करोड़ डॉलर के ऑर्डर इंडिया, यूरोप और US के इलेक्ट्रिक वाहनों की कंपनियों से मिल चुके हैं. और लगभग 5 करोड़ डॉलर के ऑर्डर स्टोरेज सिस्टम से. 

कंपनी के मुताबिक, उन्होंने इन ऑर्डर्स की शिपिंग भी शुरू कर दी है. महेश कहते हैं, "ये लोग हमारे सेल इस्तेमाल करेंगे और चीन, साउथ कोरिया और जापान से आए सेल्स से उनकी तुलना करेंगे.

महेश अपने खरीददारों के नाम ज़ाहिर न करते हुए कहते हैं कि देश के लगभग सभी इलेक्ट्रिक वाहन बनाने वालों ने या तो उन्हें ऑर्डर दिया है या ऑर्डर देने में रुचि ज़ाहिर की है. 

साइंटिस्ट्स का जोर फ़िलहाल इस बात पर है कि कैसे सेल्स के दाम घटाए जा सकें जिससे इन वाहनों के आधे दामों में गिरावट आ जाए. 

लोकल लिथियम-आयन सेल्स की मैन्युफैक्चरिंग भारत की EV इंडस्ट्री की रीढ़ है. हाल ही में ओला इलेक्ट्रिक, रिलायंस न्यू एनर्जी और राजेश एक्सपोर्ट्स ने सरकार के साथ इकरारनामा साइन किया है. जिसके मुताबिक सरकार ने इन्हें 18,100 करोड़ रुपयों की मदद दी है जिससे ये देश में लोकल सेल्स बना सकें.

इस स्टार्टअप के फ़िलहाल सबसे बड़े प्रतिद्वंदी है ओला इलेक्ट्रिक, जो 2023 से अपने सेल्स का प्रोडक्शन शुरू करेंगे, बेंगलुरु की कंपनी लॉग9, जो 2025  तक बड़े स्तर पर इसका प्रोडक्शन करेगी और चेन्नई की मुनोथ इंडस्ट्रीज जो कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए लिथियम-आयन सेल्स बनाएगी.

भविष्य की बात 

GODI इंडिया एक बूटस्ट्रैप्ड कंपनी के तौर पर शुरू हुई और लगभग एक साथ पहले एक सीड फंडिंग ली जिसकी राशि को गुप्त रखा गया. इस साल जुलाई में भी 'ब्लू अश्व कैपिटल' से फंडिंग की घोषणा की गई जिसका अमाउंट भी बताया नहीं गया. 

इस स्टार्टअप ने CSIR-CECRI (सेंट्रल इलेक्ट्रिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट) के साथ एक अग्रीमेंट किया जिसके तहत बड़े स्तर पर एडवांस्ड लिथियम-आयन सेल बनाने की घोषणा की. पार्टनरशिप के तहत ये मैन्युफैक्चरिंग चेन्नई में होगी. 

स्टार्टअप ने ऐसी घोषणा की है कि उनके पास 300 करोड़ डॉलर की फंडिंग है, अगले पांच साल तक देश भर गीगाफैक्ट्रीज लगाने के लिए. GODI सबसे पहली फैक्ट्री अगले साल लगाएगी और जैसे जैसे एक्सपैंड होती जाएगी, वैसे वैसे किस्तों में फंडिंग उठाएगी.

godi csir

इस स्टार्टअप ने CSIR-CECRI (सेंट्रल इलेक्ट्रिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट) के साथ एक अग्रीमेंट किया जिसके तहत बड़े स्तर पर एडवांस्ड लिथियम-आयन सेल बनाने की घोषणा की

प्रणीता, पुष्पेंद्र, शशिधराचारी और उनके सभी सहकर्मी इस प्लानिंग को लेकर उत्साहित हैं. 

पुष्पेंद्र कहते हैं, "मुझे लगता है भविष्य सुनहरा है. सरकार इस सेक्टर में काफी पुश दे रही है. ये सेक्टर यकीनन बहुत बड़ा बनने वाला है."


Edited by Prateeksha Pandey