पीरियड लीव याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने किया सुनवाई से इनकार
न्यायालय का कहना है कि ये नीतिगत मामला है. इसलिए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पास जाइए.
इस वर्ष 11 जनवरी को वकील वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पेड पीरियड लीव को लेकर दायर की गई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने से इनकार कर दिया है. भारत के चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ में आज इस जनहित याचिका पर सुनवाई होनी थी, लेकिन न्यायालय ने सुनवाई से ही इनकार कर दिया.
इसी के साथ उन ढेर सारी महिलाओं की उम्मीदों पर पानी फिर गया, जो इस याचिका से कुछ उम्मीद लगाए बैठी थीं. याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यह एक नीतिगत निर्णय है और यह न्यायालय की सीमा के दायरे में नहीं आता है.
पीठ ने अपने जवाब में कहा कि बेहतर होगा कि इस नीतिगत मुद्दे के लिए याचिकाकर्ता महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से संपर्क करें. इसी कारण से अब यह याचिका निरस्त की जाती है.
सुप्रीम कोर्ट में यह जनहित याचिका दायर करने वाले वकील शैलेंद्र मणि त्रिपाठी का कहना था कि 1961 के मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट में कामकाजी महिलाओं को प्रेग्नेंसी के दौरान पेड छुट्टी दिए जाने का प्रावधान किया गया था. यह एक अतिरिक्त सुविधा है, जो कानून महिलाओं की विशिष्ट जरूरतों को देखते हुए सिर्फ महिला कर्मचारियों को देता है.
इसी तरह एक बार हमें उस मासिक धर्म की पीड़ा पर भी विचार करना चाहिए, जिससे महिलाएं हर माह गुजरती हैं और यह उनके लिए बेहद तकलीफदेह अनुभव होता है. अधिवक्ता त्रिपाठी ने मैटरनल बेनिफिट एक्ट को ही आधार बनाकर पीरियड लीव पर विचार किए जाने की बात कही थी, क्योंकि यह मैटरनल बेनिफिट एक्ट मैटरनिटी से जुड़े सभी बायलॉजिकल पहलुओं की बात करता है और पीरियड्स भी उसी का एक हिस्सा हैं.
मैटरनल बेनिफिट एक्ट 1961 और उस एक्ट में समय-समय पर हुए सुधारों के बाद अब महिलाओं को प्रेग्नेंसी, डिलिवरी, अबॉर्शन, नसबंदी के ऑपरेशन आदि के समय इस कानून के तहत छुट्टी मिलती है. याचिका में यह मांग की गई थी कि न्यायालय सभी राज्यों को इस संबंध में कानून बनाने और अपने-अपने राज्य में उसे लागू करने का निर्देश दे दे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. न्यायालय ने तो याचिका पर सुनवाई करने से ही इनकार कर दिया.
इस मुद्दे पर कोर्ट के भीतर चली बेहद संक्षिप्त सुनवाई में पीठ ने कहा चूंकि यह न्यायालय की सीमा के बाहर का और एक नीतिगत फैसला है, इसलिए इस मुद्दे पर किसी भी तरह का न्यायिक आदेश महिलाओं के हितों के विरुद्ध भी साबित हो सकता है.
न्यायालय ने अपनी ओर से जो तर्क दिया, उसका आशय यह था कि यदि आप नियोक्ताओं (इंप्लॉयर्स) को महिला कर्मचारियों को पीरियड के दौरान पेड लीव देने के लिए मजबूत करते हैं तो हो सकता है कि इसका नकारात्मक असर महिला पर ही पड़े. ऐसी स्थिति में इंप्लॉयर महिला कर्मचारियों को नौकरी देने में हिचक सकते हैं.
न्यायालय ने बार-बार एक ही बात दोहराई कि यह एक नीतिगत मामला है, इसलिए हम इस समस्या का निपटारा नहीं कर सकते.
Edited by Manisha Pandey