भारत के पहले स्वदेशी बैंक ‘सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया’ के 111 साल
20 रुपए तंख्वाह वाले एक मिडिल क्लास बैंक क्लर्क सोराबजी पोचखानावाला ने कैसे बनाया देश का पहला स्वदेशी बैंक.
आज से 111 साल पहले आज ही के दिन यानी 21 दिसंबर, 1911 में स्थापना हुई थी भारत के पहले स्वदेशी बैंक की. एक बैंक हिंदुस्तानियों का, हिंदुस्तानियों के द्वारा, हिंदुस्तानियों के लिए. इस बैंक की शुरुआत करने वाले थे एक पारसी व्यक्ति सोराबजी पोचखानावाला. यह इस देश का पहला बैंक था, जिसका पूर्ण स्वामित्व और प्रबंधन भारतीयों के हाथों में था.
इस बैंक के बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है और उतनी ही दिलचस्प है सोराबजी पोचखानावाला की कहानी.
20 रुपए तंख्वाह वाला बैंक का क्लर्क
सोराबजी पोचखानवाला का जन्म 9 अगस्त, 1881 को बंबई के एक पारसी परिवार में हुआ. तब भारत पर ब्रितानियों की हुकूमत थी. पिता नासरवनजी पोचखानवाला की तब मृत्यु हो गई, जब सोराबजी सिर्फ छह साल के थे. सबसे बड़े भाई हीरजी भाई अंग्रेजों के बैंक चार्टर्ड बैंक ऑफ इंडिया में मामूली क्लर्क थे.
1897 में 16 साल की उम्र में बम्बई विश्वविद्यालय से मैट्रिक पास किया. चूंकि घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी तो आगे पढ़ने का इरादा छोड़ वो 20 रुपए की तंख्वाह पर चार्डर्ट बैंक में ही क्लर्क लग गए.
नौकरी करते हुए उन्हें बैंकिंग सिस्टम की बारीकियां समझने का मौका मिला. फिर क्या था, उन्होंने एक-एक करके बैंकिंग से जुड़ी परीक्षाएं देना शुरू किया और अच्छे नंबरों से पास होते गए. व्यावसायिक बैंकर बनने के लिए उन्होंने सहायक परीक्षा भी पास कर ली.
उन्होंने लन्दन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स का सी.ए.आई.बी. सर्टिफिकेट पाने के लिए भी परीक्षा दी और यह सर्टिफिकेट पाने वाले पहले भारतीय बन गए. बाद में इस इंस्टीट्यूट की शाखा भारत में भी खुली, जो इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बैंकर्स के नाम से जानी जाती है.
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का हिंदुस्तानी अकाउंटेंट
सोराबजी ने 7 साल उस बैंक में काम किया. उसी समय शुरू हुआ था स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, जो ब्रिटिश पैसे और सहयोग से कुछ भारतीय व्यापारियों के द्वारा शुरू किया गया था. उन्हें बैंक ऑफ इंडिया में अकाउंटेंट की नौकरी मिल गई और इस बार तंख्वाह थी 200 रुपए.
इस बैंक में काम करते हुए सोराबजी को पहली बार अंग्रेजों और हिंदुस्तानियों के बीच का फर्क समझ में आया. उन्हें तो अपनी 200 रुपए की तंख्वाह ही बहुत बड़ी लगती थी, लेकिन फिर उन्हें पता चला कि उनसे निचले पदों पर काम करने वाले अंग्रेज अफसरों की तंख्वाह हजारों रुपए थी. ज्यादातर मेहनत का काम हिंदुस्तानियों से करवाया जाता और प्रमोशन और सैलरी हाइक मिलती गोरे अंग्रेजों को. इतना ही नहीं, जब लोने देने की बात आती तो भी गोरों को ही वरीयता मिलती थी.
अपने ही देश में हाशिए पर भारतीय
सोराबजी को दिखने लगा था कि यह पूरा सिस्टम भारतीयों के प्रति किस कदर पूर्वाग्रह से ग्रस्त है. उनके दिमाग में एक ऐसा बैंक खड़ा करने का विचार आया, जो पूरी तरह भारतीयों के नियंत्रण में हो. जहां सिर्फ भारतीयों को नौकरी मिले और उन्हें ही प्रमुखता दी जाए.
