Women's Entrepreneurship Day: 1.57 करोड़ आंत्रप्रेन्योर महिलाओं ने पैदा की हैं 2.7 करोड़ नई नौकरियां
पिछले दस सालों में महिला आंत्रप्रेन्योर्स की संख्या में 32 फीसदी की बढ़त, 20 फीसदी बिजनेस की कमान औरतों के हाथों में.
वह समय गया, जब महिलाओं की दुनिया रसोई और घर की चारदीवारी तक सीमित होती थी. महिलाओं के लिए खुले शिक्षा के दरवाजों ने उनके लिए उन्नति की और भी राहें खोली हैं. अब वह न सिर्फ अपने घरों से निकलकर नौकरी कर रही हैं, बल्कि नौकरी दे भी रही हैं. बेन एंड कंपनी (Bain&Co.) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1.57 करोड़ आंत्रप्रेन्योर महिलाएं हैं और वो अपना बिजनेस खड़ा करने के साथ-साथ दूसरे लोगों के लिए भी रोजगार पैदा कर रही हैं.
मिनिस्ट्री ऑफ स्टैटिसटिक्स एंड प्रोग्राफ इंप्लीमेंटेशन (Ministry of Statistics and Programme Implementation) के छठे इकोनॉमिक सेंसस डेटा के मुताबिक भारत में कुल आंत्रप्रेन्योर्स में महिलाओं की संख्या 13.76 फीसदी है. भारत में कुल 58.5 मिलियन यानी 5.85 करोड़ आंत्रप्रेन्योर्स हैं, जिसमें से 80.5 लाख महिला आंत्रप्रेन्योर्स हैं.
हालांकि वैश्विक आंकड़ों को देखें और बिजनेस, स्टार्टअप और आंत्रप्रेन्योरशिप में महिलाओं की हिस्सेदारी की दुनिया के विकसित देशों से तुलना करें तो अपेक्षाकृत भारत में महिलाओं की स्थिति कमजोर नजर आती है. जैसे ग्लोबल एंटरप्रेन्योरशिप एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (Global Entrepreneurship and Development Institute) के अनुसार, भारत महिला उद्यमिता सूचकांक में 20 फीसदी नीचे है. दुनिया के विकसित देशों जैसे अमेरिका और यूके के मुकाबले भारत में महिला आंत्रप्रेन्योर्स की संख्या बहुत कम है. यहां तक कि ब्राजील, रूस और नाइजीरिया जैसे विकासशील देशों के मुकाबले भी भारत पीछे है.
लेकिन भारत में महिलाओं की पिछले दो दशकों की यात्रा को देखें तो आंत्रप्रेन्योरशिप में उनकी हिस्सेदारी का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है. और भारत सरकार इसे बढ़ावा देने के लिए अपनी तरफ से लगातार कोशिश भी कर रही है. नीति आयोग का विमेन आंत्रप्रेन्योरशिप प्रोग्राम, स्त्री शक्ति योजना, अन्नपूर्णा योजना, उद्योगिनी योजना, मु्द्रा लोन, महिला उद्यम निधि योजना, सेंट कल्याणी स्कीम आदि भारत सरकार की तरफ से महिला उद्मिता को बढ़ावा देने के लिए चलाई जा रही कुछ महत्वपूर्ण स्कीम्स हैं, जिसके नतीजे भी सामने हैं.
बाहरी की दुनिया के उत्पादक श्रम में स्त्रियों की हिस्सेदारी ने उन्नति की राहें खोली हैं. और यह उन्नति सिर्फ उन महिलाओं की निजी उपलब्धि भर नहीं है. अपने साथ-साथ वो देश के आर्थिक विकास और जीडीपी में भी अपना योगदान कर रही हैं.
भारत में आंत्रप्रेन्योरशिप के मामले में महिलाओं की हिस्सेदारी से जुड़े इन कुछ तथ्यों पर गौर करें –
1- बेन एंड कंपनी (Bain&Co.) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1.57 करोड़ एंटरप्राइज पर महिलाओं का मालिकाना हक है.
