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प्रतिबंध के बावजूद हो रहा है टू फिंगर टेस्‍ट क्‍योंकि IPC के तहत यह अब भी दंडनीय अपराध नहीं

निर्भया केस के बाद भारत में वर्ष 2013 में रेप पीडि़ताओं की वर्जिनिटी को जांचने के लिए किए जाने वाले "टू-फिंगर टेस्ट" को प्रतिबंधित कर दिया गया था. लेकिन बावजूद इसके यह बर्बर प्रैक्टिस आज भी जारी है.

प्रतिबंध के बावजूद हो रहा है टू फिंगर टेस्‍ट क्‍योंकि IPC के तहत यह अब भी दंडनीय अपराध नहीं

Monday October 31, 2022 , 3 min Read

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने सोमवार को रेप के एक मामले में फैसला सुनाते हुए "टू-फिंगर टेस्ट" को जारी रखे जाने पर खेद और नाराजगी व्‍यक्‍त की. उन्‍होंने कहा कि इससे पहले से पीड़ा से गुजर रही महिला के सम्‍मान को चोट पहुंचती है.  

कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि रेप के मामलों में "टू-फिंगर टेस्ट" करने वाले व्यक्तियों को कदाचार का दोषी माना जाएगा और उन्‍हें सजा मिलेगी. साथ ही न्‍यायालय ने मेडिकल कॉलेजों के सिलेबस से "टू-फिंगर टेस्ट" से जुड़े टेक्‍स्‍ट को हटाने का आदेश दिया है.

न्‍यायालय ने कहा कि यह प्रैक्टिस बर्बर है और इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. यह प्रैक्टिस उस पितृसत्‍तात्‍मक सोच पर आधारित है कि एक यौन रूप से सक्रिय महिला के साथ रेप नहीं हो सकता.

मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कह, “इस अदालत ने बलात्कार और यौन उत्पीड़न के मामलों में बार-बार "टू-फिंगर टेस्ट" के उपयोग की भर्त्‍सना की है. यह परीक्षण पूरी तरह अवैज्ञानिक है और एक गलत धारणा पर आधारित है. सच्चाई से इसका कोई लेना-देना नहीं है.”

इन टिप्‍पणियों के साथ-साथ बेंच ने हाईकोर्ट की सजा को उलटते हुए आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. हाईकोर्ट ने रेप के एक आरोपी इसी टू फिंगर टेस्‍ट के आधार पर बलात्‍कार के आरोप से मुक्‍त कर दिया था. बेंच ने कहा कि टू फिंगर टेस्‍ट का बलात्‍कार के आरोप से कोई संबंध नहीं है. यह बर्बर परीक्षण करने से बलात्‍कार का आरोप खारिज नहीं हो जाता. बाकी सारे साक्ष्‍य जो सिद्ध कर रहे हैं, वही सत्‍य है.  

क्‍या है "टू-फिंगर टेस्ट"

"टू-फिंगर टेस्ट" अंग्रेजों के समय से चली आ रही एक मेडिकल जांच की प्रक्रिया है, जिसमें बलात्‍कार का शिकार हुई स्‍त्री के जननांगों को दो उंगलियां डालकर यह चेक किया जाता है कि वह वर्जिन है या नहीं. लंबे समय तक अमूमन केसेज में कानून की भी यही मान्‍यता रही है कि यदि कोई स्‍त्री वर्जिन नहीं है तो उसके साथ रेप हो सकने की संभावना कम है.

महिला अधिकार संगठनों के द्वारा भी लंबे समय से इस टेस्‍ट को बर्बर, मर्दवादी और अमानवीय बताते हुए इसके खिलाफ आवाज उठाई जाती रही है. निर्भया केस के बाद एक बार फिर ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और कोर्ट ने इसे पूरी तरह असंवैधानिक मानते हुए इस पर प्रतिबंध लगाने की बात कही थी. कोर्ट ने दिल्‍ली सरकार को आदेश दिया कि अस्‍पतालों और मेडिकल इंस्‍टीट्यूशंस में रेप की जांच के दूसरे बेहतर तरीके अपनाए जाएं.

लेकिन सच तो ये है कि असंवैधानिक करार दिए जाने के बावजूद आज भी टू फिंगर टेस्‍ट भारतीय दंड संहिता की किसी धारा के तहत दंडनीय अपराध नहीं है. इसलिए देश के कई हिस्‍सों में आज भी यह टेस्‍ट पुलिस, प्रशासन और रेप की जांच कर रहे मेडिकल अधिकारियों के द्वारा धड़ल्‍ले से किया जाता है. इतना ही नहीं, इस परीक्षण के परिणामों ने कई मामलों में न्‍यायिक फैसलों को भी नकारात्‍मक ढंग से प्रभावित किया है.


Edited by Manisha Pandey