सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले के बाद सेक्स वर्कर्स के हालात बदल जाएंगे?
सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्क को एक पेशा माना है, मगर...
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Monday June 06, 2022 , 7 min Read
पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट का एक ऐतिहासिक फैसला आया. जिसमें सेक्स वर्क, जिसे आम भाषा में 'वेश्यावृत्ति' कहा जाता है, को एक पेशा माना और पुलिस को ये निर्देश दिया कि सेक्स वर्कर्स के साथ सम्मानपूर्वक बर्ताव किया जाए. इसके साथ सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्कर्स के हक़ में दिशानिर्देश जारी किए. जिसमें कुल 6 पॉइंट्स थे.
कोर्ट ने प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया को भी ये निर्देश दिया कि देश के सभी मीडिया संस्थानों को ये सख्त निर्देश दिया जाए कि किसी भी सेक्स वर्कर की पहचान ज़ाहिर करना गलत होगा. अगर रेड या रेस्क्यू की कवरेज के दौरान उनके फोटो या वीडियो दिखाए गए तो ये कानूनन अपराध होगा.
इस फैसले के बाद, 'हर स्टोरी' ने कुछ एक्टिविस्ट्स से बात की. और ये समझना चाहा कि सेक्स वर्कर्स के लिए इस फैसले के क्या मायने होंगे. क्या इस फैसले से सचमुच उनके हालात बदल पाएंगे या फिर आज भी बेहतरी की रोशनी बहुत दूर है?
रुचिरा गुप्ता 'अपने आप वीमेन वर्ल्डवाइड' की संस्थापक-अध्यक्ष हैं. और लगभग 30 साल से ये औरतों की खरीद-फ़रोख्त को रोकने की दिशा में काम कर रही हैं. बिहार, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के कई आदिवासी इलाकों में रुचिरा ने पुश्तैनी सेक्स वर्क को ख़तम करने की दिशा में काम किया. साथ ही वैश्विक स्तर पर एंटी-ट्रैफिकिंग कानूनों और नियमों को लेकर काम किया.
रुचिरा कहती हैं:
"19 मई को आया कोर्ट का फैसला जो पुलिस के लिए निर्देश लेकर आया है वो स्वागत योग्य है. लेकिन मुझे लगता है कोर्ट अगर औरतों की ख़रीद-फ़रोख्त को लेकर अगर साफ़-साफ़ बात की होती तो बेहतर होता."
रुचिरा का मानना है कि सेक्स वर्कर्स को सिर्फ पुलिस नहीं, उन बिचौलियों से भी प्रोटेक्शन की ज़रुरत है जो उनके सेक्स वर्क से पैसे कमाते हैं. इसके अलावा उन कस्टमर्स से भी जो काम के वक़्त सेक्स वर्कर्स के साथ हिंसा करते हैं.
सेक्स वर्कर्स के हालात अच्छे नहीं हैं. दलाल और कोठे के मालिक अक्सर सेक्स वर्कर्स को पीटते हैं अगर रोज़ वे उतने पैसे कमाकर न दें, जितने का टारगेट उन्हें मिलता है. सेक्स खरीदने वाले सेक्स वर्कर्स को नोचते हैं, उनपर पेशाब कर देते हैं, उन्हें मुक्के मारते हैं या उनकी हत्या तक कर देते हैं.
रुचिरा बताती हैं:
"नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफॉर्मेशन के नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा की गई रीसर्च से पता चलता है कि महिलाओं के बीच सेक्स वर्कर्स में सबसे ज्यादा हत्याएं होती हैं. यानी औरतें, जो पहले से समाज का कमज़ोर हिस्सा हैं, में सेक्स वर्कर्स और भी कमज़ोर हैं."
रुचिरा एक और भी सवाल पूछती हैं: "छोटे बच्चों का क्या होगा? एक कोठे के अंदर पढ़ना और सोना बहुत मुश्किल होता है. असलियत ये है कि एक कोठे में कस्टमर के आने और जाने का कोई वक़्त नहीं होता. कई बार सेक्स वर्कर को खेलते या पढ़ते हुए बच्चे के सामने भी कस्टमर को संतुष्ट करना पड़ता है. कई बार कस्टमर सेक्स वर्कर्स की छोटी बच्चियों पर भी हाथ डालने लगते हैं और मां उन्हें बचाने के लिए कुछ नहीं कर पातीं.
बच्चों का क्या होगा?
रुचिरा बताती हैं कि जिन रेड लाइट इलाकों में 'अपने आप' संस्थान काम करता है, कई बार वहां सेक्स वर्कर्स और कोठे के मालिक अस्पतालों में छोड़े हुए बच्चे चुरा लेते हैं, उन्हें अपने बीच बड़ा करते हैं ताकि उनसे भी आने वाले समय में वेश्यावृत्ति करवाई जा सके.
"कोर्ट के फैसला से कन्फ्यूजन कम नहीं होता. क्योंकि ये पता नहीं लगता कि पुलिस क्या काम क्या है. कोर्ट को इस बात को दोहराना चाहिए था कि पुलिस को आज भी सेक्स के लिए औरतों और बच्चों की खरीद-बिक्री करने वालों पकड़ना है और उन्हें सज़ा दिलवानी है.