सोराबजी ने इस सपने को साकार करने के लिए लोगों से संपर्क करना शुरू किया. बंबई के एक नामी व्यापारी कल्याणजी वर्धमान जेतसी आर्थिक मदद करने को तैयार हो गए. सोराबजी ने बंबई की कई नामी लोगों से मदद की और सबने मदद की थी.
दीपक पारेख, जिन्होंने बाद में HDFC बैंक की स्थापना की, उनके दादा ठाकुरदास पारेख भी सोराबजी के साथ जुड़े हुए थे. उनके बैंक में उन्होंने चालू खाता और बिल अधीक्षक के रूप में काम किया था. हिंदू, मुसलमान, पारसी सभी धर्मों के लोग इस बैंक का हिस्सा थे. शर्त सिर्फ एक ही थी कि सभी हिंदुस्तानी ही होने चाहिए.
50 लाख रुपए से हुई सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की शुरुआत
21 दिसम्बर, 1911 को 50 लाख रुपये की शुरुआती पूंजी से सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना हुई. शहर के नामी-गिरामी लोग इस बैंक के निदेशक मंडल में शामिल थे. उस जमाने के प्रख्यात वकील फिरोजशाह मेहता को इस बैंक के निदेशक मंडल का अध्यक्ष बनाया गया. शुरु में 50-50 रुपये के 40000 शेयर जारी किए गए. पहले हफ्ते में ही 70 खाते खुले, जिनमें डेढ़ लाख रुपये जमा हुए.
शुरू-शुरू में सोराबजी के सामने भी कई तरह की चुनौतियां और आर्थिक संकट रहे, लेकिन उन्होंने सब संकटों का सामना किया. तकरीबन उसी समय जमशेदजी टाटा ने भी एक बैंक बनाया था. 1917 में बने इस बैंक का नाम था टाटा इंडस्ट्रियल बैंक. लेकिन जब 1920 में मंदी आई तो ये बैंक भी उसकी चपेट में आ गया. 1923 में सोराबजी ने टाटा इंडस्ट्रियल बैंक को बचाने के लिए उसे सेंट्रल बैंक के साथ जोड़ दिया ताकि एक हिंदुस्तानी के बनाए दूसरे बैंक को डूबने से बजाया जा सके.
वो आखिरी चुनौती थी, जिसका इस बैंक ने सामना किया था. उसके बाद न सोराबजी और न सेंट्रल बैंक ने कभी पीछे मुड़कर देखा. वे खुद 9 साल तक उस बैंक के मैनेजर रहे. उसके बाद 1920 में प्रबन्ध निदेशक बन गए.
भारतीय बैंकिंग के इतिहास में पहली बार
इस देश के बैंकिंग के इतिहास में बहुत सारी चीजें पहली बार करने का श्रेय सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया को जाता है. जैसे सेंट्रल बैंक भारत में सुरक्षित डिपॉजिट वॉल्ट शुरू करने वाला पहला बैंक था. इसी बैंक ने पहली बार सेविंग अकाउंट से नकद निकासी की प्रक्रिया भी शुरू की.
सेंट्रल बैंक महिलाओं को नौकरी पर रखने और महिला कर्मचारियों द्वारा महिला ग्राहकों को अपना अकाउंट खुलवाने और बैंकिंग सेवाओं का लाभ उठाने के लिए प्रेरित करने वाला भी देश का पहला बैंक था.
1929 में सेंट्रल बैंक ने ग्राहक निवेश योजना शुरू की. यदि कोई व्यक्ति अपने अकाउंट में न्यूनतम 10 रुपये रखता है तो बैंक की तरफ से उसे आजीवन मुफ्त जीवन बीमा दिया गया. 1981 में क्रेडिट कार्ड सर्विस शुरू करने वाला भी सेंट्रल बैंक देश का पहला बैंक था.
बैंकों का राष्ट्रीयकरण
1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण होने के बाद सेंट्रल बैंक भी सरकारी बैंक हो गया. जिन 14 बैंकों का तब राष्ट्रीयकरण किया गया था, उनमें सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, देना बैंक, यूको बैंक, केनरा बैंक, यूनाइटेड बैंक, सिंडिकेट बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, इलाहाबाद बैंक, इंडियन बैंक, इंडियन ओवरसीज बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र शामिल हैं.
Edited by Manisha Pandey