कहानी आज़ाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री की...
स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और आजाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री.
1946 की बात है. आजादी से ठीक एक बरस पहले की. भारत विभाजन की मांग को लेकर जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन की घोषणा की. अंग्रेजों के साथ विभाजन के मुद्दे पर समझौता हो गया था. खबर जंगल की आग की तरह फैली कि भारत दो मुल्कों में बंटने जा रहा है. हिंदुओं का देश हिंदुस्तान और मुसलमानों का पाकिस्तान. उसी के बाद बंगाल के नोआखाली में (जो अब बांग्लादेश में है) में भयानक दंगे भड़क गए. उन दंगों के दौरान गांधीजी की सभी तस्वीरों में बगल में साड़ी पहने, चश्मा लगाए एक गंभीर मुखमुद्रा वाली औसत कद की महिला दिखाई देती है.
वह महिला सुचेता कृपलानी थीं. स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और आजाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री. गांधी के रास्ते पर चलने वाली और फिर एक दिन गांधी, नेहरू और कांग्रेस के खिलाफ ही बगावत करने वाली सुचेता कृपलानी.
आज सुचेता कृपालानी की पुण्यतिथि है.
सुचेता कृपलानी की संक्षिप्त जीवनी
सुचेता कृपलानी का जन्म का नाम सुचेता मजूमदार है. 25 जून, 1908 को हरियाणा के अंबाला शहर में रह रहे एक संपन्न बंगाली ब्राह्मण परिवार में उनका जन्म हुआ. पिता सरकारी डॉक्टर थे. हर साल दो साल में उनका तबादला होता रहता. सो उनकी शुरुआती शिक्षा कई शहरों में हुई. कॉलेज की पढ़ाई उन्होंने दिल्ली से की. सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में ग्रेजुएट हुईं.
यह आजादी की लड़ाई का वक्त था. चारों ओर जोश और उम्मीद का आलम था. ऐसे में सुचेता उस प्रवाह में बहने से खुद को कैसे रोक सकती थीं. दिल्ली में पढ़ाई के दौरान भी कॉलेज से अकसर वो किसी राजनीतिक सभा-सम्मेलन में शिरकत करने पहुंच जातीं. कभी गांधी, कभी, नेहरू, कभी पटेल, कोई न कोई राजनीतिक हलचल शहर में होती ही रहती थी.
वो पूरा मन बना चुकी थीं कि कॉलेज के बाद पूरी तरह आजादी की लड़ाई में शामिल हो जाएंगी, लेकिन तभी उनके घर में एक बड़ी ट्रेजेडी हो गई. एक के बाद एक घर में पिता और बहन दोनों का इंतकाल हो गया.
घर की जिम्मेदारी अचानक सुचेता के कंधों पर आ पड़ी. परिवार चलाने के लिए उन्होंने आंदोलन का ख्याल छोड़ बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में नौकरी कर ली. वो बीएचयू में संवैधानिक इतिहास की लेक्चरर हो गईं.
जेबी कृपलानी से विवाह और आंदोलन में हिस्सेदारी
1936 में उन्होंने कांग्रेस के प्रसिद्ध नेता जेबी कृपलानी से विवाह कर लिया. सुचेता के घरवाले तो इस शादी के खिलाफ थे ही, खुद महात्मा गांधी भी इस विवाह के पक्ष में नहीं थे. कृपलानी सुचेता से उम्र में 20 साल बड़े थे. गांधी को डर था कि इस विवाह से कृपलानी का मन अपने काम से भटक सकता है. वो गांधी का दाहिना हाथ हुआ करते थे.
लेकिन गांधी का डर निराधार साबित हुआ. कृपलानी ने तो स्वतंत्रता आंदोलन का साथ नहीं छोड़ा, उल्टे सुचेता भी पूरी तरह इस काम में लग गईं. 1940 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महिला शाखा ‘अखिल भारतीय महिला कांग्रेस’ की स्थापना की. 1942 में गांधी के साथ भारत छोड़ो आंदोलन में लगी रहीं और जेल भी गईं. 1946 में उन्हें संविधान सभा का सदस्य चुना गया. 1949 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया.