"मुझे डर है कि सुप्रीम कोर्ट ने सफाई से बात नहीं की. इसके चलते सेक्स ट्रैफिकिंग करने वालों को क्लीन चिट मिल जाने की आशंका बढ़ जाती है. कोर्ट ने ये तो बताया ही नहीं कि ट्रैफिकिंग करने वालों के साथ क्या करें और ये एक बड़ी गलती है. इससे एक ऐसी इंडस्ट्री को बढ़ावा मिलता है जो कमज़ोर बच्चों और महिलाओं को शिकार बनाती है. इस बात का खतरा है कि मुसीबत में पड़ी सेक्स वर्कर को पुलिस लौटा दे और उसे प्रोटेक्शन के साथ साथ न्याय मिलने की संभावना को ख़त्म कर दे.
सीमा वाघमोड़े कायाकल्प NGO की संस्थापक हैं. 1993 से ये NGO पुणे के रेड लाइट इलाकों में स्वास्थ्य और शिक्षा की सेवाएं देने का काम कर रहा है.
सीमा का मानना है कि उनके जीतेजी कोर्ट का ऐसा निर्देश आना बेहद ख़ुशी की बात है.
"मैंने देखा है कि सेक्स वर्कर किस तरह संघर्ष करती हैं. उन्हें कई बार अरेस्ट कर लिया जाता है. इस फैसले के बाद मैंने एक सेक्स वर्कर को कहते हुए सुना- अभी मुझे ज़िन्दगी में जेल नहीं जाना पड़ेगा, मैंने अपने बच्चों को बता दिया है कि उनकी माँ को अब पुलिस कभी नहीं ले जाएगी."
मगर इस फैसले के बाद सीमा को 'बदले' का भी डर है.
"पुलिस ज़ोर दूसरे तरीके खोजने की कोशिश करेगी. लेकिन कम से कम इतना तो है कि कोर्ट के इस ऑर्डर के उनके पास एक ढाल रहेगी. वो पलटकर कह सकती हैं कि आप मुझे अरेस्ट नहीं कर सकते. लेकिन हो सकता है कि अब पुलिस इन्हें टारगेट करने के दूसरे तरीके ढूंढेगी.
महिलाओं के ग्रुप 'संग्राम' की जनरल सेकेट्री मीना सरस्वती शेशु कहती हैं, " कोर्ट का ऑर्डर सभी के लिए स्वागत योग्य है- सेक्स वर्कर, सेक्स वर्कर्स के हक़ का सपोर्ट करने वाले, फेमिनिस्ट, और दुनियाभर में सेक्स वर्कर्स के राइट्स की बात करने वाले- सबके लिए ये एक बड़ा दिन था.
मुझे लगता है कि इस फैसले के बाद इंडिया और हमारे पड़ोस के देशों में सेक्स वर्कर्स के हालात में बदलाव आएगा. सेक्स वर्क को एक फॉर्मल पेशा मानने और उनके काम को महत्व मिलने की ओर पहला कदम है.
"मेरे बच्चों को मेरे साथ कोठे में रहने की ज़रुरत नहीं"
रुचिरा से हमें कुछ ऐसे सेक्स वर्कर्स की राय भी पता चली जो उन एरिया में काम करती हैं जहां 'अपने आप' संस्थान काम करता है.
कोलकाता के सोनागाची से केया कहती हैं:
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से ऐसा क्यों नहीं कहा कि सेक्स वर्कर्स को लोन, चाइल्ड सपोर्ट, घर और राशन कार्ड जैसी सुविधाएं मिलें? मेरा बेटा पढ़ पाया क्योंकि 'अपने आप' NGO ने उसे बोर्डिंग में भेजा. एक कोठे में जहां दिन रात शोर होता है, सोने का वक़्त नहीं मिलता और यौन शोषण का खतरा बना रहता है, वहां बच्चे कैसे पढ़ेंगे? और वो लोग जो बच्चों के साथ संबंध बनाना चाहते हैं, उन्हें लेकर कोर्ट ने कुछ क्यों नहीं कहा?
जीबी रोड में काम करने वाली प्रिया कहती हैं: बच्चों को इस माहौल से निकलने, उन्हें बचाए जाने की ज़रुरत है. उन्हें कोठे में नहीं रहना चाहिए. उन्हें ऐसी जगह होना चाहिए जहां वो पढ़ सकें, खेल सकें. कोर्ट के वकील कभी किसी कोठे में नहीं गए.
लालटेन बाज़ार में काम करने वाली फ़ातिमा कहती हैं: काश सुप्रीम कोर्ट ये कहता कि उन्हें पकड़कर जेल में डाल दिया जाए जो हमारा जिस्म बेचकर खुद पैसे खाते हैं- दलाल, कोठे के मालिक, उधार देने वाले, मकानमालिक और इन सभी के गुर्गे. अभी तो सिर्फ इतना ही होता है पुलिस हमारे ऊपर ITPA का सेक्शन 8 लागाकर हमें 'सोलिसिट' करने के लिए अरेस्ट कर लेती है. मैं चाहती हूं कि वे हमें न अरेस्ट करे, बल्कि उन्हें अरेस्ट करे तो ज़ुल्म करते हैं.
फातिमा चाहती हैं कि वो इन सब मसलों पर खुलकर बोलें. लेकिन मीडिया न उनका चेहरा दिखाएगा न उनका नाम. वो कहती हैं कि उन्हें ऐसा लगता है कि उन्हें चुप कराया गया है और उन्हें एक समुदाय के तौर पर नियंत्रित करने की कोशिश है.
(तेंजिन नोर्ज़ोम के इनपुट के साथ)
Edited by Prateeksha Pandey