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CEC की नियुक्ति प्रक्रिया पर SC ने उठाए सवाल, कहा- चीफ इलेक्शन कमिश्नर का सुदृढ़ चरित्र का होना ज़रूरी

CEC की नियुक्ति प्रक्रिया पर SC ने उठाए सवाल, कहा- चीफ इलेक्शन कमिश्नर का सुदृढ़ चरित्र का होना ज़रूरी

Wednesday November 23, 2022 , 5 min Read

चुनाव आयोग की स्वतंत्रता को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चिंता ज़ाहिर करते हुए मंगलवार को बड़ा बयान दिया है. सर्वोच्च न्यायालय ने देश के मुख्य चुनाव आयुक्त (chief election commissioner) और चुनाव आयुक्तों (election commissioner) की नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर सवाल उठाए.


जस्टिस केएम जोसफ की अगुवाई वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने आगे कहा कि सरकारों ने भारत के चुनाव आयोग (ECI) की स्वतंत्रता को 'पूरी तरह से नष्ट' कर दिया है. पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार शामिल हैं.


सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणियां उस अर्जी पर सुनवाई के दौरान कीं जिसमें चीफ इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति के लिए कॉलिजियम की तरह सिस्टम तैयार करने की मांग की गई है. केंद्र की ओर से इस मामले का पक्ष अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी रख रहे थे. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे पदों पर बेहतर छवि वाले और गैर राजनीतिक व्यक्ति की नियुक्ति की जानी चाहिए. इसमें पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए ताकि बिना किसी प्रभाव के स्वतंत्र फैसले लिए जा सकें.


पीठ ने नियुक्ति के लिए अच्छी प्रक्रिया बनाने पर जोर देते हुए कहा कि योग्यता के अलावा व्यक्ति को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए व्यक्ति के सुदृढ़ चरित्र पर ध्यान देना ज़रूरी है. इस बावत पीठ ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर टीएन शेषन की तरह के सुदृढ़ चरित्र वाले व्यक्ति को चाहता है. सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली संविधान पीठ ने कहा, अनेक मुख्य निर्वाचन आयुक्त हुए हैं, लेकिन टीएन शेषन एक ही हुए हैं. शेषन केंद्र सरकार में पूर्व कैबिनेट सचिव थे और उन्हें 12 दिसंबर, 1990 को मुख्य निर्वाचन आयुक्त नियुक्त किया गया था. उनका कार्यकाल 11 दिसंबर, 1996 तक रहा. उनका निधन 10 नवंबर, 2019 को हो गया था.

'तथाकथित स्वतंत्रता पूरी तरह नष्ट हो जाती है'

संविधान पीठ ने आगे कहा कि इस तरह, तथाकथित स्वतंत्रता, जो सिर्फ जुबानी सेवा है, पूरी तरह से नष्ट हो जाती है. विशेष रूप से परेशान करने वाली प्रवृत्ति को देखते हुए कोई भी उन पर सवाल नहीं उठा सकता है क्योंकि कोई जांच नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 324 का हवाला देते हुए कहा कि यह अनुच्छेद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की बात तो करता है, लेकिन नियुक्ति की प्रक्रिया के पर चुप है. संविधान को लागू हुए 72 साल हो गाए लेकिन अभी तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई कानूनी प्रक्रिया नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस बारे में कोई कानून नहीं है और इस तरह कानूनी तौर पर यह सब सही है. कानून के अभाव में कुछ नहीं किया जा सकता है. इस तरह संविधान की चुप्पी का फायदा उठाया जा सकता है. सभी ने इसे अपने हित में इस्तेमाल किया है. हम ऐसा नहीं कह रहे हैं लेकिन ऐसा लग रहा है.

खंडित कार्यकाल में भला क्या कर पाएगा CEC!

जस्टिस केएम जोसेफ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में संविधान की चुप्पी और कानून की कमी के कारण (शोषण का) जो रवैया अपनाया जा रहा है, वह परेशान करने वाली परंपरा है.


सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2004 के बाद से कोई भी मुख्य चुनाव आयुक्त छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यहां तक कहा कि संस्थान के मुखिया के तौर पर चीफ इलेक्शन कमिश्नर का जो खंडित कार्यकाल होता है, उसमें वो कुछ ठोस नहीं कर पाते हैं. 2004 के बाद मुख्य चुनाव आयुक्तों की लिस्ट देखा जाए तो ज्यादातर ऐसे हैं जिनके दो साल से ज्यादा का कार्यकाल भी नहीं है. कानून के मुताबिक, छह साल का कार्यकाल होना चाहिए या फिर 65 साल की उम्र तक का कार्यकाल होना चाहिए. इनमें जो पहले हो जाए, वही कार्यकाल माना जाता है. मुख्य चुनाव आयुक्त ज्यादातर ब्यूरोक्रेट होते हैं और सरकार ऐसे ब्यूरोक्रेट की उम्र पहले से जानती है जिन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया जाता है. उन्हें तब मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर नियुक्त किया जाता है जब वह कभी भी छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाते हैं और उनका कार्यकाल खंडित ही रहता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूपीए के 10 साल के कार्यकाल में छह मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए गए जबकि एनडीए के आठ साल के कार्यकाल में आठ मुख्य चुनाव आयुक्त बनाए गए हैं.

जस्टिस जोसेफ ने कहा- समीक्षा की जरूरत

जस्टिस जोसेफ ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि अगर यह संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है तो फिर यह जरूरी है कि कोर्ट इसकी समीक्षा करे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डॉक्टर बी.आर. अंबेडकर ने संविधान सभा की बैठक में कहा था कि अनुच्छेद 324 आने वाली पीढ़ियों के लिए बड़ा सिरदर्द साबित होगा. अदालत ने अटॉर्नी जनरल से कहा है कि वह कोर्ट को अवगत कराएं कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए क्या मेकैनिजम अपनाया जाता है. सुप्रीम कोर्ट मामले में बुधवार को आगे की सुनवाई करेगा. सुप्रीम कोर्ट ने 23 अक्टूबर 2018 को उस जनहित याचिका को संवैधानिक बेंच रेफर कर दिया था जिसमें कहा गया है कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलिजियम की तरह सिस्टम होना चाहिए.


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