कृपलानी और नेहरू के बीच बढ़ती दूरियां
आजादी के बाद पहली सरकार बनी और उस सरकार में प्रधानमंत्री बने जवाहरलाल नेहरू. लेकिन अब तक जेबी कृपलानी और नेहरू के बीच कुछ-कुछ राजनीतिक मतभेद होने लगे थे. इन मतभेदों के बढ़ने पर कृपालानी ने कांग्रेस छोड़ दिया और अपनी खुद की पार्टी बना ली. नाम रखा- ‘किसान मजदूर प्रजा पार्टी.’
सुचेता भी अपने पति के साथ कांग्रेस छोड़ नई पार्टी में शामिल हो गईं. 1952 में किसान मजदूर पार्टी की ओर से नई दिल्ली से चुनाव भी लड़ा, लेकिन वहां भी उनके मतभेद होने लगे, जिसके चलते उन्होंने कांग्रेस वापसी का फैसला किया. 1957 में नई दिल्ली सीट से दोबारा कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव में खड़ी हुईं और जीतीं भी. उन्हें राज्यमंत्री बनाया गया. 1958 से लेकर 1960 तक वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महासचिव रही.
1962 में उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा और कानपुर से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचीं. उन्हें श्रम, सामुदायिक विकास और उद्योग विभाग में कैबिनेट मंत्री का पद मिला.
उत्तर प्रदेश और देश की पहली महिला मुख्यमंत्री
यह वही समय था, जब कांग्रेस के भीतर भी बगावत और विद्रोह के सुर उभर रहे थे. कांग्रेस के लोग ही कांग्रेस को चुनौती देने लगे थे. यूपी में नेहरू के खिलाफ बगावत कर रहे लोगों में सबसे बड़ा नाम था चंद्रभानु गुप्ता का. राजनीतिक स्थितियां तब कुछ ऐसी बनीं कि नेहरू ने जबर्दस्ती चंद्रभानु गुप्ता का इस्तीफा ले लिया.
इस इस्तीफे के बाद कांग्रेस में साफतौर पर दो धड़े बन गए. एक धड़ा नेहरू के साथ था, जिसका नेतृत्व कमलापति त्रिपाठी कर रहे थे और दूसरा नेहरू के खिलाफ था, जिसकी कमान चंद्रभानु गुप्ता के हाथों में थी. गुप्ता का जलवा और उत्तर प्रदेश के अवाम उनकी पैठ बहुत गहरी थी.
चंद्रभानु गुप्ता के इस्तीफे के बाद तलाश थी प्रदेश के नए मुख्यमंत्री की, जो किसी भी हाल में कमलापति त्रिपाठी यानी नेहरू के गुट से नहीं हो सकता था. गुप्ता बहुत तत्परता से किसी नए चेहरे की तलाश में थे.
उसी समय जेबी कृपलानी बीमार पड़े और उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया. चंद्रभानु उन्हें देखने अस्पताल पहुंचे और अपनी परेशानी उनसे साझा की. कृपलानी ने अपने बगल में बैठी पत्नी सुचेता की ओर इशारा करके कहा कि इसे बनाइए प्रदेश का नया मुख्यमंत्री.
चंद्रभानु गुप्ता को जवाब मिल गया था. हालांकि केंद्र की कांग्रेस सरकार और नेहरू, दोनों ही इस फैसले से खुश नहीं थे. लेकिन प्रदेश को मुख्यमंत्री पद के लिए नया चेहरा मिल गया था.
इस तरह 1963 में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री और आजाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. उन्होंने 1963 से लेकर 1967 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला.
सुचेता कृपलानी की आत्मकथा- ‘एन अनफिनिश्ड ऑटोबायोग्राफी
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद राजनीति में वह ज्यादा लंबे समय तक नहीं रहीं. 1971 में उन्होंने सियासत से संन्यास ले लिया. उनकी कोई संतान नहीं थी. उन्होंने अपनी वसीयत में अपनी सारी धन-संपदा लोक कल्याण समिति को दे दी थी. राजनीति छोड़ने के बाद उन्होंने अपनी आत्मकथा लिखी, जो तीन भागों में प्रकाशित हुई. आत्मकथा का नाम है- ‘एन अनफिनिश्ड ऑटोबायोग्राफी.’ 1 दिसंबर, 1974 को महज 66 साल की उम्र में उनका हार्ट अटैक से निधन हो गया.
Edited by Manisha Pandey