2- देश में सक्रिय कुल एंटरप्राइज के 22 फीसदी की बागडोर इस वक्त महिलाओं के हाथ में है.
3- बेन एंड कंपनी (Bain&Co.) की रिपोर्ट के मुताबिक महिला आंत्रप्रेन्योर भारत में 2.7 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया करा रही हैं. एक अनुमान के मुताबिक महिलाएं 2030 तक 15 से 17 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया करा रही होंगी.
4- भारत में 20.37 फीसदी MSME की मालिक महिलाएं हैं, जो कुल वर्कफोर्स का 23.3 फीसदी है.
5- विनिर्माण और कृषि क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं का प्रतिशत पुरुषों की तुलना में अधिक है.
6- पिछले वित्त वर्ष में महिलाओं के बीच साक्षरता दर में 8.8 फीसदी का इजाफा हुआ है.
7- भारत में 432 मिलियन यानी 43.2 करोड़ कामकाजी महिलाएं हैं. ये वे महिलाएं हैं, जो शिक्षित हैं और घरों से बाहर निकलकर उत्पादन में हिस्सेदारी कर रही हैं और देश के जीडीपी को बढ़ाने में अपना योगदान दे रही हैं.
8- बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं द्वारा स्थापित या सह-स्थापित स्टार्टअप्स पांच साल के भीतर 10 फीसदी से ज्यादा संचयी राजस्व (cumulative revenue) पैदा कर रहे हैं.
9- बेन एंड कंपनी (Bain&Co.) की एक सर्वे रिपोर्ट कहती है कि समान मौके, सुविधाएं, संसाधन और सपोर्ट सिस्टम दिए जाने पर महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यम भी पुरुषों के नेतृत्व वाले उद्यमों जितना ही सफल होते हैं.
महिलाओं के आंत्रप्रेन्योर बनने की राह में चुनौतियां
मैकिन्से ग्लोबल की रिपोर्ट कहती है कि वर्कफोर्स में महिलाओं की हिस्सेदारी को बढ़ावा देकर भारत संभावित रूप से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 700 अरब अमेरिकी डॉलर का इजाफा कर सकता है.
बात ये है कि महिलाओं की क्षमता और काबिलियत पुरुषों से किसी भी मामले में कम नहीं है, लेकिन संकट ये है कि उनके पास पुरुषों के बराबर संसाधन और मौके नहीं हैं. हाल ही में भारतीय युवा शक्ति ट्रस्ट की एक स्टडी रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि भारत में 85 फीसदी महिला आंत्रप्रेन्योर्स को अपने बिजनेस के लिए सरकारी बैंकों से लोन लेने में अड़चनों का सामना करना पड़ता है. उनके मुकाबले पुरुष उद्यमियों को ज्यादा आसानी से लोन मिल जाता है. बैंक और वित्तीय संस्थाएं उन पर महिलाओं के मुकाबले आसानी से भरोसा करती हैं.
पारंपरिक रूप से संपत्ति में हिस्सा न मिलने, पैतृक संपत्ति का उत्तराधिकारी न होने और 70 फीसदी से ज्यादा संपदा पर पुरुषों का मालिकाना हक होने के कारण समाज में आर्थिक रूप से महिलाओं की स्थिति पहले से कमजोर है. सभी वित्तीय और संचालक संस्थाओं में पुरुषों का दबदबा होने के कारण महिलाओं को वहां भी अपनी जगह बनाने के लिए चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
दरअसल महिला उद्मिता को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है कि सरकार इस ओर पहलकदमी करे, महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई जाए, उनके लिए विभिन्न स्तरों पर लिए लाने वाले अप्रूवल्स और बिजनेस लोन प्राप्त करने की प्रक्रिया को आसान बनाए जाए और ट्रेनिंग प्रोग्राम आयोजित किए जाएं.
सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है, लेकिन इसे और प्रोएक्टिव तरीके से करने की जरूरत है क्योंकि महिलाओं की आर्थिक उन्नति का अर्थ है देश का आर्थिक विकास. अपने विकास के साथ-साथ महिलाएं देश की जीडीपी के विकास में भी अपना योगदान देंगी.
Edited by Manisha Pandey